साईं बाबा के जन्मस्थल पर विवाद छिड़ा हुआ है. एक तरफ शिरडी के स्थानीय लोग पाथरी को साईं बाबा का जन्मस्थान बताने पर विरोध कर रहे है तो दूसरी और मुंबई, हैदराबाद रेल रूट पर आने वाले मानवत रोड स्टेशन पर उतरने के बाद वहां मौजूद एक बोर्ड बताता है कि साईं बाबा का जन्मस्थल 16 किलोमीटर दूर पाथरी में है. ऐसे में पाथरी के लोग किस आधार पर यहां साईं बाबा के जन्मस्थल का दावा कर रहे है? क्या यह आस्था पर आधारित है, या फिर ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ये दावे किया जा रहे हैं?
गांववालों का दावा है कि साईं बाबा का जन्म 1835 में पाथरी में भुसारी परिवार में हुआ और उनका नाम हरीभाऊ भुसारी था. पाथरी गांव में बाबा का पुराना घर भी मौजूद है. साईंबाबा द्वारा इस्तेमाल की गई कई वस्तुयें यहां आज भी मौजूद हैं. गांववालों का दावा है कि साईं के पाथरी से सम्बंध के 29 प्रमाण मौजूद उनके पास मौजूद है.
साईं बाबा जन्मस्थल मंदिर ट्रस्ट के विश्वस्थ बाबा जानी दुरानी के मुताबिक-
साईं बाबा का जन्म 1835 में पाथरी तहसील की कोष्टि गली में भुसारी परिवार में हुआ थाऔर इसके सरकारी और गैर सरकारी मिलाकर करीब 29 सबूत हमारे पास मौजूद है. सांई बाबा की जन्मभूमि पाथरी है और कर्म भूमि शिरडी है
महाराष्ट्र सरकार ने पाथरी गांव के लिए 100 करोड़ रुपये मंजूर किए
महाराष्ट्र सरकार ने पाथरी गांव को 100 करोड़ रुपये साईं जन्मभूमि के लिए मंजूर किए तो शिरडी वाले इसका विरोध कर रहे हैं. दरअसल फडणवीस सरकार के वक्त ही साईं जन्मभूमि के तौर पर पाथरी के लिए विकास निधि देने का प्रस्ताव था. लेकिन उद्धव ठाकरे की सरकार ने बाद उसे मंजूरी दी. शिरडी के लोग इसलिए विरोध कर रहे है क्योंकि उन्हें लगता है की जन्मभूमि पाथरी के विकसित होने से शिरडी में भक्तो की संख्या में असर पड़ेगा.
महाराष्ट्र सरकार के 1967 के सरकारी गेजेटीयर में भी साईं के जन्मस्थान का जिक्र है. बाबा के भक्त और पाथरी के निवासी बीएस कामले ने क्विंट को वो बुक दिखाई, जिसमे परभनी जिले और पाथरी का इतिहास है. पेज नंबर 621-622 में लिखा है कि शिरडी के साईंबाबा पाथरी में पैदा हुए थे और बाद मे बाबा यहां से सेलू चले गए.
‘साईं चरित्र’ में जिक्र
पाथरी के ही निवासी प्रकाश केदारे के पास साईं चरित्र का दसवां संस्करण भी मौजूद है जिससे शिर्डी संस्थान ने 1978 में प्रकाशित किया था. इस साईं चरित्र में भी पाथरी का जिक्र है, इसमें लिखा है कि साईं के माता-पिता कौन है इसकी पुखता जानकारी नहीं है, लेकिन बाबा की भाषा से लगता था कि वो सेलू,पाथरी, मनवात या औरंगाबाद जैसे मुगल के गांव के हैं. उनके बोलने मे भी इन जगहों का जिक्र कई बार आया है.
साईं बाबा के जीवन पर रिसर्च करने वाले राजा कालंदकर का कहना है कि साईं बाबा की जीवनी ज्यादातर भक्त लोगों ने ही लिखी है. इतिहासकार जब इतिहास की किसी घटना के बारे में लिखते हैं तो इसका सबूत देते हैं. जीवनी लिखने वाले लोग केवल उस वक्त की कहानी लिखते हैं. उनका उद्देश्य गलत नहीं होता, लेकिन इसे कहां तक प्रमाण माना जाए ये बहस का विषय हो सकता है. कालंदकर ने बताया कि उन्हें लगता है कि साईं जन्मभूमि को लेकर शुरू हुआ विवाद इतनी जल्द खत्म होगा- इसके आसार कम ही हैं
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