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आगरा में कुछ लोगों को क्वॉरन्टीन में भेज भूल गई सरकार?

सैनेटाइजेशन के नाम पर लोगों का मोबाइल जमा कराया

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

"हम यहां एक महीने 6 दिन से हैं, जबकि 14 दिन का क्वॉरंटीन होता है. पहले हमें कहा गया आपकी कोरोना रिपोर्ट निगेटिव है आप दो दिन में चले जाएंगे, फिर 14 दिन कहा गया, फिर 21 और अब इतना वक्त बीत गया. हर कोई आज-कल, आज-कल कहकर टाल रहा है. यहां बच्चे, बूढ़े, महिलाएं सब परेशान हैं. हमें यहां से निकलवाइए."

ये बात आगरा के एक स्कूल में बने क्वॉरंटीन सेंटर में रह रहे गाजीपुर के रहने वाले लियाकत अली कहते हैं. लियाकत की तरह ही इस क्वॉरंटीन सेंटर में करीब 60 लोग हैं.

तबलीगी जमात के नाम पर 'बेवजह' कई लोगों को किया क्वॉरंटीन

इनमें से कई लोगों को दिल्ली के तबलीगी जमात के मरकज में जाने या वहां से जुड़े लोगों के संपर्क में आने की वजह बताकर क्वॉरंटीन किया गया है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो ना तो तबलीगी जमात के कार्यक्रम में गए ना ही किसी के संपर्क में आए फिर भी उन्हें क्वॉरंटीन में रखा गया है.

नाम ना छापने की शर्त पर एक शख्स बताते हैं कि उनके घर पुलिस गई थी और उन्हें जांच कराने को कहा.

“मैं नवंबर से अपने घर पर था, कहीं नहीं गया, लेकिन मेरे घर एक रिश्तेदार आए थे, वो लॉकडाउन में मेरे यहां फंस गए. हालांकि वो भी जमात में नहीं गए थे. लेकिन बस जमात से जुड़े होने के शक में उन्हें भी जांच के लिए कहा गया और मुझे भी. मैं खुद जांच कराने आ गया. लेकिन जांच के नाम पर मुझे यहां रोक लिया गया. तबसे लेकर अब तक 34 दिन बीत चुके हैं. कुछ पता नहीं है अपने घर कब जाएंगे.हम लोग डरे हुए हैं, मेंटल ट्रॉमा में हैं.”

सैनेटाइजेशन के नाम पर लोगों का मोबाइल जमा कराया

आंध्र प्रेदश के शेख नूर बादशाह तबलीगी जमात के काम से आगरा आए हुए थे, वो बताते हैं कि उन्हें भी टेस्ट के लिए कहा गया और आगरा के होली पब्लिक स्कूल में लाया गया. उन्होंने कहा, "जब हमें लाया गया उसके दूसरे दिन हमारा फोन ले लिया गया. कहा गया कि सैनेटाइज किया जाएगा. लेकिन 25 दिनों तक फोन नहीं दिया गया."

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"यहां रहने से हम बीमार हो रहे हैं"

55 साल की फहमीदा रोते हुए कहती हैं कि पिछले कई दिनों से दस्त हो रहा है, तबीयत खराब है लेकिन दवा नहीं है. यहां रहने से हम और बीमार हो रहे हैं, हमें कोई बीमारी नहीं थी. अगर बीमारी होती तो आइसोलेशन में रखते. हम अपने बच्चों से दूर हैं, हमें घर जाना है."

आगरा के रहने वाले शमीम कहते हैं कि वो डायबिटीज के मरीज हैं, दवा की दिक्कत होती है. "कुछ भी खयाल नहीं रख पा रहे हैं हम. इस वजह से नींद नहीं आती है. 35 दिन बीत चुके हैं, कोई कुछ बताने को तैयार नहीं है."

घर पर बच्चे इंतजार कर रहे हैं, अकेला कमाने वाला

फतेहपुर सीकरी के रहने वाले इसमाईल खान अपना फटा कपड़ा दिखाते हैं, बिलखते हुए कहते हैं,

एक ही कपड़े में रहने को मजबूर हूं. वहां घर पर क्या हाल होगा मैं ही जानता हूं. मैं अकेला कमाने वाला हूं और मुझे इस तरह से यहां बंद कर रखा है.”

जब हमने आगरा के सीएमओ से इन लोगों के बारे में बात की तो सीएमओ मुकेश कुमार वत्स ने कहा कि अभी रिपोर्ट नहीं आई है. "14 दिन का क्वॉरेंटीन तो होता ही है, कई बार 28 दिन का भी होता है. रिपोर्ट अभी इन लोगों की आई नहीं है, हम सदर अस्पताल के सुप्रिटेंडेंट से बात करते हैं."

वहीं जब आगरा के जिला अधिकारी प्रभु सिंह से बात करने की कोशिश की गई तो उनके दफ्तर के स्टाफ ने कहा कि सर मीटिंग में हैं आप सीएमओ से बात करें.

कुछ जरूरी सवाल

इन सबके बीच कुछ सवाल हैं, जिनके जवाब मिलने जरूरी हैं. जैसे-किस आधार पर क्वॉरंटीन में रह रहे लोगों का फोन 15-20 दिनों के लिए रखा गया? क्यों इन लोगों को क्वॉरंटीन में रखकर प्रशासन भूल गया? जब कुछ लोग तबलीगी जमात के मरकज नहीं गए फिर भी उन्हें तबलीगी जमात से क्यों जोड़ा गया?

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