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लॉकडाउन में भूखे:गर्भवती महिलाएं, मासूम बच्चे दाने-दाने को तरस रहे

ग्रामीण महिलाओं को लॉकडाउन में कितनी दिक्कतों का करना पड़ रहा है सामना? 

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

उत्तर प्रदेश के अमेठी में गांव जमोरवा के बाहर रह रहे कुछ वनराज समुदाय के लोगों के लिए लॉकडाउन बहुत भारी पड़ रहा है. ये हाशिए के लोग हैं जिनके पास न राशन कार्ड है न ही बैंक अकाउंट. ऐसे में इनके पास पेट भरने के लिए भी कुछ नहीं.

गांव के बाहर तंबू लगाकर रहने वाले कुछ परिवार हैं. इनमें कुछ गर्भवती महिलाएं भी हैं. कुछ महिलाओं के छोटे-छोटे- माह- 2 माह के बच्चे हैं जो मां के दूध पर निर्भर करते हैं. लेकिन इन महिलाओं को पोषाहार तो दूर की बात है भरपेट खाने के लिए खाना भी नहीं मिल पा रहा.

एक गर्भवती महिला ने बातचीत में बताया कि उनके घर 3 दिनों से चूल्हा नहीं जला क्योंकि खाना पकाने के लिए राशन नहीं है. वैसी ही एक और महिला ने बतकि उनके पास खाने के लिए सिर्फ चावल हैं जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर पकाती हैं और खुद का और परिवार का पेट भरती हैं.

देशभर में 21 दिन तक के लिए जारी लॉकडाउन के बीच इन परिवारों का काम-धंधा भी बंद है. इसलिए ये परिवार खासी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं.

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वहीं अमेठी के पुरे तेजी, पुरे दुर्जन जैसे गावों का भी जायजा लेने पर पता चलता है कि बड़ी संख्या में ऐसे परिवार हैं जिनके पास न तो राशन कार्ड है, न ही बैंक अकाउंट ताकि सरकार की तरफ से ऐलान किए गए राहत पैकेज का फायदा उन तक पहुंच सके.

पुरे तेजी गांव की रामकली बताती हैं,

पहले पर्ची थी हमारे पास, उससे राशन मिलता था. लेकिन जब से अंगूठा लगाने वाला सिस्टम आया है तब से हमें राशन नहीं मिलता. 6 महीने से राशन नहीं मिल रहा.

पूरे भारत में जारी लॉकडाउन में गरीब और जरूरतमंद न सिर्फ कोरोना वायरस से लड़ रहे, बल्कि वे भूख से भी लड़ रहै हैं. लेकिन सवाल ये है कि इन तक कैसे पहुंचेगी सरकार? देखिए अमेठी से ये रिपोर्ट.

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