देश में ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ है. अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी की समस्या बढ़ती जा रही है. कई बार गुहार लगाने के बाद ही आपूर्ति हो रही है. यही दिक्कत अस्पतालों में बेड की उपलब्धता को लेकर देखी जा रही है. इसके साथ ही देश में कोरोना के आंकड़े कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. ये सब स्थिति कैसे ठीक होगी? ऑक्सीजन की कमी कितनी बड़ी है और कब तक इससे जूझना पड़ सकता है? क्विंट ने इसे समझने के लिए पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट डॉ मैथ्यू वर्गीज से बात की.
डॉ वर्गीज ने बताया कि कोरोना के मामले कब तक कम होंगे और ऐसा क्या किया जाए कि ऑक्सीजन और अस्पताल में बेड की जरूरत ही न पड़े.
ऑक्सीजन की किल्लत कितनी बड़ी?
डॉ वर्गीज ने कहा कि ऑक्सीजन की कमी बहुत बड़ी समस्या है. उन्होंने कहा, “मरीज दर-दर भटक रहा कि एक ऑक्सीजन बेड मिल जाए. एक बेड पर दो मरीज लेटने को तैयार हैं. अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन सिलिंडर लेकर लेटने को तैयार हैं. लेकिन बस वो चाहते हैं कि ऑक्सीजन मिल जाए.”
डॉ वर्गीज ने कहा कि सरकारी और निजी अस्पताल दोनों में ही ऑक्सीजन की समस्या है.
ऑक्सीजन की किल्लत कब तक दूर होगी?
डॉ मैथ्यू वर्गीज का कहना है कि अगर ऑक्सीजन का प्रोडक्शन हो सकता है, तो उसकी डिलीवरी लॉजिस्टिक्स की प्लानिंग करते तो अच्छा रहता. उन्होंने कहा, “जो समस्या बढ़ गई है, इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता था. अब एक-दूसरे को दोष देने का कोई मतलब नहीं है.”
“अगर हम प्लान करते कि हर बड़े अस्पताल में लिक्विड ऑक्सीजन के एक्स्ट्रा एक-दो टैंक लगाए जाते, हर जिला अस्पताल में ये टैंक लग जाते और अतिरिक्त डिलीवरी टैंक खरीद कर रख लेते तो हम इस स्थिति से बच सकते थे.”
डॉ वर्गीज ने कहा कि अब इस पर विचार करने का समय नहीं है और अब ये देखना है कि लोगों की जान कैसे बचाई जाए.
“जो हल्के लक्षण वाले केस हैं, जहां सामान्य ऑक्सीजन सप्लाई से काम चल जाएगा, उन्हें एक फैसिलिटी में ले लिया जाए. वहां रोजाना टैंकर सप्लाई होना चाहिए. और ये काम तुरंत शुरू होना चाहिए.
मरीजों को कैसे प्राथमिकता देते हैं?
डॉ वर्गीज कहते हैं कि मरीजों का चुनाव करना बहुत मुश्किल होता है. उन्होंने कहा, “डॉक्टरों ने अपनी तरफ से फैसला किया है कि जो यंग लोग हैं, जिनकी लंबी जिंदगी पड़ी है उनकी हम प्राथमिकता दे देंगे. ये कोई नियम नहीं है लेकिन ऐसा कर रहे हैं.”
“हम सबसे कहते हैं कि बिना पूछे मत आइए. अगर बेड नहीं होता है तो कह देते हैं कि कोई दूसरा विकल्प देख लीजिए. ये मरीजों का चुनाव करना नैतिक रूप से बहुत मुश्किल है.”
क्या रेमडेसिविर बेवजह दी जा रही है?
डॉ मैथ्यू वर्गीज ने क्विंट को बताया कि हल्के और मॉडरेट कोविड केस में रेमडेसिविर का कोई असर नहीं है. उन्होंने कहा कि ये दवाई गंभीर मामलों में ICU में रहने का समय कम करती है.
डॉ वर्गीज ने कहा, “हर दवाई का जो अंधाधुन इस्तेमाल है वो ठीक नहीं और इससे बचना चाहिए.”
“डेक्सामीथाजोन और ब्लड क्लॉटिंग रोकने वाली दवाइयों का फायदा देखा गया है. बाकी एंटीबायोटिक या और किसी भी दवाई का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.”
क्या म्युटेंट पर वैक्सीन असरदार है?
डॉ वर्गीज कहते हैं कि वायरस में म्यूटेशन स्वाभाविक है और ये होगा जरूर है. हालांकि, डॉ वर्गीज का कहना है कि वैक्सीन वायरस के यूनिक आइडेंटिफिकेशन फीचर को लेकर बनाई जाती है.
“अगर यूनिक आइडेंटिफिकेशन सभी म्युटेंट स्ट्रेंस में कॉमन है, तो परेशान होने वाली बात ही नहीं है. ऐसे में वैक्सीन को सभी म्युटेंट पर प्रभावी होना चाहिए. लेकिन अगर कोई म्यूटेशन यूनिक आइडेंटिफिकेशन फीचर को बदल देती है तो मुश्किल हो सकती है.
मौजूदा पीक कब खत्म होगी?
डॉ वर्गीज कहते हैं कि दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों का पीक अगले चार से छह हफ्तों में खत्म होने की संभावना है. उन्होंने कहा, “अगर ऐसा नहीं होता है तो ये असामान्य बात होगी.”
क्या करें कि ऑक्सीजन की जरूरत ही न पड़े?
डॉ मैथ्यू वर्गीज कहते हैं कि अगर आपको पहले लक्षण से पांचवे दिन तक भी बुखार और खांसी है तो आपको टेस्ट करा लेना चाहिए. डॉ वर्गीज ने कहा, “ये समय स्टेरॉयड और ब्लड थिन करने वाली दवाई लेने का है. इससे पहले नहीं लेनी है वरना बीमारी लंबी खिंच जाएगी.”
डॉ वर्गीज ने कहा, “अधिकतर तीन दिनों में बुखार उतर जाता है. लेकिन अगर पांचवे दिन भी बुखार है और सांस फूल रही है तो स्टेरॉयड ले सकते हैं. इसके बाद ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ेगी.”
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