वीडियो एडिटर: कुनाल मैहरा
कैमरा: शाह उमर
दिल्ली की फैक्ट्रियों में खिड़कियां और दरवाजे बंद रहते हैं. लेकिन अंदर से मशीन के घरघराने की आवाज आती रहती है. जिसकी वजह से कई बार मजदूरों की जान पर बन आती है.
ऐसे में विधानसभा चुनाव में इन मजदूरों का पसंदीदा कौन है? क्या इस बार ये अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखकर वोट करेंगे. यही जानने के लिए क्विंट ने फैक्ट्री मजदूरों से खास बातचीत की.
वजीरपुर इंडस्ट्रियल एरिया लोहे से स्टील के बर्तन बनाने वाली फैक्ट्रियों का हब है. वहां ऑपरेटर का काम करने वाले गोरख पासवान बताते हैं
आराम से मशीन चलाने पर कहा जाता है कि जल्दी चलाओ नहीं तो भगा देंगे. अगर जल्दी नहीं करेंगे तो हमें काम से निकाल देंगे. इसलिए हमें टूट कर काम पर लगना पड़ता है.गोरख पासवान, ऑपरेटर
काम करते हुए मजदूरों के शरीर में कहीं न कहीं मशीन से लग जाता है. जिससे वो घायल हो जाते हैं. मजदूर बताते हैं कि बाहर निकलने के लिए भी एक ही रास्ता है, इसलिए कुछ होने पर वो भाग भी नहीं पाते हैं.
झिलमिल की फैक्ट्रियों का भी यही हाल है. यहां कॉपर केबल बनाई जाती हैं लेकिन बहुत कम फैक्ट्रियों में इनसे निकलने वाले कचरे को लेकर जरूरी नोटिस बोर्ड लगे हुए हैं. 26 जनवरी 2020 को क्विंट इस इलाके में पहुंचा. नेशनल होलीडे होने के बावजूद यहां काम जारी था.
दिल्ली सरकार ने अक्टूबर 2019 में न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 18,000 रुपये कर दी थी. लेकिन बहुत कम लोगों को इतना मिल पाता है.
कारीगर को 10 हजार रुपये दे देते हैं, नहीं तो बाकियों को 7-8 हजार रुपये ही मिल पाते हैं.गोविंद झा, मजदूर
मुफ्त पानी और बिजली के मुद्दे के साथ AAP इन लोगों की पहली च्वाइस है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इन्हें जरूरी सुविधाएं मिल पाएगी?
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