सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.
दुष्यंत कुमार की इस मशहूर गजल को महाराष्ट्र के बीड जिले से आई पूजा मोरे ने स्टेज पर पढ़ा तो माहौल तालियों से गूंज उठा. ये मंजर था ‘किसान मुक्ति संसद’ का.
संसद का शीतकालीन सत्र तो शुरु नहीं हुआ लेकिन दिल्ली के संसद मार्ग पर एक अनोखी संसद लगी- किसानों की संसद. इसमें देशभर के 184 संगठनों के हजारों किसानों ने शिरकत की. मांग थी- किसानों की कर्जमाफी और स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक फसल की लागत के डेढ़ गुना समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं.
पूजा मोरे ने क्विंट से बात करते हुए कहा:
हमारे गांव में कर्ज की वजह से कई किसानों ने आत्महत्या की है. मैं नहीं चाहती कि मेरे पिता के सामने भी वही हालात पैदा हों. मैं दिल्ली आई हूं ताकि किसानों का दर्द हुक्मरानों तक पहुंचा सकूं.
इसी साल सावन में हुई ज्यादा बारिश ने कुलसम बेन की 20 बीघा कपास की खेती बरबाद कर दी थी. गुजरात के सुरेंद्रनगर से आई कुलसुम ने क्विंट से बात करते हुए कहा:
किसान ही हमेशा घाटे में रहता है. या तो फसल बरबाद हो जाती है या फिर मंडी में वाजिब दाम नहीं मिलता.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) के छाते तले आयोजित हुए ‘संसद सत्र’ में किसानों से जुड़े बिल पेश किए गये. स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने क्विंट को बताया:
हमने अपनी मांगों से जुड़े जो विधेयक तैयार किये हैं उन्हें नेताओं तक पहुंचाएंगे. लेकिन अगर सुनवाई ना हुई तो किसान का संघर्ष बढ़ेगा क्योंकि इसके अलावा किसान के पास कोई चारा भी नहीं है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2015 में खेती से जुड़े 12,602 लोगों ने आत्महत्या की थी. उनमें 8,007 किसान और 4,595 खेतिहर मजदूर शामिल थे.
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