वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा
अयोध्या के रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, विवादित भूमि को हिंदुओं को दिए जाने का आदेश दिया गया है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने किस आधार पर ये फैसला किया है? हिंदू पक्ष को विवादित जमीन देने का आधार क्या है? सुन्नी वक्फ बोर्ड को किस आधार पर दूसरी जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश आया है? और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अलग-अलग पक्षों की प्रतिक्रिया क्या है, क्या इसे कोई चुनौती देने वाला है?
ये फैसला सीजेआई रंजन गोगोई की अगुवाई वाली संविधान बेंच ने सुनाया है. ये फैसला अयोध्या मामले पर 2010 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए आया है.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में विवादित भूमि को मामले के 3 मुख्य याचिकाकर्ताओं- रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था.
सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने अपने 1045 पेज के फैसले में कहा है कि 2.77 एकड़ की विवादित भूमि देवता रामलला को दी जाए. हालांकि ये भूमि केंद्र सरकार के रिसीवर के पजेशन में रहेगी. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वो 3 महीने के अंदर योजना बनाए और मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट का गठन करे.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला?
कोर्ट ने माना है कि हिंदू पक्ष ने ये साबित किया है कि वो 1856-57 से पहले भी विवादित जमीन पर पूजा करते थे. लेकिन मुस्लिम पक्ष ये साबित नहीं कर पाया कि 1856-57 के पहले वो यहां नमाज पढ़ते थे और वहां उनका पजेशन था. 1857 के बाद अंदर वाले हिस्से में मुस्लिम पक्ष का पजेशन था, लेकिन एक्सक्यूजिव पजेशन नहीं था, वहां नमाज जरूर होती थी. इस दौरान भी अंदर वाले हिस्से तक हिंदू पक्ष की पहुंच थी, जबकि बाहर वाले हिस्से पर उनका एक्सक्यूजिव पजेशन था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ASI की रिपोर्ट को अनदेखा नहीं किया जा सकता. हालांकि ASI ने ये साफ नहीं किया था कि मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को गिराया गया था. कोर्ट ने कहा कि ASI के सबूतों को महज राय बताना इस संस्था के साथ अन्याय होगा.
सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए किसी और जगह 5 एकड़ जमीन देने का आदेश क्यों?
कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित भूमि पर एडवर्स पजेशन का दावा नहीं कर सकता. इसका मतलब ये हुआ कि सुन्नी वक्फ बोर्ड यह साबित नहीं कर पाया कि विवादित जगह पर उसका बिना किसी बाधा के लंबे समय तक पजेशन रहा. हालांकि कोर्ट ने माना कि 1949 में गलत तरीके से विवादित जगह पर मूर्तियां रखी गईं और मुस्लिमों को बाहर किया गया. कोर्ट ने ये भी माना कि 1992 में बाबरी मस्जिद गैरकानूनी तरीके से तोड़ी गई.
निर्मोही अखाड़ा का दावा क्यों खारिज हुआ?
कोर्ट ने कहा कि इस पक्ष ने सही समय पर केस दाखिल नहीं किया. कोर्ट के कहा, निर्मोही अखाड़ा शैबत नहीं है, वह सिर्फ प्रबंधक ही रहा. हालांकि कोर्ट ने कहा है कि केंद्र सरकार मंदिर वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को भी प्रतिनिधित्व देने पर विचार करे.
अब आते हैं फैसले पर प्रतिक्रिया की..
सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रामलला विराजमान के वकील पीएस नरसिम्हा ने कहा, हम कोर्ट के आभारी हैं, जिसने हमारे धर्म और आस्था का सम्मान किया है. वहीं निर्मोही अखाड़ा के सदस्य महंत धर्मदास ने कहा, ''हमें कोई पछतावा नहीं है क्योंकि हम रामलला के लिए लड़ रहे थे. कोर्ट ने राम लला के पक्ष को स्वीकार किया है, इससे हमारा उद्देश्य भी पूरा हो गया है.'' सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने कहा, ''इस फैसले में कई विरोधाभास हैं और हम इस पर पुनर्विचार की मांग करेंगे.'' हालांकि बाद में उन्होंने साफ किया कि उन्होंने यह बयान ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव के तौर पर दिया.
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि इस फैसले को किसी की हार या जीत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. संघ और विश्व हिंदू परिषद ने इस फैसले को देशहित में बताया है. हालांकि हर पक्ष ने कहा है कि ये किसी की हार जीत नहीं है. पीएम मोदी ने भी इसे हार-जीत से परे बताया है. कांग्रेस ने इस फैसले पर कहा- इस फैसले से बीजेपी और अन्य लोगों के सत्ता भोग के लिए देश की आस्था के साथ राजनीति करने के दरवाजे भी हमेशा के लिए बंद हो गए हैं. AIMIM नेता असद्ददुीन ओवैसी ने इस फैसले पर कहा कि हमें 5 एकड़ जमीन की खैरात नहीं चाहिए.
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