दो देश को तोड़े, वो क्या देश बनाएंगे, चाहे जो भी कर लो, हम तो बढ़ते जाएंगे... वो देश प्रेम के नाम पर नफरत फैलाते हैं, वो लुटाते हैं देश को दंगे करवाते हैं... 26 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर किसान कुछ इसी अंदाज में नजर आए. क्योंकि ये दिन उनके लिए बेहद खास था, इसी दिन इस ऐतिहासिक किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी.
सर्दी के बीच अलाव और जश्न
टिकरी बॉर्डर से कुछ ही दूरी पर नानक हट में किसानों ने अलाव जलाया और सर्दी के बीच ऐसी ही कई कविताएं और लाइनें गुनगुनाईं. सभी ने इस दिन अपने-अपने तरीके से जश्न मनाया. यहां मौजूद किसान इसे इंकलाब की रात कह रहे थे.
कहीं पर दूध का लंगर था तो कहीं मिठाई बंट रही थी. दूध का लंगर इसलिए क्योंकि इसे खास जश्न के तौर पर बांटा जाता है. क्विंट भी इन किसानों के साथ मौके पर था. यहां हमने पंजाब के फजिल्का से आए एक छात्र से बात की. उसने बताया कि वो यहां अपने भाइयों का साथ और समर्थन देने पहुंचा है. ऐसे ही कई लोग अलग-अलग जगहों से इस दिन का जश्न मनाने यहां पहुंचे थे.
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