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असम लिंचिंग:जानिए कैसे अफवाह से गुमराह भीड़ ने ली 2 दोस्तों की जान

पुलिस की दखल तक असम के इन दो युवकों को भीड़ के हाथों कत्ल होने से बचा नहीं सकी

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कैमरापर्सन: अंजना दत्ता

वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

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“मैं असम का रहने वाला हूं. मेरे पिता का नाम गोपालचंद्र दास है. मेरी मां का नाम राधिका दास है.”

यही वो शब्द थे जो नीलोत्पल के मुंह से आखिरी बार निकले. लेकिन भीड़ ने बेरहमी से उसे पीट-पीटकर मार डाला.

नीलोत्पल दास अपने दोस्त अभिजीत नाथ के साथ असम के कार्बी अंगलॉन्ग जिले में घूमने निकले थे. लेकिन दोनों को स्थानीय ग्रामीणों की भीड़ ने बच्चे उठाने वाला समझकर घेर लिया.

पांजूरी काचारी गांव में बांस के डंडों से करीब 200 लोगों की भीड़ ने पीट-पीटकर दोनों की जान ले ली. ये सब वाॅट्सऐप पर सर्कुलेट किए जा रहे एक मैसेज की वजह से हुआ जिसमें बच्चों के किडनैपर्स के इलाके में घूमने की बात कही गई थी.

आखिर उस दिन ऐसा क्या हुआ था जिससे भीड़ ने इन दो बेगुनाहों की जान ले ली. हम आपके सामने असम के उस इलाके, जहां ये घटना हुई थी के लोगों से हुई बातचीत को सिलसिलेवार तरीके से रख रहे हैं.

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पुलिस की दखल तक असम के इन दो युवकों को भीड़ के हाथों कत्ल होने से बचा नहीं सकी
अभिजीत बिजनेसमैन थे(बाएं). नीलोत्पल म्यूजिशियन थे, गोवा में रहते थे(दाएं)

8 जून, अभिजीत और नीलोत्पल दोनों गुवाहाटी से 250 किलोमीटर दूर कार्बी अंगलॉन्ग पहुंचे.रास्ते में वो एक दुकान पर रुके.

शाम के 6.30-7 बजे थे. उन्होंने 70 रुपये की चॉकलेट खरीदी. वो अच्छे परिवारों से दिख रहे थे.
नेकोराम सुब्बा, दुकानदार

‘होपा-धोरा’ या बच्चा-चोर की अफवाह से इलाके में पहले से तनाव था. कई दिनों से इलाके में ये अफवाह फैली थी.

5-6 जून से बच्चा-चोरों के बारे में अफवाह थी. लेकिन हमारे इलाके से एक भी बच्चा गायब नहीं था. अफवाह के बाद रात को लोग सावधान हो गए. वो ग्रुप बनाकर घूमने लगे.
सुरेन क्रमचा, प्रिंसिपल, बिथिलांग्सो स्कूल
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पुलिस की दखल तक असम के इन दो युवकों को भीड़ के हाथों कत्ल होने से बचा नहीं सकी

अभिजीत और नीलोत्पल कांग्थिलांग्सो झरने पर मछलियां इकट्ठी करने गए थे. लेकिन उन्हें बच्चा-चोर समझ लिया गया.

एक स्थानीय व्यक्ति ने उन्हें झरने से चले जाने को कहा. उसी शख्स ने बाकी लोगों को ये कहते हुए बुला लिया कि कांग्थिलांग्सो पर दो बच्चा-चोर हैं.
विमल टेरॉन्ग, दुकानदार
उनकी कार रोक दी गई. लोग चीख रहे थे कि उन्होंने दो बच्चा-चोरों को पकड़ लिया है. अचानक सैकड़ों लोग इकट्ठे हो गए.
सुशीला सोरियाती, स्थानीय ग्रामीण
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जल्द ही पांजूरी काचारी गांव पर मानो आसमान टूट पड़ा.

क्या किसी ने भी नीलोत्पल और अभिजीत को बचाने की कोशिश नहीं की?

एक ग्रामीण महिला ने बताया कि- मैं उन्हें कैसे बचा सकती थी? उनके हाथ में छुरे और चाकू थे. कोई हमारी नहीं सुन रहा था.

जब मैंने सुना कि उन्हें पीटा जा रहा है तो मैंने भीड़ से कहा कि उनसे बात करें. उन्हें पीटें नहीं. अगले दिन पता लगा कि उन्होंने दोनों को मार दिया.
सुरेन क्रमचा, प्रिंसिपल, बिथिलांग्सो स्कूल
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पुलिस की दखल तक उन्हें बचा नहीं सकी

कार्बी अंगलॉन्ग के एसपी डॉ. जीवी शिव प्रसाद गंगावाला बताते हैं-

जब वो वहां पहुंचे तो उन्हें तिराहे पर एक बड़ी भीड़ दिखी. जो लोग ये सब कर रहे थे वो पुलिस को घुसने नहीं दे रहे थे. जब पुलिस ने घुसने की कोशिश की तो कुछ लोगों ने पथराव भी किया. हमारे कुछ पुलिसवालों को भी चोटें आईं. ये काफी मुश्किल था क्योंकि भीड़ की संख्या पुलिस से ज्यादा थी. पुलिसवाले बड़ी तादाद में पहुंचे लेकिन फिर भी लोगों की संख्या भारी पड़ी.
डॉ. जीवी शिव प्रसाद गंगावाला, एसपी, कार्बी अंगलॉन्ग

अभिजीत और नीलोत्पल को मारने के आरोप मेंअब तक 28 लोग हुए गिरफ्तार हुए हैं.

गिरफ्तारी के डर से कई लोगों ने छोड़ा गांव

पुलिस दोषियों और निर्दोषों, सबको गिरफ्तार कर रही है इसलिए कई लोग गांव छोड़कर चले गए हैं.
सुशीला सोरियाती, स्थानीय ग्रामीण

इस लिंचिंग के बाद पूरे असम में जोरदार प्रदर्शन हो रहे हैं. सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाने के लिए 35 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. लेकिन अभिजीत और नीलोत्पल के दोस्तों और परिवार के लिए
कुछ भी उस नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता.

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