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बोर्ड एग्जाम टॉप करने वाली लड़कियों को बाद में कौन पीछे खींचता है?

इस साल 10वीं में 4 टॉपर में से 3 लड़कियां ही थीं

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शाबाश बेटी
ये हुई न बात!

जी हां, ये वो वक्त है जब CBSE से लेकर तमाम स्टेट बोर्ड्स अपने रिजल्ट अनाउंस करते हैं और हर जगह यही हेडलाइन आती है - लड़कियों ने लड़कों को पछाड़ा.

CBSE 10वीं का रिजल्ट ही लें. लड़कियों का पास परसेंटेज लड़कों के मुकाबले 3.35% ज्यादा रहा. 88.67% लड़कियों ने एग्जाम पास किया. बीते दो दशक से यही ट्रेंड रहा है. जिन 4 स्टूडेंट्स ने 500 में से 499 नंबर हासिल किए, उनमें से 3 लड़कियां हैं.

CBSE 12वीं बोर्ड में लगातार चौथे साल, लड़की ने टॉप किया है. 13 टॉप स्टूडेंट्स में 11 लड़कियां हैं.

सच पूछिए तो, 2017 के सरकारी डेटा के मुताबिक, देश भर के सेकंडरी और सीनियर सेकंडरी स्कूलों में लड़कों से ज्यादा लड़कियां एनरोल्ड हैं.

लेकिन एक बात मुझे समझ नहीं आती. अगर लड़कियां स्कूलों में टॉप करती हैं, बोर्ड एग्जाम में लड़कों को बहुत पीछे छोड़ देती हैं तो ये ट्रेंड देश के कॉर्पोरेट्स में कहां गुम हो जाता है. वहां कम लड़कियां बॉस क्यों दिखती हैं और सिर्फ कॉर्पोरेट क्यों, कहीं भी!

आंखें खोलिए और इसे महसूस कीजिए.

12वीं के बाद लड़कियां आखिर खो कहां जाती हैं?

आईआईटी चलकर देखें? यहां अगर 10 लड़कों को दाखिला मिलता है तो वहीं एक लड़की ए़डमिशन लेती है. 2017 में आईआईटी कानपुर में 826 स्टूडेंट्स में से सिर्फ 54 लड़कियां थीं. यानी 6.5%. IIT गुवाहाटी में 643 स्टूडेंट्स में से सिर्फ 6.3% लड़कियां.

अब आते है देश की पार्लियामेंट पर. यहां भी 543 मेंबर्स में से महिलाओं की संख्या है सिर्फ 61. यानी 11%. क्या आप जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में सैकड़ों पुरुष जजों के मुकाबले सिर्फ 7 महिलाएं जज रही हैं? 70 साल में सिर्फ 7 !

तो लड़कियों को स्कूल के बाद क्या हो जाता है? क्या वो अचानक कम इंटेलिजेंट हो जाती हैं? क्या वो अपनी पढ़ाई को लेकर सीरियस नहीं रहतीं? क्या वो नौकरी ढूंढ़ने को लेकर डर जाती हैं?

चलिए, नौकरियों की ही बात कर लेते हैं. जितनी महिलाएं नौकरी कर सकती हैं, उनमें से महज 23.7% वर्कफोर्स में शामिल हैं. इस आंकड़े को 75 परसेंट पुरुषों के सामने रख कर देखिए. पुरुष डॉक्टरों के मुकाबले महिला डॉक्टरों का नंबर पता है? 2011 की एक स्टडी के मुताबिक, एलोपैथिक डॉक्टर्स में से सिर्फ 17 परसेंट और गांवों में 6 परसेंट और फीमेल चार्टर्ड अकाउंटेंट्स 22 परसेंट और देश के कॉर्पोरेट बोर्डरूम्स में ये परसेंटेज है सिर्फ और सिर्फ 12.4% !!

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बहुत हो गए आंकड़े, अब बात करते हैं वजहों की

THE INSECURE INDIAN MALE... यानी घर के पिता, दादा, पति, ससुर ....यहां तक कि मां और सास तक जो इस इनसिक्योरिटी का ही हिस्सा हैं.

  • बेटी, बहुत पढ़ लिया, अब शादी कर ले
  • डार्लिंग... बीएड कर लो, ब्यूटीशियन का कोर्स कर लो...घर के पास वाले स्कूल में या पार्लर में काम करेगी तो ठीक रहेगा!
  • बेटी इस घर की बहुएं काम नहीं किया करतीं.

उनकी रोकटोक आपको रोक देती है. आप 12वीं में बेहतरीन मार्क्स हासिल करने के बाद भी अपना शहर छोड़कर बाहर पढ़ने नहीं जा पातीं. शहर छोड़कर नौकरी करने नहीं जा पातीं.

और एक बड़ी वजह...पैरेंट्स बेटी की हायर एजुकेशन पर खर्च करने के बजाय दहेज पर खर्च करना चाहते हैं. पुराने ख्यालातों में फंसे हुए मॉम एंड डैड एक बार फिर सुन लीजिए...दहेज गैर कानूनी है और स्टूडेंट लोन...वो भी एक चीज होती है.पता लगाओ, बेटी पढ़ाओ.

और फाइनली, बच्चे... वो ट्रंप कार्ड जिसके हिसाब से समाज और पुरुष ये उम्मीद करते हैं कि बच्चे संभालना तो सिर्फ और सिर्फ महिलाओं का काम है और वो दौड़ से बाहर हो जाती हैं.

तो अगर 10वीं और 12वीं का जश्न मन गया हो तो हम भविष्य के बारे में सोचें? बड़ा, बेहतर, बराबर.

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