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झारखंड की 'डायन': गांव वाले मार देना चाहते थे, जान बचाकर भागीं- अपने दम पर जीता पद्मश्री

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

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(ये स्टोरी द क्विंट के स्पेशल प्रोजेक्ट 'झारखंड की डायन' का तीसरा भाग है. इसका पहला भाग आप यहां और इसका दूसरा भाग यहां पढ़ सकते हैं. इसके तहत हम झारखंड के अंदरुनी इलाकों में जा कर पता लगाने कि कोशिश कर रहे हैं कि झारखंड की महिलाओं को आज भी 'डायन' क्यों कहा जा रहा है? क्या ये केवल अंधविश्वास है, या उन्हें उनके अधिकारों से वंचित रखने का एक हथियार?)


झारखंड के सराईकेला खरसवां जिले के मडकमडीह गांव की रहने वाली एक सीधी सादी आम गृहणी छुटनी महतो 4-5 अगस्त साल 1995 की दरम्यानी रात को अपने तीन बच्चों में से दो बच्चों के साथ अपने पति का घर, अपना ससुराल छोड़ कर भाग गईं. 

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छुटनी को डर था कि उनके ही ससुराल वाले और ग्रामीण उनकी हत्या कर देंगे. और ये डर जायज भी था. महज 2 दिन पहले 3 अगस्त को छुटनी पर ग्रामीणों ने पंचायत लगाकर 500 रुपए का जुर्माना लगाया था. उसके अगले दिन यानी कि 4 अगस्त को उनको इंसानों का मल - मूत्र पिलाने की कोशिश की थी. 

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

छुटनी महतो

(फोटो- क्विंट हिंदी)

छुटनी महतो बताती हैं कि जैसे ही उनको अंदेशा हुआ वो अपने बच्चों के साथ घर छोड़कर भाग गईं. छुटनी महतो जो बरसात से तरबतर रात में अपने बच्चों के साथ अपनी जान बचाकर भागी थी उनको नहीं पता था कि एक दिन वो पद्म श्री से नवाजी जायेंगी.

खैर पद्मश्री मिलने की बात से पहले छुटनी महतो की आप बीती जानना जरूरी है.

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम मिले पद्मश्री छुटनी महतो से. हमने इनके बारे में पहले से पढ़ा हुआ था और इनसे मिलने की चाह हमने पहले ही बना रखी थी. 

रांची से लगभग 120 किलोमीटर दूर सराइकला खरसवां जिला जहां हमारी मुलाकात हुई छुटनी महतो से. छुटनी अपने घर के आगे आम के पेड़ के नीचे एक कुर्सी लगाकर बैठी हुई थीं, उनके पास एक कीपैड फोन था. हम पहुंचे 'जोहार' हुआ और मैं भी बगल पड़ी एक खाली कुर्सी उठाकर बैठ गया.

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

छुटनी महतो

(फोटो- क्विंट हिंदी)

बातचीत शुरू हुई तो छुटनी कहती हैं कि बीते दो दशक में न जाने कितनी बार उन्होंने अपनी आप बीती सुनाई है. हमारे आग्रह पर जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनकी कहानी में भी हमें वही एलिमेंट मिले जो अन्य कहानियों में थे.

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गांव में बेबाक रहती थीं छुटनी, बच्चों की पढ़ाई पर जोर देती थीं 

छुटनी महतो ने कहा कि वो कोई बागी नहीं थीं लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई से समझौता नहीं करती थीं.

"मैं हर किसी से लड़ने नहीं जाती थी, लेकिन अपने बच्चों की पढ़ाई से समझौता नहीं करती थी. अगर किसी ने बच्चों की शिक्षा में बाधा पैदा करने की कोशिश की तो मैं जवाब दिया. कई बार परिवार के ही लोग कभी बच्चों को कुछ काम बता देते थे या कभी कहीं भेज देते थे तो मैं इसका विरोध करती थी. मेरे बच्चे स्कूल जाएंगे, पढ़ेंगे कोई अन्य काम जो उनकी पढ़ाई में व्यवधान डाले वो नहीं करेंगे फिर चाहे वो खेती बाड़ी हो या घर का कोई काम."
छुटनी महतो

बस यूं ही छुटनी महतो की छोटी छोटी बातें उनके ही परिवार के लिए असहनीय होने लगीं. 

गांव में एक दिन एक लड़की की तबियत खराब हुई, दोष लगने लगा छुटनी महतो पर

छूटनी बताती हैं कि उनके घर के पास ही उनकी रिश्तेदारों की ही एक लड़की थी जो अक्सर उनके पास ही रहती थी. वहीं खेलना वहीं खाना वहीं पढ़ाई सब कुछ. छुटनी के घर अक्सर आने वाली ये लड़की बीमार हो गई थी और इस तरह शुरू हुआ छुटनी महतो को डायन साबित करने का गंदा और खतरनाक खेल.

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

छुटनी महतो

(फोटो- क्विंट हिंदी)

ग्रामीण उसे इलाज के बजाय झाड़ फूंक करने वाले के पास लेकर जाते हैं लेकिन उसकी तबीयत ठीक नहीं होती है. इन्हीं झाड़ फूंक करने वाले किसी ओझा ने उसकी हालत में सुधार न होता देख उसपर डायन की छाया होना बता दिया.

"उसकी तबीयत खराब होने के बाद और ओझाओं की मिली भगत से ग्रामीणों ने और मेरे ही परिवार वालों ने मुझे डायन घोषित कर दिया. मेरे खिलाफ पंचायत बैठाई, जुर्माना लगाया, फिर मुझे मारा गया, घर से घसीट कर सबके सामने मुझे पीटा गया, इतने में भी जब उनकी संतोष नहीं हुआ तो मुझे मैला पिलाने की कोशिश की, जिसके बाद फिर मैंने भागने का सोचा."
छुटनी महतो

भागने के एक साल बाद पता चला जिस लड़की के चलते छुटनी को डायन बोला वो प्रेगनेंट थी, बीमार नहीं 

छुटनी के मंझले बेटे अतुल महतो जो पेशे से एक शिक्षक हैं और पास के ही सरकारी स्कूल में पढ़ाते हैं उन्होंने बताया कि जिस लड़की को बीमारी के चलते झाड़ फूंक कराने ले गए थे वो बीमार नहीं बल्कि प्रेगनेंट थी.

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मेरी मां के साथ जो घटना हुई थी उसमें हमारे परिवार वालों का बड़ा हाथ था. हमारे गांव की ही हमारे बड़े पापा की एक बेटी की तबीयत खराब हो गई थी. ओझा लोगों ने उनको बताया कि आपकी बेटी को कोई बीमारी नही है बल्कि उसे डायन विद्या लगी है.  

छुटनी की कहानी में 5 ओझा थे. पांचों ने कहा था कि वो डायन है

"ओझाओं ने इस तरह संकेत देकर मेरी मां को डायन करार दे दिया. मेरी मां जान बचाकर भाग गईं. वो तो एक साल बाद हमको एक डॉक्टर के जरिए पता चला कि उस बच्ची को कोई बीमारी नही है बल्कि, उसकी शादी नही हुई थी और वो प्रेग्नेंट थी."
अतुल महतो

झारखंड की सुनसान रातों में छुटनी महतो अपने रिश्तेदारों के घर पहुंची और वहां से फिर अपने भाई के घर. छुटनी के हालात देखकर उनके भाई ने ना सिर्फ उनकी आर्थिक मदद की बल्कि घर बनाने के लिए जमीन का टुकड़ा भी दिया था.

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

अपनी बेटी अतुल महतो के साथ छुटनी महतो

(फोटो- क्विंट हिंदी)

छुटनी के साथ जो हो रहा था उसके पीछे सिर्फ एक बीमार लड़की का मामला नही था. छुटनी चाहती थी कि उनके बच्चे शिक्षित हों और पढ़ लिखकर कुछ बने. इसके लिए वो बहुत मेहनत कर रही थी लेकिन गांव वालों ने उनकी इस मेहनत को नजरअंदाज करके उनकी सफलता का कारण जादू टोने को दिया.

धीरे धीरे छुटनी अपने ही गांव के लिए डायन बन गई थी 

"मैंने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजा क्योंकि मैं पढ़ी लिखी नही हूं, लेकिन कई लोगों के बारे में सुनती थी किसी का बेटा शिक्षक बन रहा है तो किसी का बेटा डॉक्टर बन रहा है तो अगर नसीब में होगा तो मेरे बेटे भी कुछ बनेंगे."
छुटनी महतो

छुटनी महतो आगे कहती हैं कि, "लेकिन गांव वाले चिढ़ने लगे कि आखिर मेरे पास पढ़ाने के लिए पैसा कहां से आ रहा है. वो कहने लगे कि मैं जादू टोना करती हूं."

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छुटनी महतो आज अपने उसी गांव से 12-15 किलोमीटर दूर डायन हत्या के खिलाफ लड़ाई लड़ रही हैं

अपने ऊपर हुए अत्याचारों से लड़ते हुए छुटनी महतो ने वर्ष 2001 में अपनी जैसी बाकी औरतें जो डायन आरोपों का शिकार हो रही थीं उनकी मदद करने का फैसला लिया. छुटनी के घर पर हम मिले जुबा और दुक्खो मांझी से. दोनों की लव मैरिज हुई है और उनके 2 बच्चे हैं, लेकिन सब कुछ अच्छा होते हुए भी आज दोनों अपने घर से बाहर रहने को मजबूर हैं. 

छुटनी ने बताया कि कैसे दुक्खो मांझी काम के सिलसिले में गांव से बाहर निकले और एक फैक्ट्री में काम मिलने पर ज्यादा दिन फैक्ट्री में ही रहने लगे थे ताकि कुछ पैसा बचा पाए. 

लेकिन गांव वालों ने दुक्खो के बाहर जाने का कारण नौकरी और पैसा नही समझा बल्कि इसके लिए जुबा को दोषी ठहराया और ये कहने लगे कि जुबा जादू टोना करती है और इसलिए उसका पति उसके साथ नही रहता है. 

झारखंड की 'डायन' की हमारी खोज में हम पद्मश्री छुटनी महतो से मिले.

छुटनी महतो के पति दुक्खो मांझी और उनकी बेटी अतुल महतो

(फोटो- क्विंट हिंदी)

दुक्खो मांझी ने कहा कि " सर मैं तो ड्यूटी करने जाता हूं तभी गांव वालों ने इसको डायन बोलना चालू कर दिया. किसी को भी बुखार हुआ तो इसको डायन बोलते हैं. इस पर आरोप लगाए की ये डायन है इसलिए इसका पति इसके साथ नही रहता है. मारने पीटने के लिए घर भी गए थे. कोई गारंटी नहीं है किसी दिन मार काट के फेंक भी सकते हैं ये लोग."

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छुटनी महतो अब तक लगभग 150 से ज्यादा डायन पीड़ित महिलाओं की मदद कर चुकी हैं वह भी बिना किसी आर्थिक सहायता के. छुटनी कहती हैं कि ये लड़ाई परिवर्तन के लिए लड़ रही हैं.   

किसी की बेटी पढ़ाई लिखाई करके आगे बढ़ जाती है, कुछ अच्छा करने की सोचती है तो ये पुरुष प्रधान समाज उसको आगे नही बढ़ने देता है.  तो 2001 से अब तक 165 महिलाओं की हम जान बचाएं हैं. कई बार तो दहेज प्रताड़ना से जूझ रही महिलाओं को भी बचाया है. 

छूटनी कहती हैं कि उनकी लड़ाई इस कुप्रथा से और वो तब तक हार नही मानेंगी जब तक कि इसको उखाड़ नही फेंकती है.

"हम काम कर रहे हैं बिना कुछ पैसे लिए करते हैं. डायन वगैरह कुछ नहीं होता है. मां किसी की मां ही होती है. हम डायन हैं तो सरकार से हमारे घर के सामने नोटिस लगवा दो कि ये डायन है."
छूटनी महतो
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