‘जूली 2’ रिव्यू
करीब 13 साल पहले 2004 में नेहा धूपिया स्टारर ‘जूली’ रिलीज हुई थी. 2017 में एक्ट्रेस राय लक्ष्मी उसकी सीक्वल जूली 2 लेकर आई हैं. इस फिल्म के जरिए दक्षिण भारतीय अभिनेत्री राय लक्ष्मी बॉलीवुड में डेब्यू कर रही हैं. फिल्म को लिखा, को-प्रोड्यूस और डायरेक्ट किया है दीपक शिवदासानी ने.
इसकी ‘संस्कारी एडल्ट’ कहानी सेंसर बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पहलाज निहलानी ने परोसी है. निहलानी इस फिल्म के को-प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर हैं. फिल्म को एडल्ट सर्टिफिकेट मिला है. फिल्म बोल्ड सीन्स से भरी पड़ी है. लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जिसे देखने के लिए वक्त और पैसा लगाया जाए.
अब बात करते हैं कहानी की.जूली का बचपन से सपना होता है फिल्मों में आने का. कहानी में वही घिसा-पीसा प्लाॅट है कास्टिंग काउच, ब्लैकमेलिंग, काॅम्प्रोमाइज का जिससे जूली को गुजरना पड़ता है.
उसकी जिंदगी में अलग-अलग लोगों की एंट्री होती है. इस दौरान वो क्रिश्चियन महिला ऐनी के पास पहुंचती है. उसे काम मिलना शुरू हो जाता है. लेकिन एक समय के बाद फिर उसके पास काम नहीं होता है. तब उसे समझौते करने पड़ते हैं. इस दौरान उसे बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं.
फिल्म के अन्य कलाकारों में पंकज त्रिपाठी, रति अग्निहोत्री, रवि किशन हैं जिनके टैलेंट को नजरअंदाज किया गया है. फिल्म में पाॅपुलर टीवी शो सीआईडी के अभिजीत भी हैं जो आपको अजीब डायलाॅग बोलते दिखेंगे- ‘ये ढाई किलो का हाथ नहीं ..ढाई फुट का हाथ है’. ‘चेन्नई रसम तंदूर गरम’ ..जैसे उटपटांग लिरिक्स वाले गाने हैं. सेकेंड हाफ में गानों का ओवरफ्लो है.
कुल मिलाकर कह सकते हैं कि ये फिल्म देखी तो झेलनी पड़ेगी. डायरेक्टर दीपक शिवदासानी ने निराश ही किया है. फिल्म की कहानी बोर करने वाली है. इसलिए बेहतर है कि फिल्म से दूरी बनाएं.
इस फिल्म को मिलते हैं 5 में से 0.5 क्विंट!
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)