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क्या पश्चिम बंगाल की पॉलिटिक्स में खुलेआम चल रही है खरीद-फरोख्त?

अब तृणमूल क्या कर रही है अपनी पार्टी के लोगों को बचाने के लिए?

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वीडियो एडिटर: विशाल कुमार

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मुकुल की मुस्कान सोवन की संभावित वापसी देखकर बंगाल के वोटर्स पूछे माजरा क्या है भाई?

बंगाल की राजनीति में फिलहाल मुकुल रॉय जैसा शायद ही दूसरा कोई हो. राज्य में लोकसभा चुनाव में बीजेपी की भारी सफलता के बाद रॉय साहब ने ममता दीदी की तृणमूल कांग्रेस पर एक और हमला किया. इस बार उन्होने बंगाल के 3 मौजूदा विधायक और करीब 50 तृणमूल पार्षद को बीजेपी का दामन थमा दिया है.

लेकिन तृणमूल सबसे ज्यादा तब घबराई जब मुकुल ने कहा,

“ये लंबे समय से हमारी योजना थी कि जब तक जरूरी हो, हम अपने लोगों को तृणमूल में रखें, ताकि वे भीतर से बीजेपी के लिए काम कर सकें. अब वक्त आ गया है कि उनमें से कुछ लोगों को एक-एक कर बाहर निकाला जाए. फिलहाल एक बार में सबके नामों का खुलासा करने की कोई जल्दबाजी नहीं है.”
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इस उठापटक के बाद बीजेपी के पास बंगाल के नॉर्थ 24 परगना जिले में 2 विधायक और 4 नगर पालिका आ गई है. यहां पहले बीजेपी की कोई मौजूदगी नहीं थी. वहीं बीरभूम जिले में फिलहाल एक विधायक और कई तृणमूल की चुनिंदा डिस्ट्रिक्ट पोजिशन भी बीजेपी ले गई.

दोनों पार्टियों के सूत्रों की मानें तो मुकुल के कहने पर कम से कम 8 और विधायक बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. इनमें से 4 नॉर्थ 24 परगना जिले के हैं. इस मुश्किल भरी स्थिति की समीक्षा करने के लिए नॉर्थ 24 परगना में तृणमूल के जिला अध्यक्ष और बंगाल सरकार में मंत्री ज्योतिप्रिया मल्लिक ने एक आपात बैठक बुलाई. इसपर बीजेपी ने कह दिया कि मल्लिक साहब खुद भी बीजेपी की तरफ आने की कोशिश कर रहे थे!

ये सब देख के वोटर्स के दिमाग में 2 बात आ रही है.

  • अगर हुमारे चुने हुए प्रतिनिधि एक पार्टी से दूसरी पार्टी ऐसे ही करते रहेंगे तो किसी भी पार्टी के लिए वोट करने का मतलब क्या है?
  • ऐसी खुलेआम हॉर्स-ट्रेडिंग बिल्कुल अनदेखे तरीके से कैसे चल रही है?

वैसे, सांसद और विधायक के लिए एक कानून तो है, जिसके तहत ये रोका जा सकता है. एंटी-डिफेक्शन लॉ के तहत कोई भी विधायक अगर इच्छा से अपनी पार्टी छोड़ता है तो उन्हें सदन में अयोग्य ठहराया जा सकता है. ये फैसला सदन के चेयरमैन या फिर स्पीकर लेते हैं लेकिन इस कानून में छिपे काफी सारे ग्रे-एरियाज का इस्तेमाल पॅालिटिकल पार्टी सालों से कर रही हैं, ममता दीदी की तृणमूल ने भी किया है.

इसका सबसे बड़ा उदाहरण है तुषार कांति भट्टाचार्या. तृणमूल के एक सांसद जिनको मुकुल रॉय ने बीजेपी में दाखिला दिलवाया. भट्टाचार्या ने 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट से जीत हासिल की थी लेकिन उसके कुछ ही दिन बाद वो तृणमूल में शामिल हो गए. लेकिन कागजात पर वो अभी भी कांग्रेस से विधायक हैं और एक बार फिर उन्होंने पाला बदल लिया और बीजेपी की नैया में कूद पड़े.

राजनीति का खेल तो कोई इनसे सीखे!

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दूसरी तरफ, तृणमूल ने इस पेचीदगी का इस्तेमाल करते हुए कहा कि सिर्फ 1 ही विधायक उनके पार्टी से गए हैं. बाकी तो उनके पार्टी के हैं ही नहीं! लेकिन कहते हैं ना, गलत कर्म का जवाब ऊपर वाला कभी ना कभी तो मांग ही लेता है!

इसके अलावा तृणमूल और क्या कर रही है अपनी पार्टी के लोगों को बचाने के लिए?

पहले तो वो उन नेताओं से फिर से मेल-मिलाप बढ़ा रही है जिनको उन्होंने किनारे कर दिया था  जैसे की कोलकाता के पूर्व मेयर और तृणमूल मंत्री सोवन चटर्जी सोवन दा याद हैं?

वही सोवन दा जिन्होंने पिछले नवंबर में अपनी मेयर की कुर्सी और मंत्री का पद दोनों छोड़ दिया था, जब उनके एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर और फिर तलाक के सारे डिटेल्स की आलोचना बांग्ला मीडिया हाउस में होने लगी थी. इसके अलावा 2016 के नारदा एक्सपोज में भी उनकी तहकीकात की जा रही है. पर्सनल लाइफ जब पब्लिक हो गई तब सोवन दा ने पॉलिटिक्स से सबैटिकल लेने का फैसला लिया और टीएमसी ने भी उन्हें लेने दिया. ये सबको पता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले भी सोवन दा को बीजेपी से ऑफर आया था.

टीएमसी की ये पूरी कोशिश है कि ये ऑफर वो बिल्कुल मंजूर ना करें. बाकी दल-बदल के बारे में तृणमूल ने कहा कि वो “गनपाॅइंट” पर कराए गए थे.

ये सुनकर काफी लोगों को हंसी भी आई क्योंकि पिछले 8 सालों में बिन बात का ‘गन’ निकालने का आरोप सिर्फ टीएमसी पर ही लगा है.

फिलहाल, वो बीजेपी जो कभी “भाग मुकुल भाग” का नारा दिया करती थी, अब उन्हीं के कंधे पर सवार होकर बंगाल जीतने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ, जो कभी ना सोचा था, वो हो गया. ममता दीदी ने जिनको नकार कर निकाल दिया था, उन्हीं की तरफ वो दौड़ते हुए आ रही हैं. ये सब तमाशा देखकर बंगाल के वोटर्स बस एक ही चीज पूछ रहे हैं

“ठाकुर, आर कोतोई रोंगो देखी दुनियाए?”

(दुनिया के और कितने रंग देखूं)

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