ADVERTISEMENTREMOVE AD

अमृतसर हादसा: एक साल बाद भी ट्रेन की आवाज सुन कांपने लगते हैं लोग

2018 में दशहरे के दौरान अमृतसर ट्रेन हादसे में 62 लोग मारे गए थे लेकिन उनके परिवार वाले अब भी ट्रॉमा से गुजर रहे हैं

छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

अमृतसर में पिछले साल दशहरा मेले के दौरान डीएमयू ट्रेन से कट कर 62 लोगों की मौत हो गई थी. इस दर्दनाक हादसे का एक साल पूरा हो चुका है. लेकिन अब भी इसे याद करते हुए वहां के लोगों की रूह कांप जाती है. मरने वालों के परिवार वाले अब भी इस हादसे से मिले मेंटल ट्रॉमा से उबर नहीं पाए हैं.

मेंटल ट्रॉमा झेल रहे लोगों के लिए इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है. हादसे में मारे एक शख्स के परिवार के सदस्य का कहना है

“जब भी ट्रेन की आवाज सामने आती है मैं कांपने लगता हूं. ऐसा लगता है कि जैसे कोई ट्रेन के नीचे कुचला जा रहा है.” 
ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस हादसे में जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिवार वालों को सात लाख रुपये का मुआवजा मिला है. लेकिन जिस मेंटल ट्रॉमा से ये गुजर रहे हैं, उसे कम करने को लेकर कोई खास अवेयरनेस नहीं दिखती. ‘द क्विंट’ ने हादसे के शिकार लोगों के परिवार के लोगों से मुलाकात की. जोड़ा फाटक के पास पटरियों के किनारे की कॉलोनी में रहने वालों ने बयां किया कि कैसे सामने गुजरती ट्रेन की आवाज सुन कर वे बुरी तरह कांप जाते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

मुझे हादसे के शिकार लोगों की चीखें अब भी सुनाई पड़ती है

हादसे में अपने पिता को गंवा चुकी सोनिया ने कहा, “ जो लोग ट्रेन से कट कर मारे गए, मुझे अब भी उनकी दर्दनाक चीखें सुनाई पड़ती है.. ऐसा लगता है कि हर कोई दर्द से चीख-चिल्ला रहा है. अभी भी ऐसा दर्द महसूस होता है. पिछले साल दशहरे में वह बीमार पड़ गई थीं. दशहरे मेले में जाने से पहले उनके पिता ने वादा किया था कि वो उसके लिए नारियल पानी लेकर आएंगे.” वह बताती हैं

मेरे पिता ने कहा वह दशहरा मेला देखने जा रहे हैं. उन्होंने पूछा, मुझे क्या खाना है. मैंने कहा, कुछ नहीं. उन्होंने पूछा कि क्या मैं जलेबी या कोई और मिठाई खाना चाहती हूं. लेकिन मैंने कहा, नहीं. उन्होंने तब खुद नारियल पानी लाने का वादा किया. 
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मैंने चिंता में अपने छोटे बेटे का कॉलेज छुड़वा दिया

विजय कुमार इस हादसे को याद करते हुए कहते हैं, '' मैं उस दिन सारी रात अपने बेटे को तलाश करता रहा. उसकी बॉडी ट्रेन से कट चुकी थी. उसे मैंने उसके कपड़ों और घड़ी से पहचाना. अपना दुख बयां करते वक्त उनके 18 साल के बेटे की स्केच बुक उनके सामने पड़ी थी. एक फोटो फ्रेम भी सामने था, जिसमें बेटे की मौत की तारीख लिखी थी.

अपने छोटे बेटे को देखते हुए वह कहते हैं

मैंने इसे कॉलेज छोड़ने के लिए कह दिया है. कॉलेज काफी दूर है. मुझे बड़ी चिंता होती है. आपको पता नहीं होता है क्या होने वाला है. 
ADVERTISEMENTREMOVE AD

विजय भगवान पर पूरा भरोसा जताते हैं. लेकिन अपने 19 साल के बेटे को खो चुकीं रीता पूरी तरह दहल चुकी हैं. वह कहती हैं कि जब भगवान ने मेरे बेटे की मदद नहीं की तो मैं क्यों उनके आगे हाथ जोड़ूं. उनके सामने बैठे उनके पति कहते हैं, जब हादसा हुआ तो भारी अफरातफरी फैल गई. कुछ लोगों ने कहा कि 500 लोगों की मौत हो गई. कुछ लोग कह रहे थे 200 लोग मारे गए हैं. मुझे जब पता चला तो मैं पटरियों की ओर दौड़ा. मेरे बेटे की लाश मेरे सामने पड़ी थी.

मुकेश कहते हैं-

पटरियों की ओर देखते ही मेरा सिर चकराने लगता है. ट्रेन की आवाज सुनते ही मैं कांपने लगता हूं.  
ADVERTISEMENTREMOVE AD

मेरा तीन साल का बेटा कहता है उस रास्ते से मत जाओ

प्रीति के पति इस हादसे के शिकार हुए थे. हादसे के बाद उनके सास-ससुर ने उन्हें घर से बाहर कर दिया. वह अपने साढ़े तीन साल के बेटे के साथ रेलवे ट्रैक से मुश्किल से एक किलोमीटर दूरी पर बने एक कमरे के मकान में रहती हैं. वह कहती हैं “ अगर मैं ट्रैक के नजदीक भी जाऊं तो मेरा तीन साल का बेटा कहने लगता है वहां मत जाओ.’’ प्रीति कहती हैं कि लोगों को मुआवजा देना सही है. लेकिन नौकरी मिलती तो ज्यादा अच्छा होता. फिर भी यह दर्द कभी खत्म नहीं होगा.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×