वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
अमृतसर में पिछले साल दशहरा मेले के दौरान डीएमयू ट्रेन से कट कर 62 लोगों की मौत हो गई थी. इस दर्दनाक हादसे का एक साल पूरा हो चुका है. लेकिन अब भी इसे याद करते हुए वहां के लोगों की रूह कांप जाती है. मरने वालों के परिवार वाले अब भी इस हादसे से मिले मेंटल ट्रॉमा से उबर नहीं पाए हैं.
मेंटल ट्रॉमा झेल रहे लोगों के लिए इसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है. हादसे में मारे एक शख्स के परिवार के सदस्य का कहना है
“जब भी ट्रेन की आवाज सामने आती है मैं कांपने लगता हूं. ऐसा लगता है कि जैसे कोई ट्रेन के नीचे कुचला जा रहा है.”
इस हादसे में जिन लोगों की मौत हुई है उनके परिवार वालों को सात लाख रुपये का मुआवजा मिला है. लेकिन जिस मेंटल ट्रॉमा से ये गुजर रहे हैं, उसे कम करने को लेकर कोई खास अवेयरनेस नहीं दिखती. ‘द क्विंट’ ने हादसे के शिकार लोगों के परिवार के लोगों से मुलाकात की. जोड़ा फाटक के पास पटरियों के किनारे की कॉलोनी में रहने वालों ने बयां किया कि कैसे सामने गुजरती ट्रेन की आवाज सुन कर वे बुरी तरह कांप जाते हैं.
‘मुझे हादसे के शिकार लोगों की चीखें अब भी सुनाई पड़ती है’
हादसे में अपने पिता को गंवा चुकी सोनिया ने कहा, “ जो लोग ट्रेन से कट कर मारे गए, मुझे अब भी उनकी दर्दनाक चीखें सुनाई पड़ती है.. ऐसा लगता है कि हर कोई दर्द से चीख-चिल्ला रहा है. अभी भी ऐसा दर्द महसूस होता है. पिछले साल दशहरे में वह बीमार पड़ गई थीं. दशहरे मेले में जाने से पहले उनके पिता ने वादा किया था कि वो उसके लिए नारियल पानी लेकर आएंगे.” वह बताती हैं
मेरे पिता ने कहा वह दशहरा मेला देखने जा रहे हैं. उन्होंने पूछा, मुझे क्या खाना है. मैंने कहा, कुछ नहीं. उन्होंने पूछा कि क्या मैं जलेबी या कोई और मिठाई खाना चाहती हूं. लेकिन मैंने कहा, नहीं. उन्होंने तब खुद नारियल पानी लाने का वादा किया.
‘मैंने चिंता में अपने छोटे बेटे का कॉलेज छुड़वा दिया’
विजय कुमार इस हादसे को याद करते हुए कहते हैं, '' मैं उस दिन सारी रात अपने बेटे को तलाश करता रहा. उसकी बॉडी ट्रेन से कट चुकी थी. उसे मैंने उसके कपड़ों और घड़ी से पहचाना. अपना दुख बयां करते वक्त उनके 18 साल के बेटे की स्केच बुक उनके सामने पड़ी थी. एक फोटो फ्रेम भी सामने था, जिसमें बेटे की मौत की तारीख लिखी थी.
अपने छोटे बेटे को देखते हुए वह कहते हैं
मैंने इसे कॉलेज छोड़ने के लिए कह दिया है. कॉलेज काफी दूर है. मुझे बड़ी चिंता होती है. आपको पता नहीं होता है क्या होने वाला है.
विजय भगवान पर पूरा भरोसा जताते हैं. लेकिन अपने 19 साल के बेटे को खो चुकीं रीता पूरी तरह दहल चुकी हैं. वह कहती हैं कि जब भगवान ने मेरे बेटे की मदद नहीं की तो मैं क्यों उनके आगे हाथ जोड़ूं. उनके सामने बैठे उनके पति कहते हैं, जब हादसा हुआ तो भारी अफरातफरी फैल गई. कुछ लोगों ने कहा कि 500 लोगों की मौत हो गई. कुछ लोग कह रहे थे 200 लोग मारे गए हैं. मुझे जब पता चला तो मैं पटरियों की ओर दौड़ा. मेरे बेटे की लाश मेरे सामने पड़ी थी.
मुकेश कहते हैं-
पटरियों की ओर देखते ही मेरा सिर चकराने लगता है. ट्रेन की आवाज सुनते ही मैं कांपने लगता हूं.
‘मेरा तीन साल का बेटा कहता है उस रास्ते से मत जाओ’
प्रीति के पति इस हादसे के शिकार हुए थे. हादसे के बाद उनके सास-ससुर ने उन्हें घर से बाहर कर दिया. वह अपने साढ़े तीन साल के बेटे के साथ रेलवे ट्रैक से मुश्किल से एक किलोमीटर दूरी पर बने एक कमरे के मकान में रहती हैं. वह कहती हैं “ अगर मैं ट्रैक के नजदीक भी जाऊं तो मेरा तीन साल का बेटा कहने लगता है वहां मत जाओ.’’ प्रीति कहती हैं कि लोगों को मुआवजा देना सही है. लेकिन नौकरी मिलती तो ज्यादा अच्छा होता. फिर भी यह दर्द कभी खत्म नहीं होगा.
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