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जयाजीराव से ज्योतिरादित्य तक, कुछ ऐसा है सिंधिया परिवार का इतिहास

सिंधिया ने थामा BJP का दामन, ये पहली बार नहीं जब परिवार ने बदल लिया पाला

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

18 सालों तक कांग्रेस का महत्वपूर्ण युवा चेहरा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने BJP का दामन थाम लिया, लेकिन ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सिंधिया खानदान के किसी शख्स ने पाला बदला हो.

मराठा वंशज सिंधियाओं का ग्वालियर में सन 1700 से लगातार शासन रहा. जयाजीराव सिंधिया ने ग्वालियर पर 1843 से 1886 तक शासन किया. हालांकि अपने शासनकाल में 'ब्रिटिश शासकों के प्रति ज्यादा वफादार' होने की वजह से उन्हें 'गद्दार' कहा गया.

रानी लक्ष्मीबाई के खिलाफ ब्रिटिश हुकूमत की तरफदारी करने का भी उनके परिवार पर आरोप लगा. स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे को पकड़कर फांसी देने का आरोप भी सिंधिया परिवार पर है.

जीवाजीराव सिंधिया ग्वालियर के गैरराजनीतिक राजा थे. जीवाजीराव ग्वालियर के आखिरी शासक थे और जीवनभर राजनीति से दूर रहे. 1941 में उनकी शादी लेखा दिव्येश्वरी देवी से हुई जिन्हें बाद में विजयाराजे के नाम से जाना गया. विजयाराजे, सिंधिया घराने की पहली शख्स थीं, जिन्होंने राजनीति में प्रवेश किया.

ग्वालियर की 'राजमाता' विजयाराजे

विजयाराजे को ग्वालियर की 'राजमाता' के तौर पर जाना जाता रहा. उन्होंने 1957 में गुना लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और लोकसभा सांसद के तौर पर निर्वाचित हुईं. फिर दस साल बाद ही राजे ने कांग्रेस छोड़ दी और ग्वालियर के ही अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर जन संघ से जुड़ गईं.

1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल हुई. 1989 में वो बीजेपी टिकट पर फिर से सांसद बनीं और पार्टी की उपाध्यक्ष बनाई गईं. उनकी 2 बेटियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे हमेशा से ही बीजेपी में रहीं. वसुंधरा राजे 2 बार राजस्थान की सीएम बनीं जबकि यशोधरा राजे मध्य प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं.

सिंधिया परिवार के 'ब्लैक शीप' माधवराव

विजयाराजे के बेटे और ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया बीजेपी से जुड़े इस परिवार के ‘ब्लैक शीप’ के तौर पर जाने जाते रहे. माधवराव ने अपनी राजनीति तो जनसंघ से ही शुरू की और इमरजेंसी हटाए जाने के बाद 1977 में वो गुना से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीते, लेकिन 1980 में उन्होंने पाला बदला और गुना में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते और आखिर तक कांग्रेस का ही हिस्सा बने रहे.

माधवराव सिंधिया, राजीव गांधी कैबिनेट में रेलवे मंत्री रहे और नरसिन्हा राव सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री थे. 1996 में मतभेदों की वजह से उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और खुद की पार्टी बना ली मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस. लेकिन ये विद्रोह कुछ ही वक्त के लिए था और उन्होंने जल्द ही घर वापसी कर ली.

विमान हादसे में पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद 2001 में ज्योतिरादित्य कांग्रेस से जुड़े और 2002 में कांग्रेस के टिकट पर गुना से जबरदस्त जीत दर्ज की. ज्योतिरादित्य ने बीजेपी उम्मीदवार को 4 लाख से ज्यादा वोटों से हराया.

11 मार्च को अपने पिता के जन्मदिन के दिन सिंधिया परिवार के ‘ब्लैक शीप’ कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद ज्योतिरादित्य भी बीजेपी में शामिल हो गए.

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