वीडियो प्रोड्यूसर: कनिष्क दांगी, नमन शाह
वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज/मोहम्मद इरशाद आलम
ये जो इंडिया है ना, ये एक लोकतंत्र है, और ये जो USA है ये भी एक लोकतंत्र है. लेकिन यूएस में जॉर्ज फ्लॉयड (George Floyd) को इंसाफ मिलता है, पर यहां, भारत में फैजान (Faizaan) को इंसाफ नहीं मिलता. उसे भुला दिया जाता है.
25 जून को अमेरिकन पुलिस कर्मी डेरेक चौविन (Derek Chauvin) , जो एक वीडियो में जॉर्ज फ्लॉयड की गर्दन पर अपना घुटना दबाए हुए दिखा था, उसे फ्लॉयड की हत्या के लिए साढ़े 22 साल की सजा दी गई है. हत्या के सिर्फ 13 महीने बाद…और इसका एकलौता सबूत क्या था? ये वीडियो जो एक सचेत नौजवान ने उस वक्त शूट किया था.
फैजान का क्या? 24 फरवरी 2020 को कर्दमपुरी में नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के दंगों के समय शूट किया गया था ये वीडियो, इसमें फैजान और 4 अन्य युवक दिख रहे थे. निहत्ते, बुरी तरह पीटे हुए, सड़क पर पड़े हुए. 5-6 पुलिस वालों ने उन्हें लाठियों के जोर पर जमीन पर लेटा रखा था. उनसे ‘जन गन मण’ गवा रहे थे. इस वीडियो के शूट होने के दो दिन बाद, चोटों के कारण फैजान की मौत हो गई थी.
यूएस में जब जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या करने वाले को सजा दी जाती है तो वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद कहते हैं कि, 'ये भेदभाव के खिलाफ जंग में एक बड़ा कदम है'. वो जॉर्ज फ्लॉयड के परिवार को फोन भी करते हैं, ताकि उनका दर्द थोड़ा कम हो सके. लेकिन फैजान के परिवार का क्या? क्या उन्हें यहां के राष्ट्रपति ने कॉल किया? किसी मंत्री, किसी सरकार अफसर का कॉल आया? जी नहीं, क्या उन्हें अदालत में इंसाफ मिला? जी नहीं, जिस पुलिस को गुनहगारों की तलाश करनी है, जब वही खुद उनकी पहचान छिपा रही है तो फैजान के परिवार को कैसे इंसाफ मिलेगा?
जबकि वीडियो सबूत की वजह से जॉर्ज फ्लॉयड के दोषी को 22 साल की जेल हो गई, फैजान के केस में...जो पुलिसवाले कैमरे में फैजान और चार अन्य लोगों को पीटते और गाली देते कैद हुए थे, उन पर आज भी कोई केस नहीं हुआ! इससे भी ज्यादा चौंकाने वाली बात ये है कि आज तक दिल्ली पुलिस उस वीडियो में दिख रहे पुलिसकर्मियों को पहचान नहीं पाई है! और सिर्फ एक नहीं, दो वीडियो हैं. थोड़ी दूरी से ली गई इस वीडियो में सड़क पर लेटे फैजान और अन्य लोगों को पुलिसकर्मी घेरे दिखते हैं.
ये वीडियो पुलिसकर्मियों की पहचान के लिए काफी क्यों नहीं हैं? ये वीडियो साफ तौर से एक पुलिसकर्मी ने रिकॉर्ड किया...
क्या दिल्ली पुलिस ये उम्मीद करती है कि हम मान लेंगे कि वो पता नहीं कर पाएं ये वीडियो किसने ली थी?
आवाज पहचानना, इमेज एनहांसमेंट, इलाके में ड्यूटी पर पुलिसकर्मियों की लोकेशन मैच करना... क्या इनमें से कुछ मुमकिन नहीं था?
क्या कोई ड्यूटी रोस्टर नहीं है जिससे पता चले कि वीडियो रिकॉर्ड होने के समय कर्दमपुरी में कौन पुलिसवाले मौजूद थे?
और सबसे आसान... जो चार लोग उसे हमले और उत्पीड़न में जिंदा बच गए...क्या उन्होंने पुलिसकर्मियों का नाम नहीं बताया? या फिर उन्हें कुछ न कहने के लिए धमकाया गया?
क्विंट से बात करते हुए तत्कालीन ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ने कहा था कि-
वायरल वीडियो में दिख रहे पुलिसकर्मियों पर हत्या का आरोप नहीं लगाया जा सकता क्योंकि वे लोगों को पीटते हुए नहीं दिख रहे थे.
ठीक है, लेकिन उनके खिलाफ कोई भी आरोप क्यों नहीं लगाया गया? लापरवाह गतिविधि की वजह से एक व्यक्ति की मौत के लिए उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 304A के तहत मामला क्यों दर्ज नहीं हुआ? पुलिसकर्मी घायल फैजान को हॉस्पिटल ले जाने के बजाए...उसे गाली देते दिखे थे.
वो लापरवाही थी...हो सकता है कि फैजान को हॉस्पिटल ले जाने में हुई देरी उसकी मौत की वजह बनी हो. उनके खिलाफ धारा 341 के तहत भी आरोप लगाया जा सकता था (गलत तरीके से रोकने के लिए) - लेकिन वो भी फैजान की FIR में नहीं था.
सबसे अहम बात ये है कि इन पुलिसकर्मियों पर धारा 295A के तहत भी आरोप लगाया जाना चाहिए था (किसी व्यक्ति के धर्म या धार्मिक विश्वास का अपमान करना) - 5 मुसलमानों को 'जन गण मन ..' गाने के लिए कहना .. साम्प्रदायिक दुर्व्यवहार का एक स्पष्ट रूप था.
फिर भी FIR में धारा 295A नहीं है. ये सभी अपराध... और भी गंभीर हो जाते हैं, क्योंकि इनको कानून के रखवालों ने अंजाम दिया. आज भी फैजान के परिवार के पास FIR की कॉपी नहीं है.. और न ही उनके पास उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की कॉपी है.
तत्कालीन ज्वाइंट सीपी आलोक कुमार ने क्विंट से यह भी कहा था- ''उन पुलिसकर्मियों के लिए यह सही नहीं था कि वे उनसे उस वक्त राष्ट्रगान गवाएं, जब उन्हें तत्काल चिकित्सा की जरूरत हो. हम विभागीय जांच कर रहे हैं.'' एक साल बाद, क्या हुआ उस विभागीय जांच का? कुछ नहीं. जॉर्ज फ्लॉयड का हत्यारा जेल में है, जबकि फैजान की मौत का कारण बने पुलिसकर्मी. हत्या के आरोप से बच जाते हैं. अभी तक, हमें पता तक नहीं है कि इसे किसने अंजाम दिया था.
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी इलाकों में दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस ने कई गलतियां कीं, हिंसा संबंधी इंटेलीजेंस अलर्ट को लगातार नजरंदाज किया गया, हिंसा रोकने के लिए Preventive Arrest नहीं किए गए, धारा 144 भी बहुत देर से लगाई गई. एक वीडियो दिखाता है कि कैसे जब बीजेपी नेता कपिल मिश्रा खुल्लेआम हिंसा की धमकी दे रहा था, तब दिल्ली पुलिस का एक वरिष्ठ अधिकारी उसके बगल में खड़ा था.
लेकिन उस अधिकारी ने कोई कार्रवाई नहीं की. क्या दिल्ली पुलिस इतनी अयोग्य है? नहीं. दिल्ली दंगों को काबू करने में नाकामयाब होना, फैजान को मारने वाले पुलिसवालों की आज तक पहचान ना हो पाना, अयोग्यता की निशानी नहीं है. दरअसल यहां पुलिस अपने पॉलिटिकल बॉस के साथ मिलकर काम कर रही थी.
जहां जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद तेजी से पारदर्शी कानूनी कार्रवाई हुई थी. वहीं भारत में भारत में फैजान पर हुए बर्बर हमले और उसकी हत्या, जो संभावित तौर पर कानून की रक्षक मानी जाने वाली पुलिस ने की है, उसे पूरी तरह भुला दिया गया.
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