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''बेल हम करा देंगे''- नफरतियों को शह देकर पीछे जा रहा भारत

Bilkis Bano के साथ गैंगरेप करने वालों की रिहाई से हमें क्या संदेश मिलता है?

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ये जो इंडिया है ना...यहां, हम नफरत करने वालों को देश के मंच पर मुख्य भूमिका क्यों छीनने दे रहे हैं? हम दुनिया को यह कहने का मौका क्यों दे रहे हैं कि भारत एक नफरती देश बनता जा रहा है? दुर्भाग्य से इस बात को साबित करने के लिए लगातार सबूत इकट्ठे हो रहे हैं. ग्यारह लोगों को बिलकिस बानो (Bilkis Bano) के गैंगरेप, और उनकी तीन साल की बेटी सहित उसके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था.

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14 साल उम्र कैद की सजा काटने के बाद वक्त से पहले सारे आरोपी रिहा कर दिए गए. रिहाई के बाद उन्हें हीरो की तरह माला पहनाकर सम्मानित क्यों किया गया?

गोधरा के बीजेपी विधायक ने इन बलात्कार और हत्या के दोषियों को अच्छा संस्कारी ब्राह्मण क्यों कहा? जिस देश में निर्भया गैंगरेप करने वालों को मौत की सजा दी गई हो…बिलकिस बानो के साथ गैंगरेप करने वालों की रिहाई से हमें क्या संदेश मिलता है? इसकी इजाजत देने वाली रिव्यू कमिटी बीजेपी के सदस्यों से क्यों भरी हुई थी? 2008 में इन 11 दोषियों पर मूल फैसला सुनाने वाले जस्टिस साल्वी ने उनकी छूट को गलत और बहुत खराब मिसाल क्यों बताया?

इस ‘क्यों’ का जवाब और संदेश यही है कि अगर टारगेट मुसलमान है, तो बलात्कार, हत्या, लिंचिंग जैसे गंभीर अपराधों के लिए भी सजा कम हो सकती है. हम सम्भाल लेंगे, हम सम्भाल लेंगे, जमानत हम दिलवा देंगे...ऐसी बातें अब बार-बार सुनने को मिल रही हैं.
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हाल का ही एक उदाहरण देखिए...राजस्थान के पूर्व बीजेपी विधायक ज्ञानदेव आहूजा को सुनिए. 2018 में रकबर और 2017 में पहलू खान की लिंचिंग का जिक्र करते हुए आहूजा का दावा है कि 'उनके लोगों' ने अब तक पांच लोगों को मार डाला है. उनका कहना है कि उन्होंने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को खुली छूट दी है और अगर कोई पकड़ा गया, तो ज्ञानदेव जी की गारंटी है कि उन्हें 'बरी हम करवाएंगे, जमात भी करवाएंगे, यानी फिर वही संदेश- हम संभाल लेंगे.

एक और हालिया उदाहरण देखिए- 31 जुलाई को, सचिन पंडित और शुभम गुर्जर, जिन्होंने यूपी चुनाव के दौरान एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी की गाड़ी पर कथित रूप से गोली चलाई थी, जमानत पर रिहा हुए. जब वे घर लौटे तो उनका स्वागत बड़े धूम-धाम से कई राइट विंग ग्रुप्स ने किया.

क्या क्या यह पूछ सकते हैं कि इन दोनों को UAPA के तहत गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया था? UAPA के ना लगने से, उनके लिए जमानत हासिल करना, आसान हो गया, यानी फिर वही संदेश है- जमानत हम करवा देंगे, हम संभाल लेंगे.
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बढ़ रही है गोडसे की फैन फॉलोइंग

ऐसे माहौल में कोई आश्चर्य नहीं कि नाथूराम गोडसे की फैन फॉलोइंग आज बढ़ रही है. कुछ साल पहले, गोडसे के जन्मदिन या गांधीजी की हत्या के दिन 4-5 गोडसे भक्त एक छोटे से बैनर के साथ कहीं खड़े हो जाते थे और मीडिया उन्हें इग्नोर कर देता था लेकिन 15 अगस्त को, मुजफ्फरनगर में नाथूराम गोडसे की बड़ी तस्वीर के साथ, अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने तिरंगा यात्रा निकाली. चार-पांच गोडसे भक्त नहीं बल्कि सैकड़ों नजर आए, जिस दिन हम बापू की दिलाई गई स्वतंत्रता को सेलेब्रेट करते हैं, उस दिन इस साल खुले तौर पर गोडसे और उसकी हिंसा को सेलेब्रेट किया गया. और गोडसे ही नहीं, हम में से कुछ लोग हिंसा के एक और नए प्रतीक की भी जय-जयकार कर रहे हैं और वो है बुलडोजर.

अमेरिका के न्यू जर्सी में स्वतंत्रता दिवस की रैली में एक बुल्डोजर भी नजर आया. उससे योगी आदित्यनाथ के बैनर, 'बाबा का बुलडोजर' से सजाया गया था.

इसी तरह, मध्य प्रदेश के बीजेपी विधायक ने CM शिवराज चौहान को 'बुलडोजर मामा' के रूप में दिखाने के लिए, बारह बुल्डोजर की लाइन लगा दी.

दावा जरूर किया जाता है कि बुलडोजर अवैध निर्माण को टारगेट करते हैं, लेकिन बीजेपी शासित राज्यों में बुलडोजर से गिराए गए ज्यादातर घर और दुकानें मुसलमानों की ही हैं. एक बार फिर, संदेश साफ है- मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए कानून का अब असमान रूप से इस्तेमाल किया जा सकता है. मुस्लिम देशवासियों के लिए मैसेज- अपनी जगह समझो और सम्भल कर रहो.

आज जब इतना सब हो रहा है तो ये भी कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि 15 अगस्त से दो दिन पहले एक्स्ट्रीम राइट विंग साधुओं के एक ग्रुप ने अपने पसंद के हिंदू राष्ट्र के संविधान का ऐलान किया.
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हम जैसे करोड़ों सेक्युलर हिंदुओं ने उनको यह अधिकार नहीं दिया, लेकिन फिर भी उन्होंने ऐसा किया. उनके इस संविधान का मेन प्वॉइंट था कि मुसलमानों और ईसाइयों को मतदान का अधिकार नहीं मिलेगा...जी हां! ये साधु बीजेपी सरकार के लिए नहीं बोलते हैं, फिर भी उन्हें भारत के संविधान की अवहेलना करने की छूट मिली हुई थी, उन्हें चुप नहीं कराया गया.

इस सरकार ने अपने ही मंत्री हरदीप पुरी को तुरंत झिड़क दिया, जब उन्होंने दावा किया कि रोहिंग्या मुस्लिम रिफ्यूजी को घर मिलेंगे, तुरंत अमित शाह की होम मिनिस्ट्री का वक्तव्य- कोई आवास योजना नहीं है, ये रिफ्यूजी नहीं हैं, ये अवैध हैं और राष्ट्रीय खतरा हैं. जी हां...हरदीप पुरी को चुप कराया गया लेकिन नफरती साधुओं पर क्यों रोक नहीं?

बीजेपी में  मुस्लिम सांसद नहीं 

ये भी याद रखिए कि भारत के संसदीय इतिहास में आज...इस वक्त पहली बार सत्ताधारी दल के पास एक भी मुस्लिम सांसद नहीं है. बीजेपी के लगभग 400 संसद सदस्यों में से एक भी मुस्लिम नहीं है. जब दुनिया अधिक समावेशी होती जा रही है, हमारा भारत सांप्रदायिकता को क्यों अपना रहा है? जब हम अमेरिका में बुलडोजर बाबा की रैलियां निकालते हैं, तब हम यह क्यों नहीं देख पाते हैं कि आज अमेरिका कितना समावेशी है, जहां एक भारतीय जमैकन पैदाइश की कमला हैरिस, उपराष्ट्रपति हैं. ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री बनाने के लिए आज इंग्लैंड खुद तैयार है, और देखो हम कैसे उल्टी दिशा में जा रहे हैं.

ये जो इंडिया है ना...अगर यह एक महान देश बने रहना चाहता है और इतिहास में अपना स्थान बनाए रखना चाहता है, तो इसे, इस प्रतिशोध से भरी राजनीति से प्रेरित, थकी-पुरानी विभाजनकारी नीतियों को त्यागना होगा और अपनी समावेशी, धर्मनिरपेक्ष, और विविधता की जड़ों की तरफ लौटना होगा.

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