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उत्तराखंड: पहाड़ों में कोरोना टेस्ट कितना मुश्किल?

उत्तराखंड: खतरनाक सड़कें और न खत्म होने वाला इंतजार, हेल्थ टीम के साथ क्विंट का सफर

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन

कैमरा: शिव कुमार मौर्या

मैं उत्तराखंड (Uttarakhand) के छोटे से शहर धरचूला (Dharchula) में बने हेल्थ सेंटर में पहुंचा. मैंने कोरोना वायरस (Coronavirus) से इस लड़ाई में हेल्थ वर्कर्स के सामने आने वालीं परेशानियों को और करीब से जानने की कोशिश की.

हमें ये याद रखने की जरूरत है कि जो लोग पहाड़ों में रहते हैं उन्हें पहले ही रोजमर्रा की चीजों में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. मौसम, खराब सड़कें जैसी कई चीजें पहाड़ियों में सुविधाओं को वक्त पर पहुंचाने में रोड़ा बनती हैं.

CHC में मैं डॉक्टर शालिनी फिर्मल से मुलाकात की जो कोरोना में टेस्टिंग टीम को लीड कर रही थीं. 5 लोगों की ये टीम धरचूला से करीब 1 घंटे की दूरी पर बसे जुम्मा गांव में टेस्टिंग के लिए तैयारी में जुटी थी.

अपनी टीम के सदस्य, कविता और निखिल से मिलते हुए डॉक्टर शालिनी कहती हैं- ‘हम लगभग 5 लोग हैं और हमें हमारे सीनियर ने एक-एक गांव अलॉट किए हैं. उसी लिस्ट के हिसाब से हम गांव में में जाकर टेस्टिंग करेंगे.’

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एक खतरनाक सफर

सुबह 10 बजे हेल्थ टीम कोरोना वायरस टेस्टिंग से जुड़े सामान और दवाइयों को लेकर जुम्मा गांव पहुंची. इस दौरान 28 साल की नर्स कविता बताती हैं कि ऊंची पहाड़ियों पर बसे गांवों में टेस्टिंग कैम्प सेट-अप करने में कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

कल मैं खेला नाम के गांव में टेस्टिंग कैंप सेट-अप करने गई थी. हमें बहुत ऊंचे पहाड़ पर चढ़ना था, बहुत खराब रास्ता था. दवाइयों और बाकी सामान को पकड़ने के लिए कोई था नहीं, इसलिए मैंने उसे अपने स्कार्फ से बांध लिया और चढ़ने लगी. मेरे साथ एक और नर्स थी वो बैग लेकर साथ चढ़ रही थी.
कविता, हेल्थ वर्कर
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हेल्थ सेंटर से बिना टेस्टिंग वापस लौटी टीम

एक ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर एक घंटे के सफर के बाद टीम टेस्टिंग सेंटर पर पहुंची, मैंने सोचा, ‘हम गांव तक आ गए हैं तो आधी जंग हमने जीत ली है’ लेकिन टेस्टिंग सेंटर पर पहुंचने पर पता चला कि गांव का मुखिया और आशा वर्कर अभी तक सेंटर पहुंचें ही नहीं हैं. स्कूल (टेस्टिंग सेंटर) में ताला लगा है और हेल्थ टीम के पास ऐसी कोई और जगह नहीं है जहां वो टेस्टिंग कैंप लगा सकें.

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गांव में न तो नेटवर्क ठीक से मिल पा रहा है न ही इंतजार खत्म हो रहा है, कुछ देर तक गांव के मुखिया और आशा वर्कर का इंतजार करने के बाद हेल्थ टीम ने वापस लौटने का फैसला किया. जब तक हेल्थ टीम गांव में इंतजार कर रही थी तब तक गांव के कुछ लोगों ने क्विंट को बताया कि उनके गांव की हालात ऐसी ही है. न तो नेटवर्क मिल पाता है न ही कोई सूचना वक्त पर मिल पाती है.

मैंने अपने कैमरा पर्सन शिव को कहा कि ‘मुझे लगा था ये कठिन काम होगा, लेकिन ये नहीं सोचा था कि टीम बिना टेस्ट किए ही वापस लौट जाएगी.’

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