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आरक्षण की मांग लेकर तेलंगाना से दिल्ली पहुंचे ये दिव्यांग

तेलंगाना से दिल्ली तक का सफर कर दिव्यांगों ने उठाई अपनी मांग

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

दिल्ली के जंतर मंतर पर अपनी व्हीलचेयर पर बैठी सुजाता सूर्यवंशी कहती हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर दिया गया शब्द 'दिव्यांग' उनकी जिंदगी में बदलाव लाने के लिए काफी नहीं है. वो जोर देती हुई कहती हैं, "देश में शारीरिक तौर से अक्षम लोगों को राजनीतिक आरक्षण दिया जाए, ताकि उनकी आवाजें सुनी जा सकें." असल में इसकी जरूरत है.

तेलंगाना से दिल्ली तक का सफर कर दिव्यांगों ने उठाई अपनी मांग
सुजाता सूर्यवंशी, दिव्यांगों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट
(फोटो: द क्विंट)

सूर्यवंशी 30 अन्य दिव्यांग लोगों के साथ 1,500 किलोमीटर से ज्यादा सफर कर नई दिल्ली पहुंची थीं. इन लोगों ने जंतर मंतर पर 7 अगस्त 2018 को विरोध प्रदर्शन किया.

ग्राम पंचायत से लेकर असेंबली तक हमें आरक्षण चाहिए. कम से कम 5% आरक्षण चाहिए. हम कितने मजबूर हैं ये हम ही जानते हैं.
सुजाता सूर्यवंशी
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सूर्यवंशी की ही तरह धरने के लिए पहुंचे वेणुगोपाल कहते हैं, “कोई भी हमारी परेशानी नहीं समझता. संसद में हमारी ओर से एक सदस्य के होने से हमें बहुत मदद मिलेगी.”

उनके दोस्त रमेश कहते हैं “हर बार जब हम जाते हैं और अधिकारियों से बात करते हैं, तो वे सिर्फ हमें कार्रवाई का आश्वासन देते हैं. लेकिन वो कभी भी अपने वादों को पूरा नहीं करते.”

तेलंगाना से दिल्ली तक का सफर कर दिव्यांगों ने उठाई अपनी मांग

आसरा योजना के तहत, तेलंगाना में दिव्यांगों के लिए 1,500 रुपये की मासिक पेंशन की सुविधा है. लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि उनके परिवार के गुजारे के लिए ये राशि बहुत कम है. जय हरि, जो बढ़ई का काम करते हैं, कहते हैं कि कई बार उन्हें बिना काम के रहना पड़ता है. ऐसे में उनके लिए परिवार चलाना मुश्किल हो जाता है.

कभी-कभी हमें काम नहीं मिलता है, ऐसे में गुजारा मुश्किल हो जाता है. मैं अपने परिवार की देखभाल कैसे करूं? पेंशन बढ़ाकर 5,000 रुपये करनी चाहिए. कभी-कभी ये 1,500 रुपये भी समय पर नहीं मिलते हैं.
जय हरि

रोजगार का स्थाई जरिया न होना और इतनी कम पेंशन राशि से इन दिव्यांगों के लिए बड़ी परेशानी है. इनमें से कई लोगों को 3000 रूपए घर का किराया देना होता है. इनकी मांग है कि पेंशन राशि बढ़ाने के साथ ही साथ राज्य सरकार को इन्हें आवास की सुविधा देनी चाहिए.

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डिसेब्लिटी एक्ट 2016 के तहत दिव्यांगों को सरकारी नौकरियों में 4% आरक्षण दिया गया लेकिन गोकुल को इससे कुछ खास मदद नहीं मिल सकी.

गोकुल 5 साल पहले इंग्लिश लिट्रेचर से एमए कर चुके हैं.

तेलंगाना से दिल्ली तक का सफर कर दिव्यांगों ने उठाई अपनी मांग
एमए डिग्री होल्डर गोकुल 5 साल से कर रहे हैं जाॅब की तलाश
(फोटो: द क्विंट)
5 साल से नौकरी के लिए आवेदन कर रहा हूं लेकिन नौकरी नहीं मिली. आरक्षण में भी ऑर्थोपैडिक हैंडिकैप के मुकाबले देख न सकने वालों और बोलने-सुनने में अक्षम लोगों को प्राथमिकता मिलती है. 
राठौड़ गोकुल

आज, गोकुल1,500 रुपये की मासिक पेंशन में मुश्किल से गुजारा कर पाते हैं. पेंशन मिलने में भी अक्सर देरी होती है. एमए की डिग्री होने के बावजूद वो अपने माता-पिता पर वित्तीय सहायता के लिए निर्भर हैं.

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