ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार! ये फैक्टर नहीं सुधरे, तो 2022 तक कैसे बनेगा ‘न्यू इंडिया’?

सरकार 2022 के सपनों को पूरा करने के लिए आंदोलन चला रही है. ये आंदोलन कागजों पर दिखता है, अखबारों में बिकता है.

छोटा
मध्यम
बड़ा

वीडियो एडिटर: (संदीप सुमन/आशुतोष भरद्वाज)

ADVERTISEMENTREMOVE AD

सरकार के चुनावी पोस्टर, अखबारों में विज्ञापन और डिजिटल वर्ल्ड के एड, चीख-चीख कर कह रहे हैं कि अपना देश 2022 तक न्यू इंडिया बनने जा रहा है. मगर कैसे? दरअसल, कहानी कुछ ऐसे शुरू हुई कि 2022 में भारत की आजादी के 75 साल होंगे और अपनी मोदी सरकार 2022 के सपनों को पूरा करने के लिए आंदोलन चला रही है. ये आंदोलन कागजों पर दिखता है, अखबारों में बिकता है, लेकिन जमीन पर ढूंढने की जब बात होती है, तो सवाल खड़े होने लगते हैं. सवाल कुछ ऐसे कि न्यू इंडिया का महल जिन पैरामीटर्स की बुनियाद पर खड़ा हो रहा है, उनकी हालत कैसी है?

  • रोजगार की दशा क्या है और वो किस दिशा में जा रहा है?
  • किसान किस हाल में है और 2022 तक आमदनी दोगुनी कैसे होगी?
  • मेक इन इंडिया कहां तक पहुंचा है?
  • स्वच्छ भारत मिशन में कितना साफ हो गया अपना देश?
  • एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का हाल कैसा है?
  • दलितों-शोषितों-पीड़ितों के लिए इस न्यू इंडिया ने क्या सपने देख रखे हैं?

शुरुआत करते हैं रोजगार से. अभी कुछ ही महीने पहले की रिपोर्ट है कि देश में रोजगार की हालत पिछले 45 साल में सबसे खराब रही. NSSO यानी सरकारी आंकड़ें ये बता रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

1. रोजगार

इस रिपोर्ट की दहशत तो देखिए. यहां तक कहा गया कि सरकार ने ये रिपोर्ट ही रुकवा दी. आंकड़ों के मुताबिक साल 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी रही. लेबर पार्टिसिपेशन रेट भी काफी कम है, मतलब कि कम लोग काम मांगने आ रहे हैं और उन्हें भी नौकरी नहीं मिल रही है. अब 2022 तक ये स्थिति कैसे सुधरेगी? इसका खांका, हमें तो नहीं दिखाई दे रहा है, अगर दिखता, तो लाखों-लाख की संख्या में छात्र कभी एसएससी परीक्षाओं में धांधली, कभी रिजल्ट तो कभी एडमिट तो कभी ज्वाइनिंग के लिए धरना नहीं दे रहे होते....

2. साफ-सफाई

प्रदूषित देशों में भारत तीसरे स्थान पर है, अब इस प्रदूषण के राक्षस को कैसे मारना है, सोचना तो पड़ेगा.

3. हेल्थ

अब प्रदूषण से थोड़ा बढ़कर बात हेल्थ की. पिछले साल मई, 2018 में मेडिकल जर्नल लांसेट में आई स्टडी के मुताबिक स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और इनकी क्वालिटी के मामले में भारत 195 देशों की लिस्ट में 145वें स्थान पर है. ‘ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिजीज’ स्टडी में बताया गया कि स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच और गुणवत्ता मामले में भारत की स्थिति में सुधार जरूर हुआ है. लेकिन हेल्थकेयर के मामले में भारत अपने पड़ोसी देश चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका और भूटान से भी पीछे है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

4. मेक इन इंडिया

ऐसे में बात मेक इन इंडिया की, जिसके बारे में खूब प्रचार-प्रसार किया गया था. मेक इन इंडिया के तहत सपना दिखाया गया था कि बड़ी-बड़ी विदेशी कंपनियां भारत आएंगी और यहां मैन्युफैक्चर करेंगी. ये तो हुआ फसाना, अब हकीकत ये है कि साल 2017-18 में एफडीआई की ग्रोथ रेट सिर्फ 3 परसेंट रही है. ये पिछले 5 साल में एफडीआई की सबसे कम ग्रोथ रेट है.

वहीं विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने पिछले साल करीब एक लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं. मेक इन इंडिया के तहत कुल 25 सेक्टर को सेलेक्ट किया था. इन सेक्टर्स के लिए भी विदेशी निवेशकों का उत्साह कमजोर ही रहा. मतलब साफ है कि भारत के बाजार पर विदेशी निवेशक फिलहाल भरोसा नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि वो जनता की तरह सिर्फ वादे नहीं समझते हैं. उन्हें जमीनी स्तर पर अपने निवेश पर रिटर्न का भरोसा होना चाहिए.

5. एक्सपोर्ट

मेक इन इंडिया में सामान देश में बनता तो हम उसे विदेशों में भेजते, देश की कमाई होती, ऐसा सोचा गया था. और नए इंडिया के लिए ये जरूरी भी है, लेकिन मोदी सरकार के चार साल के कार्यकाल में एक्सपोर्ट की रफ्तार बेहद सुस्त है, ये 2013-14 के रिकॉर्ड 313 अरब डॉलर के आंकड़े को एक बार भी नहीं छू सका है. अब अचानक कैसे ये रातोंरात बदल जाएगा. ऐसी क्या योजना है सरकार के पास, इसका कोई अता-पता नहीं है, लापता है!

नए भारत में सबसे बड़ी जरूरत होगी. उनकी जो देश का पेट भरते हैं यानी किसानों की. वो जो खुद को मुख्यधारा से कटा-कटा समझते हैं. बिना उन्हें मजबूत बनाए, न्यू इंडिया के बारे में सोचना भी मुमकिन नहीं है.

6. किसान

इस सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का दावा किया था, 4 साल  निकल गए हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट है, जिसके मुताबिक 2014-15 के बाद से कृषि और गैर कृषि व्यवसायों से ग्रामीण वेतन वृद्धि में कमी आई है, जिसमें औसतन 5.2 फीसदीृ की बढ़ोतरी सामान्य तौर पर हुआ करती थी. मतलब ये है कि 2014 के बाद से गांव मे रहने वाले ज्यादातर लोगों की आमदनी पिछले 4 साल में जस की तस है. अब अचानक क्या बदल जाएगा नहीं समझ आता.. नतीजे तो आप देख रहे होंगे, क्या आपने इससे पहले इतने किसान आंदोलन कभी देखे-सुने थे. पश्चिम में महाराष्ट्र, दक्षिण में तमिलनाडु से लेकर मध्य में मध्य प्रदेश तक किसानों के आंदोलन की खबरें हेडलाइन बनती रही हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

7. दलित-शोषितों के सपने


इस सरकार के लिए एक बात साफ-साफ कही जा सकती है. पिछले 4 साल में दलितों-आदिवासियों की नाराजगी खूब देखने को मिली, नतीजा ये हुआ कि 2 अप्रैल 2018 को बड़े पैमाने पर एससी-एसटी संगठनों ने भारत बंद बुलाया. इसमें कई लोगों की जान भी गई. फिर भी ये थमा नहीं, किसी न किसी मुद्दे को लेकर ये तबका, सड़कों पर आता ही रहा है. ऐसे में बिना इन्हें साथ लिए, न्यू इंडिया का सपना कैसे पूरा माना जा सकता है.


अब अंतिम में कुछ सवाल  भी हैं, आपने ऊपर जितनी कमियां, दिक्कतें, खामियां सुनीं....वो आपने कभी न कभी तो सुनी, देखी या पढ़ी ही होंगी. तो फिर आज दोहराने की जरूरत क्यों पड़ रही है?इसलिए क्योंकि देश में अभी भी एक बड़ा तबका ऐसा है जिसके लिए दो जून की रोटी ही न्यू इंडिया है. कुछ आबादी ऐसी हैं जिनके लिए सही से पढ़-लिख पाना ही न्यू इंडिया है. सांप्रदायिकता का शिकार होने से बच पाना ही न्यू इंडिया है. इसलिए किसी नए सपने के चक्कर में लोकतंत्र चक्कर खाकर न गिर जाए, इसका ख्याल रखा जाना चाहिए. न्यू इंडिया का सपना दिखाया जा रहा है तो वो पूरा भी होना चाहिए.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×