वीडियो एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम
ये जो इंडिया है न..यहां परसेप्शन की लड़ाई को जीतना मुमकिन ही नहीं, आसान भी हो गया है.. जबकि कुछ असल लड़ाइयां या तो हारी जा रही हैं या लड़ी ही नहीं जा रही. असल में हम सच्चाई की तरफ न देखें, इसके लिए काफी कुछ किया जा रहा है. और हम इसकी बजाय कई परसेप्शन से चिपके रहें.
ये सबसे हाल का ही उदाहरण है. एक पेंटिंग पीएम मोदी की भगवान राम को वापस अयोध्या ले जाते हुए. ये काफी कुछ कहती है. एक बड़े कद के मोदीजी, छोटे से राम की मदद करते हुए. जन्मस्थान, भव्य राम मंदिर में लौटने के लिए. इसके साथ पीएम का अयोध्या में पूजा करना. जिसे रिकॉर्ड ऑडियंस ने देश भर में हुए टेलीकास्ट में देखा. इसके जरिए मोदी का हिंदू हृदय सम्राट के तौर पर परसेप्शन बनाने की कोशिश हुई. वो इंसान जो राम राज्य लाएगा.. नहीं जो देश में राम राज्य ले आया. इस बात का ध्यान रखा गया कि आरएसएस चीफ मोहन भागवत के अलावा पीएम मोदी अपने किसी भी बीजेपी के साथी के साथ इस गौरव को शेयर न करें. राम मंदिर प्रोजेक्ट के असली आर्किटेक्ट एलके आडवाणी के साथ भी नहीं,
इन ट्वीट्स को देखिए. @RUMARINKIAMRITA ने लिखा- हम मोदीजी के बारे में एक शब्द में क्या कहें, आप भारतीयों के लिए भगवान की भेजी हुई कृपा हो.
@Divyans97868785 ने कहा- हमें लग रहा था कि 2020 सबसे खराब साल है लेकिन हमारे नरेंद्र मोदी जी भाई ने 2020 को सबसे बेस्ट साल बना दिया!
लगभग हर ट्वीट में बीजेपी को नहीं, संघ को नहीं, सिर्फ मोदीजी को शुक्रिया कहा गया.
राष्ट्रीय शर्म से लेकर राष्ट्रीय गर्व तक. ये इंडिया टुडे मैगजीन का 30 साल पहले का कवर था. आज परसेप्शन बदल चुका है.. अब राम मंदिर हिंदू प्राइड का सिंबल है. और इसे नेशनल प्राइड से भी जोड़ दिया गया है. इस देश का कानून अब भी बाबरी मस्जिद के ढहाए जाने को अपराध मानता है.. जिसके लिए एलके आडवाणी, उमा भारती और कई लोगों पर केस चल रहा है. लेकिन सच्चाई से अब किसी को फर्क पड़ता नहीं है.
अगर हम इस परसेप्शन के पर्दे को हटाए. और सच्चाई को देखें तो देखेंगे कि हम पहले से ज्यादा पोलाराइज्ड हैं. नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली हिंसा के ज्यादातर शिकार मुस्लिम थे, लेकिन इनके लिए ज्यादातर गिरफ्तार किए गए लोग भी मुस्लिम हैं. जिन्होंने शांतिपूर्ण प्रदर्शन आयोजित किए, उन पर आतंकियों के लिए बनाया गया कानून लगाया गया. कपिल मिश्रा और अनुराग ठाकुर के हिंसा की मांग करते भाषणों को नजरंअदाज किया गया.. वहीं सिर्फ कॉन्सपिरेसी थ्योरी को FIR दर्ज करने और गिरफ्तारी के लिए काफी माना गया.
कुछ दिनों पहले ईद पर, एक मुस्लिम आदमी को दिनदहाड़े लातों और हथौड़े से पीटा गया और पुलिस खड़ी होकर देखती रही. फरवरी में फैजान को मारने वाले पुलिसवालों ने उसे नेशनल एंथम गाने के लिए मजबूर किया. आरोप भूल जाइए, उन पुलिसवालों के नाम तक नहीं पता हैं. जबकि उन्हें कैमरे पर देखा गया था. जातिगत हिंसा भी आज के समय की सच्चाई है. तो ये आइडिया की देश के हिंदू का दिल एक तरह से धड़कता है. अपने सुप्रीम लीडर के लिए.. ये भी सिर्फ एक परसेप्शन है. सच्चाई नहीं.
LAC पर..चीन के साथ भी. परसेप्शन मैनेजमेंट ही है. पहले हमारे 20 जवानों के शहीद होने के बाद. पीएम ने कहा कि भारत की सीमा में कोई घुसपैठ नहीं हुई है. लेकिन सैटेलाइट तस्वीरों ने कंफर्म किया कि गलवान घाटी, पैंगोंग लेक और डेपसांग में चीन ने घुसपैठ की है. रक्षा मंत्रालय ने एक नोट अपनी वेबसाइट पर लगाया जिसमें चीन की घुसपैठ की पुष्टि हुई.. लेकिन फिर वो नोट रहस्मयी ढंग से गायब हो गया. कई हफ्तों की बातचीत के बाद भी हम कहीं नहीं, किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे. लेकिन परसेप्शन बनाने के लिए सरकार ने चाइनीज ऐप बंद कर दिए.
TikTok और कई दूसरे ऐप. गोदी मीडिया ने इसे ‘डिजिटल सर्जिकल स्ट्राइक’ कहा. और इसलिए. जबकि चीन लद्दाख के पैंगोंग लेक और डेपसांग में 4 महीनों से कब्जा करके बैठा है. एक इंडिया टुडे का सर्वे कहता है कि 69% भारतीय मानते हैं कि सरकार ने चीन के मसले को अच्छे से हैंडल किया. परसेप्शन मैनेजमेंट इतना अच्छा है कि 59% भारतीय ये मानते हैं कि हमें चीन के साथ युद्ध करना चाहिए.
लेकिन चिंता ये है कि हम में कई लोगों को फैक्ट्स नहीं पता या उन्हें नजरअंदाज कर रहे हैं. और सरकार को ये लग सकता है कि सिर्फ परसेप्शन की लड़ाई जीतना ही काफी है. मेन मुद्दों पर काम करना जरूरी नहीं है. इकनॉमी को देखिए. भारत की जीडीपी 2016 के 8.25% से गिरकर 2019 में 4.25% पर आ गई.. लेकिन गलती मानने से दूर सरकार कहती है कि सब ठीक है. पूर्व RBI गवर्नर उर्जित पटेल को सरकार ने चुना था लेकिन उन्होंने RBI का कैश रिजर्व सरकार को ट्रांसफर करने के मामले पर दिसंबर 2018 में इस्तीफा दे दिया.
पूर्व RBI डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने हाल ही में बताया कि उन्होंने बैंक क्यों छोड़ दिया था- 'सरकार को शॉर्ट टर्म में हाई ग्रोथ चाहिए, जिससे कि वो कह सकें कि भारत 8%, 9%, 10% से ग्रो कर रहा है. और ये सब लॉन्ग-टर्म इकनॉमिक स्टेबिलिटी की कीमत पर होगा.' साफ सबूत हैं कि सरकार को सिर्फ शॉर्ट-टर्म के परसेप्शन मैनेजमेंट से मतलब है. जबकि असल में इकनॉमी और गिर रही है.
COVID-19 के साथ भी. हमने परसेप्शन मैनेजमेंट देखा है.. बर्तन बजाओ, कैंडल जलाओ. महामारी के असली मैनेजमेंट की जगह ये सब हुआ. प्रवासी मजदूरों की परेशानी को ध्यान में रखे बिना लॉकडाउन लगा दिया गया. लाखों मजदूरों के सड़कों पर होने की तस्वीरें आईं लेकिन उनके लिए बहुत देर से और बहुत कम किया गया. हमारे लॉकडाउन ने वायरस का कर्व फ्लैट नहीं किया. ये तो डिस्कस भी नहीं हुआ और कि अब हमारे देश में किसी और देश के मुकाबले रोजाना ज्यादा मौतें हो रही हैं. इस पर भी कोई बात नहीं होती.
महामारी के 5 महीने गुजर जाने के बाद भी यूपी और बिहार जैसे राज्यों में इतनी कम टेस्टिंग क्यों हो रही है, इस पर कोई डिस्कशन नहीं है. भारत में आज रोजाना सबसे ज्यादा केस सामने आ रहे हैं. ये सच्चाई है, परसेप्शन नहीं. लेकिन इस पर बात नहीं हो रही.
वेटरन न्यूज एडिटर टीएन नीनन इस सबको कुछ इस तरह कहते हैं- ये सरकार अपने असफलता को नहीं मानती और असफलता उजागर होना पसंद भी नहीं करती. जब कुछ अनप्लांड हो जाता है जैसे कोई खराब न्यूज आ जाती है, तो ये चुप हो जाती है (जैसे कि बढ़ते कोरोना के नंबर पर), या नंबरों से खेलती है (जैसे कि जीडीपी से) या फिर खुद को नेशनल फ्लैग में छुपा लेती है और क्रिटिक्स को एंटी-नेशनल बोलती है.
एक और बड़ी चिंता ये है कि जो संस्थान सरकार पर रियलिटी चेक कर सकते हैं. वो इस तरफ ध्यान नहीं दे रहे. जैसे कि सुप्रीम कोर्ट कश्मीर पर. क्यों कोर्ट मुख्य रूप से चुप रहा कि पिछले एक साल से कश्मीरी नेताओं की हिरासत लीगल है या नहीं? उन लोगों को कोई ठीक प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को हटाने में संवैधानिक चुनौतियों की बात उठाई थी? पिछले एक साल से इंटरनेट प्रतिबंध झेल रहे जम्मू-कश्मीर के लोगों को कोई राहत क्यों नहीं दी? बीजेपी सरकार के लिए ये उसका वैचारिक लक्ष्य है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के पास चेक और बैलेंस लागू न करने का क्या बहाना है? और फ्रैंकली मैं कौन होता हूं कोर्ट से सवाल करने वाला. जब मेरे मीडिया के साथियों ने गोदी मीडिया बनने का फैसला कर लिया है.
ये जो इंडिया है न.. इसे सफल होने के लिए सिर्फ मजबूत नेता ही नहीं चाहिए. हमें एक मजबूत देश भी चाहिए. और इसे हासिल करने के लिए हमें सिर्फ सच्चाई पर विश्वास करना चाहिए, न कि बनाए गए पर्सेप्शन्स पर.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)