27 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट को सलाम करने का दिन है. उसने भारतीय समाज को बेहतर बनाने के लिए एक बहुत क्रांतिकारी कदम उठाया है. गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर किसी को बराबरी का अधिकार है और पति, पत्नी का मालिक नहीं है. कोर्ट ने आईपीसी की धारा-497 को असंवैधानिक ठहराते हुए कहा कि एडल्टरी अब अपराध नहीं है.
पांच जजों की बेंच में शामिल चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस इंदु मल्होत्रा, और डीवाई चंद्रचूड़ ने एकमत से यह फैसला सुनाया.
ब्रिटिश काल का ये कानून ब्रिटेन ने पहले ही उठाकर फेंक दिया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को रद्द कर बता दिया कि ये बदलते भारत का वक्त है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि एडल्टरी तलाक का आधार रहेगा और इसके चलते खुदकुशी के मामले में उकसाने का केस चलेगा.
इस फैसले के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं की इच्छा, अधिकार और सम्मान को सर्वोच्च बताया.कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि एडल्टरी कानून मनमाना है. उन्होंने कहा कि यह महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाता है.
कोर्ट ने ये भी कहा कि एडल्टरी कानून महिला की सेक्सुअल पसंद को रोकता है और इसलिए ये असंवैधानिक है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि समाज को महिलाओं को उनका हक देना होगा. उनको बराबरी का दर्जा देना होगा.
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