वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
जिस कोरोना वायरस की वैक्सीन को तैयार करने के लिए पूरी दुनिया हलकान-परेशान रही, वो अस्पतालों में पड़ी हैं और कोई लगाने वाला नहीं. ऐसा अमेरिका में हो रहा है. अस्पतालों के ऊपर इतना वर्कलोड है कि वो वैक्सीन नहीं लगा पा रहीं. ऊपर से वैक्सीन पर अविश्वास का भी मामला है.
सवाल ये है कि अगर विकसित देश अमेरिका में ऐसा हो रहा है तो भारत में क्या तैयारी है?
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की 5 जनवरी की एक रिपोर्ट में अमेरिका के स्वास्थ्य अधिकारियों के हवाले से बताया गया है कि वहां 15 मिलियन कोरोना वायरस वैक्सीन में से दो-तिहाई से ज्यादा वैक्सीन अबतक इस्तेमाल ही नहीं हो सकी हैं.
4 जनवरी को जारी किए गए यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक सिर्फ 4.5 मिलियन डोज लोगों को लगाए गए हैं. 2020 के अंत तक 20 मिलियन लोगों के टीकाकरण के लक्ष्य के हिसाब से ये आंकड़े काफी कम हैं.
नौबत ये है कि सरकार ने न्यूयॉर्क और फ्लोरिडा के अस्पतालों को चेतावनी दी है. न्यूयॉर्क में ऐसे अस्पतालों को जुर्माना देना होगा. हालांकि कुछ लोगों का कहना है कि अस्पतालों पर जुर्माना लगाने की बजाय, उन्हें टीकाकरण के लिए और अधिक संसाधन, अधिक पैसा, अधिक स्टाफ देना चाहिए. इसकी वजह ये है कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के कारण अस्पताल काम के भारी दबाव में हैं. UK और साउथ अफ्रीका के नए वेरिएंट के भी मामले सामने आए हैं.
दूसरी वजह है- लोगों का वैक्सीन पर भरोसा नहीं बन पाना क्योंकि अप्रूवल में रिकॉर्ड तेजी दिखी थी. कुछ अमेरिकी अधिकारी कहते हैं कि पर्याप्त योजना और लॉजिस्टिक में कमी है.
इस रिपोर्ट से निकलती चिंता ये है कि ये तमाम कारण भारत में भी मौजूद हैं.
भारत में 13 जनवरी से टीकाकरण ड्राइव शुरू करने की योजना है. कुछ राज्यों में ड्राई रन कराए गए.
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में 29,000 कोल्ड चेन पॉइंट, 240 वॉक-इन कूलर, 70 वॉक-इन फ्रीजर, 45,000 आइस-लाइन्ड रेफ्रिजरेटर, 41,000 डीप फ्रीजर्स, और 300 सोलर रेफ्रीजरेटर की जरूरत होगी- ये स्वास्थ्य मंत्रालय का अनुमान है. 96,000 वैक्सीनेटर को ट्रेनिंग दी गई है.
भारत फिलहाल सिर्फ 2 वैक्सीन पर निर्भर हैं-ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की स्वदेशी कोवैक्सीन. इन दोनों वैक्सीन को इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन के तहत मिली मंजूरी विवादों में है. भारत बायोटेक की कोवैक्सीन के फेज 3 ट्रायल के डेटा सामने नहीं आए हैं.
ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन को अप्रूवल तो मिला है लेकिन ऑर्डर डील नहीं किए गए हैं. फाइजर, मॉडर्ना, साइनोवैक वैक्सीन का इस्तेमाल दूसरे देशों में शुरू हो चुका है. कई देश आपस में करार के तहत ऑर्डर प्लेस कर चुके हैं ताकि रिस्क को कम किया जा सके.
फाइजर वैक्सीन उच्च लागत वाली है और स्टोरेज के लिए -70 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत है. लेकिन यूरोपीय संघ ने फाइजर वैक्सीन की 300 मिलियन डोज, यूएस ने 100 मिलियन, जापान ने 120 मिलियन, कनाडा ने 26 मिलियन और इजराइल ने 8 मिलियन डोज के लिए ऑर्डर किया है.
पेरू, कोस्टा रिका, इक्वाडोर, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, कुवैत, लेबनान, सऊदी अरब और स्विट्जरलैंड अन्य देशों में हैं जिन्होंने फाइजर वैक्सीन बुक की है. चीन, जो खुद साइनोफार्म और सिनोवैक वैक्सीन डेवलप कर चुका है, उसने फाइजर वैक्सीन की 100 मिलियन डोज के ऑर्डर प्लेस किए हैं.
मॉडर्ना वैक्सीन जो फिलहाल अमेरिका में इस्तेमाल हो रहा है- यूरोपीय संघ, जापान और कतर ने इसके लिए ऑर्डर किया है.
भारत जिन वैक्सीन पर निर्भर है उनसे जुड़े अहम सवालों के जवाब पब्लिक के पास नहीं है. हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में हम अमेरिका जैसे देशों से काफी पीछे हैं और कोरोना के नए वेरिएंट को लेकर चिंताएं भी जुड़ चुकी हैं.
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