रेत के पहाड़ जिस तरह से रोज अपनी शक्ल बदल लेते हैं, उसी तरह राजस्थान का राजनीतिक ड्रामा रोज नए मोड़ ले रहा है. राज्य के गवर्नर ने ये मान लिया कि वो विधानसभा का सत्र बुलाएंगे. लेकिन उन्होंने शर्त लगाई है कि 21 दिनों के नोटिस के बाद बुलाएंगे, क्योंकि ये कोरोना काल है. पूरी प्रक्रिया पारदर्शी करने के लिए विडियोग्राफी कराने को कहा है.
अशोक गहलोत जितनी जल्दी बहुमत साबित कर दें, उनके लिए रास्ता आसान होगा. सचिन पायलट और बीजेपी के लिए जितना लेट हो उतना अच्छा होगा, जिससे उन्हें कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का मौका मिल जाएगा. गवर्नर, स्पीकर, सुप्रीम कोर्ट, उच्च न्यायालय सभी के भूमिका पर नए सवाल और रहस्य हैं और उनका जवाब अब तीन हफ्तों के अंदर मिल जाएगा.
आज सबकी नजर सुप्रीम कोर्ट पर थी. सुप्रीम कोर्ट में सचिन पायलट कैंप की तरफ से दायर पीटीशन में बीजेपी ने खुद को एक पार्टी बनाया, स्पीकर ने भी खुद को पार्टी बनाया, लेकिन जब स्पीकर को लगा कि ये सही नहीं रहेगा तो उसने अपना पीटिशन वापस ले लिया.
अभी के लिए सबसे बड़ा मुद्दा ये था कि क्या राज्यपाल चुनी हुए सरकार के कहने के बावजूद विधानसभा का सत्र बुलाने के लिए मना कर सकते हैं. एक बार मना कर सकते हैं लेकिन अगर दूसरी बार सिफारिश जाती है तो उन्हें बुलाना पड़ेगा. ऐसे में गवर्नर ने स्थिति को देखते हुए सत्र बुलाने को कह दिया लेकिन साथ ही कहा कि 21 दिनों का वक्त लगेगा. यानी हार्स ट्रेडिंग के दरवाजे खुले हुए हैं.
अचानक से बीएसपी मैदान में आ गई. राजस्थान में बीएसपी के 6 विधायकों ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है. बीएसपी का कहना है कि विधानसभा की कार्रवाई में इन विधायकों को बीएसपी के व्हिप का पालन करना पड़ेगा. मामले हाइकोर्ट गया, BSP विधायकों पर बीजेपी की याचिका खारिज हो गई.
कानूनी मसला यहां फंस रहा है कि स्पीकर ने अभी तक कोई फैसला नहीं किया है कि सचिन पायलट औऱ उनके साथ के 18 विधायक के अयोग्य घोषित किए जाने पर पर हाईकोर्ट ने जो रोक लगाई है वो कायम है. सुप्रीम कोर्ट का रोल साफ है कि स्पीकर कोई फैसला न ले ले तो वो उसपर क्या सुनवाई करेगा.
कहां जाती दिख रही है राजस्थान की सियासत?
अशोक गहलोत का कहना है कि 102 लोगों का बहुमत उनके पास है, तो वो बहुमत साबित कर दें. अगर गहलोत बहुमत साबित न कर पाएं तो बीजेपी सरकार बनाने का दावा कर सकती है या राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ेगा. ये दोनों रास्ते खुले हुए हैं.
यहां बीजेपी की अंदरूनी राजनीति पर भी बात करनी पड़ेगी. क्या वसुंधरा राजे सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा? क्या सचिन पायलट वहां भी उपमुख्यमंत्री बनने ही जाएंगे. क्योंकि वहां उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावना न के बराबर ही है.
यहां से तस्वीर ये बन रही है कि अशोक गहलोत मजबूती से अपने विधायकों को अपने साथ रख पाए. क्योंकि बीजेपी या सचिन पायलट का खेमा विधायकों को तोड़ने की कोशिश करेगा.
क्या सचिन पायलट जिस मकसद के लिए ये गेम खेला उस मकसद तक पहुंच पाएंगे, या फिर बीजेपी की सरकार बनवाने की कोशिश करेंगे. या फिर राज्यसभा के सहारे केंद्र में मंत्री बनने की कोशिश करेंगे.
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