देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इच्छा जाहिर की थी कि अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां देश की सभी नदियों और पहाड़ों पर छिड़क दी जायें, ताकि वो इनके बहाने जिन्दा रहें. ये वो दौर था जब सूचनाओं की गति इतनी तेज न थी, अखबार और रेडियो ही एकमात्र माध्यम थे. फिर भी, पुराने लोगों को आज भी ये याद है.
पता नहीं, अटल जी ने अपनी अस्थियों को लेकर ऐसी कोई इच्छा जाहिर की थी या नहीं, लेकिन बीजेपी इसे लेकर ज्यादा संजीदा है. शायद ये पहली बार होगा जब किसी नेता की अस्थियां इतनी जगह विसर्जित की जायेंगी.
अकेले यूपी की 42 नदियों में 145 जगहों पर वाजपेयी की अस्थियों के विसर्जन के कार्यक्रम हैं, जिनकी शुरुआत 24 अगस्त से होगी.
BJP बना रही है मेगा इवेंट
जिस तरह से श्रद्धांजलि सभाएं, अस्थि विसर्जन और उनके नाम पर नयी-नयी योजनाओं की घोषणाओं की तैयारियां चल रही हैं, उनसे एक बात तो साफ है कि बीजेपी इस अस्थि विसर्जन को एक मेगा इवेंट बनाने जा रही है, जिसमें उसे महारथ भी हासिल है. चूंकि, सामने 2019 का चुनाव है, इसलिए वह चूकना भी नहीं चाहती.
गंगा में 9, यमुना में 18 बार अस्थि विर्सजन
यूपी में रहने वाले भी कम ही लोगों को मालूम होगा कि यहां इतनी नदियां बहती हैं. लेकिन योगी सरकार ने लिस्ट तैयार की है, प्रदेश के कुल 75 जिलों में गंगा से लेकर हिंडन तक 42 नदियां हैं. सोनभद्र की कान्हा हो या फिर बस्ती की मनोरमा नदी, तकरीबन 18 ऐसी नदियां हैं जो सिर्फ एक ही जिले तक सीमित हैं.
आमतौर पर हिन्दू धर्म में अस्थियां हरिद्वार, इलाहाबाद, काशी में विसर्जन की परम्परा है, साथ ही जो धर्म में ज्यादा विश्वास रखते हैं और सक्षम हैं वे रामेश्वरम् तक अस्थियां ले जाते हैं. और यहां तो पूरी सरकार है, वो भी देश और प्रदेश दोनों में. लिहाजा वाजपेयी की अस्थियां यूपी की सभी नदियों में विसर्जित की जा रही हैं.
थोड़ा अजीब तो लग रहा है लेकिन मामला वाजपेयी जी का है, जो नदियों की दशा को लेकर चिन्तित रहते थे. सभी नदियों को आपस में जोड़ने के बारे में सोच रहे थे ताकि उनका अस्तित्व बचा रहे. पर ये समझ से परे है कि आखिर एक ही नदी में कई बार विसर्जन का क्या मतलब है?
मामला राजनीति का है
यहां मामला राजनीति का है, जहां राज पाने के लिए धर्म और कर्म की हर वो नीति अपनायी जाती है जिनमें सिर्फ मुनाफा ही नजर आये. ऐसे में बीजेपी अगर गंगा में 9, यमुना में 18,गोमती में 12, घाघरा में 13, हिंडन में तीन, यानि 42 नदियों में 145 बार अस्थि विसर्जन करती है तो कोई हैरानी की बात नहीं है.
इससे वाजपेयी जी की आत्मा कितनी प्रसन्न होगी, इसे कौन जान सकता है, लेकिन उनकी राख के बदले बीजेपी ने 2019 के लिए वोट जुटाने की कसरत तो शुरू कर ही दी है. साफ है जिले-जिले श्रद्धांजलि सभाओं के आयोजनों का अच्छा मौका मिल गया है. मकसद साफ है जितनी श्रद्धांजलि सभाएं होंगी, बीजेपी उतनी ही सहानुभूति बटोर सकेगी.
42 नदियों में 145 जगहों पर अस्थि विसर्जन
- गंगा में 9 जगह: कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, कासगंज, अलीगढ़, अमरोहा, बदायूं, उन्नाव, मिर्जापुर
- यमुना में 18 जगह: कानपुर देहात, इलाहाबाद, आगरा, औरैया, बागपत, बांदा, चित्रकूट, इटावा, फतेहपुर, फिरोजाबाद, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, हमीरपुर, जालौन, कौशाम्बी, मथुरा, सहारनपुर, शामली
- चंबल में 2 जगह: आगरा, इटावा
- टोंस में 6 जगहः इलाहाबाद, अंबेडकरनगर, आजमगढ़, बलिया, फैजाबाद, मऊ-
- गोमती में 12 जगहः लखनऊ, अमेठी, वाराणसी, बाराबंकी, गाजीपुर, जौनपुर, लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर, सीतापुर, सुल्तानपुर
- वरुणा में दो जगहः वाराणसी, संतरविदास नगर
- घाघरा में 13 जगहः सीतापुर, संत कबीरनगर, मऊ, गोंडा, फैजाबाद, देवरिया, बस्ती, बाराबंकी, बलिया, बहराइच, आजमगढ़, अंबेडकरनगर, गोरखपुर
क्या अगले चुनाव में बीजेपी का होगा इसका फायदा?
हालिया उपचुनावों में हार के बाद डैमेज कंट्रोल के लिए बीजेपी की ओर से खेला जा रहा हर दांव उल्टा पड़ रहा है. एससी-एसटी एक्ट मामले में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ खड़ा होना ज्यादा ही नुकसान पहुंचा सकता है, क्योंकि इस फैसले से दलितों के नजदीक आने की उम्मीद तो कम है, हां सवर्ण जरूर नाराज होने लगे हैं.
यही नहीं, पिछड़ी जातियों की गणित भी गड़बड़ा रही है. ऐसे बुरे वक्त में वाजपेयी की अस्थियों को बीजेपी चुनावी भभूत के रूप में देख रही है. कम से कम वाजपेयी जी का ब्रह्मण चेहरा सामने लाकर सवर्णों को दूर जाने के रोकने की कोशिश तो हो ही सकती है.
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इस बार 2014 वाली बात नहीं
दूसरी तरफ इस बार 2014 वाली बात नही है. मोदी की सुनामी गंगा में बाढ़ के बाद लगातार कम होते जल की तरह दिख रही है. वहीं बीजेपी के खिलाफ सभी पार्टियां एक साथ मिलकर ताल ठोकने की रणनीति बना रही हैं. गोरखपुर से कैराना तक उपचुनावों में गठबंधन का ट्रेलर सबने देखा है.
एसपी के प्रवक्ता अनुराग भदौरिया का कहना है कि वाजपेयी जी ऐसे नेता थे जिनका विपक्ष भी सम्मान करता था लेकिन आज की बीजेपी सिर्फ पैकेजिंग और मार्केटिंग का बिजनेस कर रही है. अपने नेता की अस्थियों के बदले वोट की राजनीति में जुट गयी है. वाजपेयी जी की मौत को कितना ज्यादा से ज्यादा बेचा जा सकता है, उसका हर फार्मूला तलाशा जा रहा है.
बीजेपी वाजपेयी से जुड़ी हर वो चीज इस्तेमाल करने की तैयारी में लगी है जिससे उसका थोड़ा भी फायदा हो सकता है. अस्थि विसर्जन के कार्यक्रम को वृहद और प्रभावी बनाने के लिए सूबे के मंत्रियों और पदाधिकारियों की जिम्मेदारी सौंपी गयी है.
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