पटना के पटेल नगर निवासी राजीव कुमार सिंह आजकल बहुत "कन्फ्यूज्ड" और गुस्से में हैं. पूछने पर वो झल्लाहट के साथ कहते हैं, "सरकार कहती है घर पर रहो, चुनाव आयोग कह रहा है बाहर निकलो (और वोट करो). किसकी बात मानें हम?"
सिंह अकेले नहीं जो इस कन्फूजन के दौर से गुजर रहे हैं. उनकी तरह लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले बहुत सारे लोग परेशान हैं, और ये सारी समस्या निर्वाचन आयोग द्वारा वैश्विक महामारी कोरोना के बीच चुनाव करवाने को लेकर जारी गाइडलाइन्स के बाद पैदा हुई है. इसका ये मतलब हुआ कि चुनाव आयोग कोरोना महामारी के बीच ही बिहार में चुनाव करवाने जा रहा है.
आम वोटर के मन में सवाल
आम वोटर इस बात को लेकर परेशान है कि कोरोना महामारी के बीच वो अपने घर से निकलकर अपने मताधिकार का प्रयोग कैसे करेगा? यदि वो वोट देने के लिए निकला और कोरोना से संक्रमित हो गया तो उनका कौन ख्याल करेगा? कहने को तो बहुत सारी बातें हैं लेकिन हकीकत यह है कि सरकारी अस्पतालों में कोरोना मरीजों के लिए जगह नहीं है. है भी तो अंदर की स्थिति काफी भयावह है. उधर, प्राइवेट हॉस्पिटलों में इलाज करवाने की आम आदमी कि हैसियत नहीं है.
पटना स्थित अनुग्रह नारायण सिंह समाज अध्ययन संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. डी एम् दिवाकर कहते हैं, "वर्तमान में घटित सारी चीजें यह बता रहीं हैं कि अब जनता जरूरी नहीं है. जनता जिए या मरे हम चुनाव करवा के रहेंगे. जब जनता महत्वपूर्ण ही नहीं है तो फिर कोई महामारी हो क्या फर्क पड़ता है?" प्रो. दिवाकर कहते हैं कि चुनाव आयोग की संवेदनशीलता आज संदेह के घेरे में है.
“BJP और JDU को छोड़कर लगभग सारी राजनितिक पार्टियां चुनाव टालने की मांग कर रहीं है. खुद NDA का घटक दल LJP भी इसकी लगातार मांग करती आ रही है लेकिन चुनाव आयोग इलेक्शन करवाने पर अड़ा है. मुझे लगता है कि यह देश लोकतंत्र को मजाक बना रहा है. अभी के दौर में जरुरी यह था कि जनता के जीवन का ख्याल रखते. लोग ज़िंदा रहेंगे तब न वोट करेंगे?”
चुनाव के विरोध में बिहार के कर्मचारी
सबसे ज्यादा गंभीर बात यह है कि खुद बिहार सरकार के कर्मचारी भी अभी चुनाव करवाने का विरोध कर रहे हैं और इसे रुकवाने के लिए सरकारी कर्मचारियों के करीब 11 संगठनों ने चुनाव आयोग को पत्र भेजकर अनुरोध किया है. बिहार सचिवालय सेवा संघ के अध्यक्ष विनोद कुमार कहते हैं कि अभी चुनाव करवाना बिलकुल भी उचित नहीं है. वो कहते हैं,
“जब हम कर्मचारी ही सुरक्षित नहीं हैं तो चुनाव कैसे करवाएंगे? चुनाव में भीड़भाड़ रहती है. इससे कोरोना के और फैलने की सम्भवना है.”
एक अन्य कर्मचारी ने नाम नहीं छापने के शर्त पर बताया क़ि कोई आश्चर्य नहीं कि यह चुनाव "सुपर स्प्रेडर" बन जाए और लोगों की जिंदगी और भी खतरे में पड़ जाए. मुख्य विपक्षी दल RJD ने तो पोलिंग बूथ पर जाने और वोट देने के दौरान किसी मतदाता के संक्रमित होने की स्थिति में चुनाव आयोग को सरकारी खर्चे पर इलाज कराने और चुनावी ड्यूटी में लगाए गए कर्मचारियों की तरह आम मतदाताओं का भी बीमा कराने की मांग की है.
समय-समय पर तरह-तरह की सरकारी गाइडलाइन्स ने लोगों को पहले ही से कन्फ्यूज कर रखा है. सरकार ने शुरू में कहा कि "घर पर रहें, सुरक्षित रहें" लेकिन बाद में कहा गया कि "फेस मास्क लगा कर बाहर निकलें." इस बीच, ट्रेन सेवा, बस सेवा और फ्लाइट्स भी रोक दी गईं. ये रोक अभी भी पूरी तरह से नहीं हटी हैं. खासकर बिहार में तो अभी भी लॉकडाउन है और घर से बाहर निकलने पर रोक है. और तो और, सब्जियों और फलों के दुकान को सुबह 6 से 10 बजे तक ही खोलने को कहा गया है. सवाल ये है कि-यदि सरकार की ही बात मान ली जाए कि जब फलों, सब्जियों को खरीदने से ही बाज़ारों में भीड़ बढ़ रही है तो फिर पोलिंग बूथ पर कैसे भीड़ नहीं लगेगी जहां कि लोगों को वोट देने जाना है?
क्या हैं कोरोना के मौजूदा हालात?
राजनितिक विशलेषकों का कहना है चुनाव आयोग की गाइडलाइन्स में वोटर के लिए पोलिंग बूथ पर फेस मास्क, सैनिटाइजर और ग्लव्स उपलब्ध करवाने की तो बात तो है लेकिन वहां डॉक्टर्स और दवाइयों के बारे में कोई चर्चा नहीं है. ये तब है जब बिहार में कोरोना कि स्थिति काफी गंभीर है. वर्तमान में यहां कोरोना की क्या स्थिति है इसको ऐसे समझें:
- शुरुआती दिनों में बिहार में कोरोना मरीजों की संख्या 10,000 पहुंचने में 102 दिन लगे लेकिन पिछले 52 दिन में अकेले 1.10 लाख मरीज बढ़ गए. मतलब, इन दिनों में बिहार में मरीजों की संख्या प्रतिदिन औसतन 2100 के हिसाब से बढ़ी.
- कोरोना मरीजों कि संख्या को रोकने के लिए बिहार सरकार को कुल छह बार लॉकडाउन लगाने पड़े.
- लाखों कि संख्या में बिहार लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को रखने के लिए बड़ी संख्या में स्कूलों, पंचायत भवनों में क्वारंटाइन केंद्र खोले गए. इन मजदूरों को 14 दिन क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया ताकि उनको अपने परिवार/समाज से दूर रखा जाए
जाहिर है बिहार में चुनाव कराना बड़ा जोखिम भरा कदम है. सौ फीसदी सुरक्षा की गारंटी के बिना चुनाव से लेने के देने पड़ सकते हैं. ऐसे में फिलहाल तो यही उम्मीद कर सकते हैं कि सितंबर आखिर या नवंबर की शुरुआत में जब मतदान होंगे तब तक कोरोना का असर कम हो जाए.
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