हे राम!
दो नारे देश में चल रहे हैं, ‘मोदी अगेन’ यानी मोदी फिर एक बार और ‘स्टॉप मोदी’ यानी मोदी को रोको. दोनों समूह परस्पर विरोधी दिखते हैं. एक सत्ताधारी दल के साथ है, तो दूसरा सत्ताधारी दल के खिलाफ है. मगर क्या सच में ये परस्पर विरोधी हैं? क्या यही सच है? सच्चाई समझनी हो तो जरा ठहरिए.
‘स्टॉप मोदी’ VS ‘मोदी अगेन’
‘स्टॉप मोदी’ से जुड़े लोगों के लिए खुद नरेंद्र मोदी का क्या कहना है? उनका कहना है कि जिन लोगों को हमने लूट मचाने की आजादी नहीं दी, शिकंजा कसा, वे सबके सब एक हो गए हैं.
वहीं ‘मोदी अगेन’ से जुड़े लोगों के लिए उन्हीं नरेंद्र मोदी का क्या कहना है? उनका कहना है, 'थैंक यू'.
‘स्टॉप मोदी’ की मुहिम में देश के राजनीतिक दल जुड़े हैं. उन दलों के नेता जुड़े हैं, ऐसे-ऐसे नेता भी हैं, जो उस एनडीए का नेतृत्व कर चुके हैं, जिसका एक हिस्सा बीजेपी रही है. शरद यादव और एन चंद्रबाबू नायडू ऐसे दो नाम हैं.
ऐसी पार्टियां भी इस मुहिम से जुड़ी हैं, जो कभी न कभी बीजेपी के साथ रही थीं. इनमें टीडीपी, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय लोकदल, बहुजन समाज पार्टी, डीएमके भी शामिल हैं. ‘स्टॉप मोदी’ वो नेता कह रहे हैं, जो बीजेपी की सरकार में वित्तमंत्री और विनिवेश मंत्री रह चुके थे. यहां तक कि शत्रुघ्न सिन्हा जैसे मौजूदा सांसद भी.
अब बात करते हैं ‘मोदी अगेन’ की. कौन लोग कह रहे हैं ‘मोदी अगेन’? क्या बीजेपी के लोग? क्या आरएसएस के लोग? सरसरी तौर पर आप कहेंगे- हां, बिल्कुल. मगर जरा ठहरिए.
‘मोदी अगेन’ की टी-शर्ट पहनने वाले लोगों की जमात बहुत छोटी है. अनुराग ठाकुर, पीयूष गोयल, बाबुल सुप्रियो, राज्यवर्धन सिंह राठौर जैसे नेता इस अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं, पूरी बीजेपी नहीं.
बीजेपी के लोग ‘मोदी अगेन’ नहीं, ‘बीजेपी अगेन’ बोलना चाहते हैं. वे टी-शर्ट पहनकर वफादारी की होड़ दिखाना नहीं चाहते, क्योंकि वे मानते हैं कि उनकी वफादारी संदिग्ध नहीं है. वे बीजेपी के झंडे के लिए जान दे देते हैं, होर्डिंग लगाने के लिए लड़ जाते हैं.
मगर, ‘मोदी अगेन’ की टी शर्ट पहनना नहीं चाहते. यह उनके जमीर को गवारा नहीं है. उनकी आत्मा इसे स्वीकार नहीं करती. यह सिर्फ एक पहलू है.
क्या बीजेपी के बड़े नेता और संघ प्रचारक भी पहनेंगे टी-शर्ट?
दूसरा पहलू ये है कि क्या ‘मोदी अगेन’ की टी-शर्ट या कोई और पहनावा लालकृष्ण आडवाणी को पहनाया जा सकता है? क्या वे पहनेंगे? क्या मुरली मनोहर जोशी और दूसरे नेताओं को पहनाया जा सकता है? क्या इसी अंदाज में ‘मोदी अगेन’ प्रिंट की हुई साड़ी सुषमा स्वराज पहन सकती हैं? हो सकता है स्मृति ईरानी को इससे परहेज न हो.
क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कोई प्रचारक ‘मोदी अगेन’ प्रिन्ट वाला कोई पहनावा पहन सकता है? यकीन और दावे के साथ कहा जा सकता है- नहीं. इसका अर्थ क्या हुआ?
‘मोदी अगेन’ की जो मुहिम बीजेपी के लोग चला रहे हैं उसे खुद पूरी बीजेपी ही स्वीकार नहीं कर पा रही है. हां, ये बात भी जरूर है कि विरोध भी नहीं कर पा रही है. विरोध होना चाहिए था. तभी बीजेपी स्वस्थ रह सकती थी. शरीर में जब कोई अवांछित पदार्थ चला जाता है तो इंसान वोमेटिंग करता है.
ये कोई बीमारी नहीं होती. यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का प्रदर्शन होता है. बीजेपी में यही प्रतिरोधक क्षमता खत्म होती दिख रही है. लेकिन, इससे ‘मोदी अगेन’ को बीजेपी के लिए स्वास्थ्यवर्धक कैसे मान लिया जाए?
‘मोदी अगेन’ और ‘स्टॉप मोदी’ में एक बड़ा फर्क भी है, जिस पर गौर करना जरूरी है. जब ‘मोदी अगेन’ की मुहिम छिड़ती है तो वह सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए होता है. मगर जो ‘स्टॉप मोदी’ की मुहिम चल रही है, उसमें मोदी का मतलब सिर्फ नरेंद्र मोदी नहीं है. उसका मतलब पूरी बीजेपी, एनडीए और यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है.
आपत्ति हो सकती है कि ‘मोदी अगेन’ को सिर्फ नरेंद्र मोदी के लिए ही क्यों कहा जा रहा है? इसका मतलब और मकसद बीजेपी, एनडीए सब है. मगर ये आपत्ति इसलिए सही नहीं है क्योंकि चुनाव बाद की परिस्थिति अगर एनडीए में किसी सहयोगी दल को मौका देने की होगी.
खुद बीजेपी में किसी और को मौका देने की विवशता पैदा होगी, तो उसके लिए यह मुहिम कोई गुंजाइश नहीं छोड़ती है. लोकतांत्रिक पार्टी, लोकतांत्रिक गठबंधन और लोकतांत्रिक देश में ‘मोदी अगेन’ अलोकतांत्रिक और विशुद्ध वैयक्तिकता को बढ़ाने वाली मुहिम बनकर रह जाता है.
क्रिकेट और राजनीति
यहां गैर जरूरी तरीके से ही सही, मगर बोलना जरूरी लगता है कि देश के लिए क्रिकेट खेलते खिलाड़ी भी जब किसी नामचीन कंपनी की जर्सी पहन लेते हैं, तो क्रिकेट प्रेमी का दिल कचोटता है.
विज्ञापन के लिए क्रिकेट को धारण करने वाले, क्रिकेट को जीने वाले और क्रिकेट में दिन-रात एक करने वाले इंसान का शरीर पवित्र नहीं हो सकता. बेचारे क्रिकेटरों ने इसे परंपरा का हिस्सा मानकर स्वीकार कर लिया है.
अब तो साक्षात उनकी खरीद-बिक्री भी होती है तो उनको बुरा नहीं लगता. लेकिन, पाठकों आप ईमानदारी से याद कीजिए उन पलों को, जब आपका चहेता खिलाड़ी बिक रहा होता है, तो आपके मन में क्या गुजरती है.
वैसे तो क्रिकेट और राजनीति के बीच तुलना नहीं हो सकती. मगर क्रिकेटर और राजनीतिज्ञ में तुलना हो सकती है. क्योंकि दोनों ओर जीवन का समर्पण है, लक्ष्य है, देश है, देशप्रेम है. क्रिकेट के समर्थकों और राजनीतिक दलों के समर्थको में भी तुलना हो सकती है. क्योंकि, दोनों समर्थक समूहों में दिल है, जज्बा है भावना है, दुख में दुखी और खुशी के क्षणों में खुशी के मारे उछलने वाला जोश है.
दोनों नारे बीजेपी के खिलाफ
अब आप ये महसूस कर सकते हैं कि दोनों नारे दरअसल बीजेपी के खिलाफ हैं. ये दोनों नारे दिखने में विपरीत स्वभाव के हो कर भी एक-दूसरे को मदद पहुंचा रहे हैं. जन समर्थन के प्रोटीन-विटामिन से युक्त होकर भी बीजेपी कमजोर होने लगी है, बीमार होने लगी है.
मगर, क्या बीजेपी की आत्मा को धारण करने वाली जमात को समय रहते इस बीमारी का पता चल पाएगा?
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