पांच साल पहले मोदी सरकार का पहला बजट पेश करते हुये तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण में 4 बार क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन शब्द का इस्तेमाल किया. जेटली ने क्लाइमेट चेंज को एक ‘वास्तविकता’ बताया और कहा कि ‘सभी को मिलकर’ इस खतरे से लड़ना होगा.
10 जुलाई 2014 के अपने बजट भाषण में अरुण जेटली ने जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का जिक्र करते हुये एक 100 करोड़ रुपये का ‘नेशनल एडाप्टेशन फंड’ बनाने की बात की.
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इसे एक विडंबना ही कहा जायेगा कि 5 साल बाद जेटली की उत्तराधिकारी वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में क्लाइमेट चेंज का जिक्र एक बार भी नहीं किया. यह इसलिये महत्वपूर्ण है कि आज दुनिया भर से आ रही खबरों में जलवायु परिवर्तन को लेकर हाहाकार मचा हुआ है.
‘क्लाइमेट इमरजेंसी’ घोषित करने वाला पहला देश बना ब्रिटेन
अमेरिका और यूरोप समेत दुनिया के तमाम हिस्सों में करोड़ों छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता इस साल की शुरुआत से सड़कों पर हैं और ग्लोबल वॉर्मिंग को देखते हुये आपातकाल घोषित करने की मांग कर रहे हैं. मई के पहले हफ्ते में ब्रिटेन की संसद ने इस मांग को स्वीकार किया और वह “क्लाइमेट इमरजेंसी” घोषित करने वाला पहला देश बना.
पिछली 19 जून को साइंस पत्रिका साइंस एडवांसेज प्रकाशित रिसर्च में कहा गया कि हिमालयी ग्लेशियरों की पिघलने की रफ्तार दुगनी हो चुकी है, लेकिन हिमालय का जिक्र बजट भाषण में औपचारिकता के लिये भी नहीं किया गया. इसी पत्रिका में छपी एक और रिसर्च बता रही है कि ग्लोबल वॉर्मिंग अगर ऐसे ही बढ़ती रही तो हीटवेव्स यानी लू की सबसे अधिक मार दक्षिण एशिया पर होगी और भारत में सबसे अधिक लोगों को खतरा है.
एक्शन ऐड के ग्लोबल लीड और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ हरजीत सिंह का कहना है-
हम क्लाइमेट चेंज के खतरों को लेकर दुनिया भर में आवाज उठा रहे हैं. भौगोलिक स्थिति, खेती की वर्षा पर निर्भरता, समुद्र तट रेखा की लंबाई और विशाल आबादी को देखते हुये भारत के लिये इसके खतरे सबसे अधिक हैं. वित्तमंत्री के भाषण में क्लाइमेट चेंज का जिक्र भी न होने से इस संकट से लड़ने में सरकार की गंभीरता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है.
जलवायु परिवर्तन गरीब और विकासशील देशों को और गरीब बना रहे हैं
जलवायु परिवर्तन के संकट को समझना और गंभीरता से सेना इसलिये जरूरी है, क्योंकि यह सीधे तौर पर विकास दर से जुड़ी हुई है.
“सरकार देश को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनोमी बनाने की बात करती है, जो कि एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, लेकिन चक्रवाती तूफान, सूखा या बाढ़ जैसी आपदा आपको कई साल पीछे धकेल देती है” इस समस्या को समझाते हुये हरजीत सिंह कहते हैं. एक प्रतिष्ठित अमेरिकी साइंस जर्नल में इसी साल छपी रिपोर्ट कहती है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे गरीब और विकासशील देशों को और गरीब बना रहे हैं. यह रिपोर्ट कहती है कि अगर ग्लोबल वॉर्मिंग का असर न होता तो भारत की जीडीपी आज के मुकाबले 30% अधिक होती.
मामला सिर्फ जलवायु परिवर्तन तक सीमित नहीं है. गंगा की सफाई जैसे मुद्दों पर भी सीतारमण चुप ही रहीं, जबकि इससे पहले के बजट भाषणों में इस पर प्रमुखता से कहा जाता रहा है. वित्तमंत्री ने गंगा की सफाई कार्यक्रम के बारे में कुछ नहीं कहा और नदी का जिक्र सिर्फ ‘जल विकास मार्ग’ को लेकर किया जिसे बनाने की बात अरुण जेटली के भाषण में 5 साल पहले हुई थी.
पर्यावरण से जुड़े दूसरे मुद्दों पर चुप रहीं सीतारमण
इसी तरह पर्यावरण से जुड़े दूसरे मुद्दों पर सीतारमण चुप ही रहीं, जबकि सिर्फ 5 महीने पहले फरवरी में कामचलाऊ (इंटरिम) बजट पेश करते हुये पीयूष गोयल ने इन मुद्दों पर कहीं अधिक भरोसा जगाने वाला भाषण दिया था. पिछले 3 सालों में वायु प्रदूषण को लेकर भारत के लिये चिन्ताजनक खबरें सामने आईं हैं.
लांसेट और स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर (SoGA) रिपोर्ट्स में कहा गया कि भारत में हर साल 12 लाख लोग वायु प्रदूषण से हो रही बीमारियों से मर रहे हैं. सरकार ने इन्हें ‘विदेशी’ संस्थाओं की “अलार्मिस्ट” रिपोर्ट कहा, लेकिन पिछले साल दिसंबर में खुद केंद्र सरकार की इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने इन रिपोर्ट्स की पुष्टि की.
बड़े इंतजार के बाद इसी साल सरकार ने नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) की घोषणा की, लेकिन इसका कोई फायदा होता नहीं दिखता क्योंकि इस मुहिम में साल 2024 तक देश के करीब 100 महानगरों में वायु प्रदूषण का स्तर 30% घटाने को कहा गया है, जो प्रदूषण की भयावहता को देखते हुये ऊंट के मुंह में जीरा ही कहा जायेगा. महत्वपूर्ण यह भी है कि इस प्रोग्राम में अधिकारियों को कार्रवाई के लिये कोई कानूनी ताकत नहीं दी गई है.
नवंबर आते-आते आसपास के राज्यों में फसल की खुंटी जलाने से दिल्ली और एनसीआर में सांस लेना मुश्किल हो जायेगा. ऐसे में हैरान करने वाला है कि वित्तमंत्री ने साफ हवा के लिये कोई हेल्थ इमरजेंसी जैसी बात नहीं कही सौर ऊर्जा में रूफ टॉप सोलर में तरक्की नहीं के बराबर है, लेकिन वित्तमंत्री ने कुछ नहीं बताया कि इसे कैसे दुरुस्त किया जायेगा.
साफ पानी नहीं मिलने से हर साल 2 लाख लोगों की मौत
बैटरी वाहनों को बढ़ावा देने के लिये जरूर कहा, लेकिन जब तक बैटरियों के लिये सोलर चार्जिंग स्टेशन बहुतायत में नहीं होंगे बैटरियां थर्मल पावर से चार्ज होती रहेंगी, जिससे कुल कार्बन उत्सर्जन में कोई कमी नहीं आयेगी और बैटरी कारें शो-पीस बनकर रह जायेंगी.
जल संकट पर सरकार के अपने आंकड़े बताते रहे हैं कि साफ पानी न मिलने से हर साल 2 लाख लोगों की मौत हो रही है. इस साल जून में ग्राउंड वाटर 54% कम हो गया था. प्रधानमंत्री ने 2024 तक सभी घरों में नल से जल पहुंचाने का वादा किया है, लेकिन जानकारों को डर है कि कहीं यह स्कीम ठेकेदारों के हत्थे चढ़कर न रह जाये.
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वित्तमंत्री की चुप्पी को समझने के लिये यह जानना पर्याप्त होगा कि गंगा की सफाई शुरू किया गया नमामि गंगे अभियान कुछ खास हासिल नहीं कर पाया है. बल्कि कई जगहों पर गंगा और अधिक प्रदूषित हुई है. अधिक निराशा वाली बात है कि इस बजट में सरकार ने नमामि गंगे अभियान के फंड में 65% से अधिक कटौती कर दी है. अलग-अलग मंत्रालयों के कई विभागों को मिलाकर सरकार ने जल शक्ति नाम से मंत्रालय जरूर बना दिया पर उसके आबंटित फंड को भी करीब 10% कम कर दिया गया है.
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