बजट के पहले की बातें सुनकर मैं आशंकित हो रहा हूं. अतिरिक्त राजस्व के लिए कोविड सेस लगाने की बात हो रही है. चालाकी भरी सूचनाओं के लीक को का हवाला देते हुए आर्थिक अखबारों ने इसे “केयन्स-प्रेरित खर्च बजट” करार देना शुरू कर दिया है जहां स्वास्थ्य सुविधाओं और बुनियादी सुविधाओं पर बड़ा खर्च “हमारी अर्थव्यवस्था को फिर से विकास की ओर ले जाएगा”. संकेत मिलने पर, टिप्पणी करने वाले कम ही सही लेकिन इसकी सराहना कर रहे हैं कि कैसे “1935 में न्यू डील के तहत आधारभूत सुविधाओं में एक अभूतपूर्व प्रोत्साहन ने लाखों नौकरियां पैदा कीं और अमेरिका में क्षेत्रीय आर्थिक विकास किया. भारत को इससे प्रेरणा लेनी चाहिए. ”
कृपया मुझे गलत नहीं समझें.
मैं मानता हूं कि हमारी अर्थव्यवस्था को अपनी मौजूदा स्थिति से मुक्ति पाने के लिए एक बड़ा वित्तीय प्रोत्साहन चाहिए. मैं ये भी मानता हूं कि एफडीआर की न्यू डील ने अमेरिका को मंदी के बाद की समस्याओं से उबारा. इन दोनों दावों पर कोई विवाद नहीं है.
वित्तीय प्रोत्साहन और ज्यादा सरकारी खर्च के बीच झूठी समानता
लेकिन में इतना ही आश्वस्त हूं कि हमारे देश ने आर्थिक योजनाओं को पूरा करने में बहुत ही खराब क्षमता का प्रदर्शन किया है. भारत सरकार जो नहीं कर पाई है:
करीब आधे दशक में एक एयरलाइंस की बिक्री
करीब एक दशक में मुंबई और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में दूसरे एयरपोर्ट का निर्माण
अपनी पहली बुलेट ट्रेन को पटरी पर उतारना
दशकों में दिल्ली-मुंबई फ्रेट कॉरिडोर के लिए महत्वपूर्ण आकार की प्राप्ति
ब्रोशर के अलावा अहमदाबाद के जीआईएफटी को लंदन के कैनरी व्हार्फ के जैसा बनाना, और
यहां तक कि शेयर बेचना, संपत्ति निर्माण की बात तो भूल ही जाइए-पिछले 12 सालों में 10 साल सरकार अपने विनिवेश के लक्ष्य से काफी पीछे रही है, मौजूदा वित्तीय वर्ष सबसे खराब रहा है इसके बावजूद कि निजी सेक्टर स्टॉक मार्केट में उछाल से 1.7 ट्रिलियन की कमाई कर चुका है.
इसलिए जब वित्तीय प्रोत्साहन-जिसका मैं खुलकर समर्थन करता हूं- की तुलना पूरी तरह से “सरकारी खर्च बढ़ाने” से की जाती है, मैं बिना अनुमति अनुपस्थित रहने वाले में बदल जाता हूं. मेरी किताब में, कुछ भी जो “ज्यादा सरकारी गतिविधि” का आह्वान करता है वो एक विरोधाभास है जो असफल होने के लिए अभिशप्त है. अर्थव्यवस्था को जिस चीज की आवश्यकता है वो है प्रोत्साहन का एक त्वरित और तत्काल डोज, इसके बजाए “सरकारी खर्च बढ़ाने” से ये होगा कि बिना किसी शुरुआत के हजारों लाल फीताशाही और दस्तावेज-फाइल, नीलामी, टेंडर आदि पैदा हो जाएंगे. हां, कई महीनों और सालों बाद, कुछ खुदाई होगी, क्रेन और अर्थमूवर काम करना शुरू करेंगे लेकिन अभी, मौजूदा साल में सिर्फ बातें होंगी जिसका कोई फायदा नहीं होगा.
मेरी मुख्य आपत्ति यही है-मैं एक वित्तीय प्रोत्साहन और सरकारी खर्च बढ़ाने के बीच झूठी समानता से पूरी तरह असहमत हूं.
अर्थव्यवस्था का निष्पक्ष, क्लिनिकल डायग्नोसिस
मेरा मानना है कि अर्थव्यवस्था का एक निष्पक्ष, क्लिनिकल डायग्नोसिस मेरी बातों की पुष्टि करेगा. चलिए, इस साल के लिए जीडीपी के पहले एडवांस एस्टिमेट में एनएसओ की ओर से जारी किए गए सरकार के आंकड़ों के साथ ये करते हैं.
ये (-)7.7 फीसदी की बड़ी गिरावट है, 1952 के बाद सबसे बड़ी, आठ में सात सेक्टरों में न तो वृद्धि है और न ही गिरावट, 30 ट्रिलियन का तथाकथित आर्थिक आउटपुट का सफाया हो गया. आप में से उन लोगों के लिए जिन्हें आंकड़े पसंद हैं अनुमानित जीडीपी 225 ट्रिलियन थी, जबकि हमारी अर्थव्यवस्था के 195 ट्रिलियन तक ही पहुंचने की संभावना है.
निवेश (-) 14.5 फीसदी के घातक निचले स्तर तक घट गया है जबकि निजी खपत खर्च ऊंचाई से (-) 9.5 फीसदी तक गिर गया. साफ है कि हमारी अर्थव्यवस्था का दिल और फेफड़े काफी बीमार हैं.
ऐसा ही हाल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का है जिसमें (-) 9.4 फीसदी की गिरावट आई है-पिछले साल के 0.03% “विकास” के बाद, जो स्थिति को और खराब बनाती है, इसके ऊपर ये कि आम तौर पर अच्छा करने वाले सर्विस सेक्टर में भी (-) 8.3 फीसदी की कमी आई है.
विडंबना ये है कि कंपनियों ने मजबूत लाभप्रदता (प्रॉफिटेबिलिटी) दिखाई है, लेकिन इसमें भी एक मीठा जहर है, क्योंकि लागत और मजदूरी में गिरावट आई है. पंगु बनाने वाला प्रभाव क्या है? जाहिर है खपत पर.
प्रति व्यक्ति आय 5 फीसदी घट गई है, प्रति सामान्य भारतीय प्रति महीने करीब 1000 रुपये (फिर से जिन्हें आंकड़े अच्छे लगते हैं उनके लिए, प्रति व्यक्ति आय 1.34 लाख से घटकर 1.27 लाख तक), अगर आप इस आंकड़े को इस तथ्य के सामने रखें कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन बढ़ने के बाद भी, पिछले साल की तुलना में 2020 में एक करोड़ 47 लाख नौकरियां गई हैं, तो आप ये पता लगा सकते हैं कि संकट का केंद्र कहां है, यानी शहरी और अर्ध शहरी खपत जबकि ग्रामीण खरीदारों ने स्थिति को और ज्यादा बिगड़ने नहीं दिया.
सबसे अच्छे वित्तीय प्रोत्साहन के लिए टैक्स घटाने और कैश ट्रांसफर का रास्ता अपनाएं
इसलिए, अगर हम हमारे प्रोत्साहन को “और अधिक सरकारी खर्च” तक सीमित रखें तो हम बेकार बम से जहां-तहां हमले कर रहे होंगे, बेकार क्योंकि उनके फटने का समय कई साल बाद तय किया गया है जबकि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन के ऊर्जा की अभी जरूरत है. इसलिए बिना कारण सरकार का काम बढ़ाने की जगह हमें डायरेक्ट कैश ट्रांसफर और टैक्स घटाने जैसे दूसरे विकल्पों का रुख करना चाहिए जो शहरी खपत और औद्योगिक निवेश पर पूरी तरह केंद्रित हो सकते हैं.
अब, मैं ये कहने की हिम्मत कर सकता हूं कि सबसे अच्छा वित्तीय प्रोत्साहन कैसा दिख सकता है:
हर आय-कर दाता तो एक “विशेष खर्च वाउचर”, मान लीजिए 5 लाख का, दिया जाता है जिसका इस्तेमाल 31 मार्च 2022 के पहले कोई उत्पाद या सेवा खरीदने में कुछ इस तरह किया जाना चाहिए कि “खर्च वाउचर“ को कर योग्य आय से घटाया जा सके. ये हर किसी को बाहर जाने और कुछ खरीदने के लिए प्रोत्साहित करेगा, चाहे घर हो या छुट्टी या कार या महंगा स्मार्टफोन या डेस्कटॉप कम्प्यूटर या कुछ भी-वास्तव में आपका टैक्स ब्रैकेट जितना बड़ा होगा, ज्यादा कीमत की वस्तु खरीदने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी.
मौजूदा साल में खरीदे गए औद्योगिक प्लांट/सामान के लिए एक बढ़िया डेप्रिशिएसन कवर (अवमूल्यन सुरक्षा) दी जाए. उदाहरण के तौर पर आप संपत्तियां, मान लीजिए जिनका 25 साल तक इस्तेमाल हो सकता है, उसके लिए तीन साल राइट ऑफ का परमिट दे सकते हैं. ये बड़े पैमाने पर पूंजी निर्माण को आगे बढ़ाएगा.
अंत में, अप्रत्यक्ष कर को कुछ समय- शायद छह महीने या पूरे वित्तीय वर्ष के लिए काफी कम- 33 या 50 फीसदी तक घटाया जा सकता है. ये महाराष्ट्र सरकार के पिछले साल तीन महीने के लिए 60 फीसदी स्टांप ड्यूटी कम करने के फैसले से प्रेरित होगा जिसने मुंबई के कोमा में पड़े प्रॉपर्टी बाजार में जान फूंक दी थी.
ऊपर प्रभाव बनाने के लिए दिए गए अतिरंजित उदाहरण हैं. लेकिन सिद्धांत स्पष्ट हैं.
हमें कम टैक्स और कीमतों की दोनाली के जरिए आम खरीदारों के लिए एक असाधारण क्रय क्षमता का निर्माण करना चाहिए.
हमें ऐसा सीमित समय के लिए करना चाहिए जिससे कि खरीदारों को अस्थायी लाभ उठाने के लिए जल्दबाजी करनी पड़े.
हां, सरकार की टैक्स से कमाई घटेगी, लेकिन चिंता नहीं करें, वही वित्तीय प्रोत्साहन है!
निष्कर्ष:
मौजूदा साल में कुछ सौ नौकरशाहों के नई सड़कें और पुल बनाने की असंभव कोशिश के बजाए हम लाखों सशक्त उपभोक्ताओं को जो वो खरीदना चाहते और उन्हें जिनकी जरूरत है, वो खरीदने के लिए प्रेरित करेंगे. ऊपर से किसी तरह के आदेश या कुछ थोपने के बजाए, नीचे से मांग का एक संगठित आधार तैयार करेगा. मेरे पास कुछ ही पैसे बचे हों तो मैं उससे भी शर्त लगा सकता हूं कि आर्थिक विकास मजबूती के साथ लौट आएगा.
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