मोदी 3.0 का पहला पूर्ण केंद्रीय बजट (Budget 2024) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने मंगलवार, 23 जुलाई को पेश किया. अब ये देखना जरूरी है कि सरकार ने अपने बजट में महंगाई, बढ़ते कर्ज और रोजगार सृजन को लेकर क्या कदम उठाए हैं?
आर्थिक सर्वेक्षण में भारत की अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति की ईमानदार समीक्षा करने के बाद पेश हुए बजट से पता चलता है कि बजट में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियों से निपटने के लिए चीजें शामिल की गईं हैं. बजट से संकेत मिलता है कि इसमें किसानों, गरीबों, महिलाओं और युवाओं को अधिक प्राथमिकता दी गई है जिसमें रोजगार, स्किल डेवलपमेंट, एमएसएमई, और मध्यम वर्ग पर ध्यान केंद्रित है.
अब पिछले 10 सालों में इस पर इतना फोकस नहीं किया गया और अब जब इन मुद्दों पर ध्यान दिया जा रहा है तो ऐसे में ये पर्याप्त नहीं होगा. ऐसा लगता है कि जो कदम अब उठाए गए हैं वे प्रतीकात्मक ज्यादा हैं.
रोजगार
हाल के सालों में रियल जीडीपी (Real GDP) और विकास दरों के ट्रेंड को देखते हुए, रियल जीडीपी ने बढ़त हासिल की है. 2020-21 में ये 125 लाख करोड़ रुपये थी जो 2023-24 के लिए 155 लाख करोड़ रुपये अनुमानित हैं. हालांकि, बजट में उन चिंताओं को भी शामिल किया गया है - जैसे दुनियाभर में चल रहे संघर्ष जिससे सप्लाय चेन में बाधा आई, सामानों की कीमत बढ़ गई - जिससे महंगाई पर दबाव बढ़ सकता है. इसी वजह से मौद्रिक नीति (Monetary Policy) को आसान करने में समस्या आ सकती है.
बजट का एक महत्वपूर्ण आकर्षण प्रधानमंत्री का रोजगार पैकेज है, जिसमें तीन प्रमुख योजनाएं शामिल हैं.
स्कीम A: फॉर्मल सेक्टर में एंट्री करने वाले नए लोगों को एक महीने की सैलेरी दी जाएगी जिसका भुगतान 15,000 रुपये तक तीन किस्तों में किया जाएगा, इससे 210 लाख युवाओं को फायदा मिलेगा.
स्कीम B: चार सालों के लिए ईपीएफओ (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) के योगदान का समर्थन करके मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करेगी, जिससे 30 लाख युवाओं को फायदा मिलेगा.
स्कीम C: सरकार एम्प्लॉयर्स का बोझ घटाने के लिए नए कर्मचारियों के EPFO योगदान पर एम्प्लॉयर्स को 2 साल तक हर महीने 3 हजार रुपए का रीइंबर्सेमंट करेगी. इससे 50 लाख रोजगार पैदा होने की संभावना है.
इसके अलावा रोजगार, शिक्षा और स्किल डेवलपमेंट के लिए 1.48 लाख रुपये का प्रावधान किया गया है.
इसके अलावा, बजट में व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों (वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर्स) के सुधार के लिए कुल 1,000 इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट (ITIs) में महत्वपूर्ण सुधार किए जाएंगे. इस पहल को एक नए इंटर्नशिप योजना के साथ संशोधित किया जाएगा, जिसका मकसद ये सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों को अपनी फील्ड में काम करने का अनुभव मिले.
इन सुधारों के बाद वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर्स को ऐसा बनाया जाएगा जो इंडस्ट्री की जरूरतों को पूरा कर सकें, जिससे भविष्य में जब छात्र इंडस्ट्री में काम करने जाएं तो वे उन स्किल से लैस होने चाहिए जो इंडस्ट्री को चाहिए.
अब ये योजनाएं सही दिशा में एक कदम तो हैं, लेकिन इसे कैसे लागू किया जाएगा, इस संबंध में चिंताएं अभी भी बनी हुई हैं.
जैसे, स्कीम ए की एक महीने की वेतन सब्सिडी, जो तीन किस्तों में 15,000 रुपये तक सीमित है, स्थायी रोजगार को प्रोत्साहित नहीं कर सकती है. स्कीम बी के ईपीएफओ प्रोत्साहन से मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों को फायदा हो सकता है, छोटे बिजनेस को दरकिनार किया जा सकता है. स्कीम सी के तहत जो रीइंबर्सेमंट होगा वो दो सालों के लिए हर महीने 3,000 रुपये तक सीमित है, हो सकता है इसमें वास्तविक भर्ती लागत (CTC) कवर नहीं है, इससे संभवत: रोजगार सृजन पर प्रभाव पड़ सकता है. इसके अतिरिक्त, नौकरियों की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. ये कदम कितने सही साबित होते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि आप इन महत्वपूर्ण मुद्दों को कितने सही तरीके से संबोधित करते हैं.
इंफ्रास्ट्रक्चर के बजट में बढ़ोतरी (कैपेक्स)
इंफ्रास्ट्रक्चर को ध्यान में रखते हुए निर्मला सीतारमण ने कैपेक्स (पूंजीगत व्यय) में महत्वपूर्ण वृद्धि की घोषणा करते हुए 11,11,111 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं, जो जीडीपी का 3.4% है.
कैपेक्स में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी का उद्देश्य बुनियादी ढांचे में निवेश को बढ़ावा देना और आर्थिक विकास को गति देना है. हालांकि, यह महत्वाकांक्षी कदम तब उठाया गया है जब इस बात की चिंता है कि इसे लागू कैसे किया जाएगा. ये भी ध्यान हो कि हाल के सालों में प्राइवेट सेक्टर ज्यादा निवेश नहीं कर पाया.
प्राथमिक चुनौतियों में से एक ये है कि बुनियादी ढांचे (इंफ्रा) में सरकारी निवेश लॉन्ग टर्म विकास के लिए आधार तैयार कर सकता है, लेकिन यह अकेले अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए नहीं रख सकता है. प्राइवेट सेक्टर के निवेश को भी सरकारी निवेश के साथ तालमेल बिठाना होगा क्योंकि ये आर्थिक गतिविधि को गति देने वाला एक महत्वपूर्ण फैक्टर है. सरकार कई सुधारों और प्रोत्साहनों को लेकर आई ताकी भारत में बिजनेस अच्छा हो सके लेकिन इसके बावजूद, प्राइवेट सेक्टर का विश्वास कमजोर बना हुआ है. हालांकि, इस बजट ने निवेश को बढ़ावा देने और भारत में एफडीआई परिदृश्य को सरल बनाने के लिए और अधिक सुधार पेश किए हैं.
इसके अलावा, कैपेक्स पर बढ़ते फोकस के कारण रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (सैलरी, पेंशन, आदी) में बड़ी कमी आई है. सामाजिक कल्याण के लिए केवल 56,501 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो डिफेंस (4,54,773 करोड़ रुपये), ग्रामीण विकास (2,65,808 करोड़ रुपये), कृषि (1,51,851 करोड़ रुपये) और गृह मंत्रालय (1,50,983 करोड़ रुपये) के लिए किए गए आवंटन की तुलना में काफी कम हैं. यह असंतुलन विकास की स्थिरता पर सवाल उठाता है, क्योंकि रेवेन्यू एक्सपेंडिचर आमतौर पर जरूरी सेवाओं और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों को कवर करता है जो लोगों के जीवन की गुणवत्ता को सीधे प्रभावित करता है.
कैपिटल एक्सपेंडिचर (कैपेक्स) और रेवेन्यु एक्सपेंडिचर के बीच असमानता इस बात को हाईलाइट करती है कि तत्काल सामाजिक जरूरतों की बजाय सरकार लॉन्ग टर्म परियोजनाओं को ज्यादा प्राथमिकता दे रही है.
जबकि बुनियादी ढांचे (इंफ्रा) का विकास महत्वपूर्ण है, वहीं सामाजिक कल्याण से मुंह फेरने से भी असमानताएं बढ़ सकती हैं और आर्थिक विकास के फायदे व्यापक जनसंख्या को नहीं मिल पाते. रेवेन्यु एक्सपेंडिचर में कमी का मतलब स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा के लिए कम फंड देना, इससे आर्थिक सुधार को झटका लग सकता है.
महंगाई
इसके अलावा, इस साल के बजट में सबसे जरूरी मुद्दा महंगाई पर ना के बराबर फोकस रखा गया, वित्त मंत्री केवल कोर महंगाई का जिक्र कर आगे बढ़ गईं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव को देखते हुए एक गंभीर चूक है. खाद्य (फूड) कीमतों में लगातार बढ़ोतरी नरेंद्र मोदी सरकार के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती रही है, जिससे उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख राज्यों में मध्यम वर्ग, निम्न आय और गरीब मतदाताओं के बीच समर्थन में कमी आई है.
दरअसल महंगाई दर में कमी जरूर है, लेकिन आप जब आंकड़ों की तह में जाएंगे तो खाद्य महंगाई (Food Inflation) में आपको बढ़ोतरी देखने को मिलेगी.
इस चार्ट में भले ही महंगाई का ग्राफ गिरता हुआ दिखाई दे रहा हो लेकिन खाद्य महंगाई तेजी से बढ़ी है.
मई 2024 के लिए कंज्युमर फूड प्राइस इंडेक्स (CFPI) बढ़कर 8.69 प्रतिशत हो गया, जो मई 2023 में 2.96 प्रतिशत से काफी अधिक है. यह तेज वृद्धि मुख्य रूप से टमाटर, प्याज और आलू जैसी प्रमुख सब्जियों की आसमान छूती कीमतों के कारण हुई है. लू और बाढ़ सहित मौसम की स्थिति ने सप्लाय में बाधा डाली है, घरेलू बजट पर दबाव डाला है और सरकार की राजनीतिक चुनौतियां बढ़ा दी हैं.
बजट में महंगाई को टारगेट करने वाली कोई भी नीति नहीं है. इसने गंभीर मुद्दे के समाधान के लिए सरकार की रणनीति के बारे में महत्वपूर्ण चिंताएं पैदा कर दी हैं. खाद्य महंगाई एक गंभीर चुनौती बनी हुई है और मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित कर रही है, बढ़ती कीमतों से निपटने के लिए एक स्पष्ट योजना की कमी कई लोगों को आश्चर्यचकित करती है कि सरकार इस आर्थिक तनाव को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने का इरादा कैसे रखती है.
कुल मिलाकर, केंद्रीय बजट 2024-25 कुछ प्रमुख आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने और विकास को बढ़ावा देने पर सरकार के निरंतर फोकस को दर्शाता है.
भारत ने दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले अपने फंडामेंटल्स को बेहतर तरीके से मैनेज किया है जबकि दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाएं इस समय मंदी के दौर से गुजर रही है. लेकिन आगे के रास्ते पर कैसे बढ़ा जाएगा ये समझ से परे है. प्रधानमंत्री के रोजगार पैकेज और वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर्स में वृद्धि जैसी महत्वपूर्ण कदमों के बावजूद, इन उपायों को कैसे लागू किया जाएगा और ये उपाय कितने प्रभावी होंगे इसे लेकर भी चिंताएं बनी हुई हैं.
कैपेक्स के लिए 11,11,111 करोड़ रुपये का आवंटन सरकार की इंफ्रा के विकास में प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है, फिर भी यह सवाल बना हुआ है कि क्या इससे जरूरी प्राइवेट निवेश को बढ़ावा मिलेगा. इसके अलावा, महंगाई, विशेष रूप से खाद्य महंगाई को टारगेट करने वाली नीतियों में चूक, इस महत्वपूर्ण मुद्दे को मैनेज करने की सरकार की रणनीति पर संदेह पैदा करती है.
प्रतीकात्मक वेलफेयर
हममें से कुछ लोगों ने 2016 से यह तर्क दिया है कि सरकार के कई प्रयासों के बावजूद निजी निवेश द्वारा ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉर्मेशन मोदी सरकार के कार्यकाल में नहीं बढ़ा है. हमारी चिंता यह है कि सरकार ने बार-बार ऐसी कल्याण रणनीति अपनाई जो विवादित हैं. इससे कमजोर वर्गों के लिए मौजूदा सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के खत्म होने का जोखिम है, जबकि मानव पूंजी (Human Capital) निर्माण में कोई वास्तविक निवेश नहीं किया गया है.
कुल मिलाकर बात ये है कि सरकार लोगों को अच्छा महसूस करवाने के लिए कदम उठाती है लेकिन उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कुछ नहीं कर रही. जैसे 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन देना या निम्न आय वाले परिवारों की महिलाओं को सीधे कैश देना. ये केवल वोट पॉलिटिकिस का हिस्सा है, इससे सरकार लोगों को खुश तो कर देती है लेकिन उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बनाती.
मुफ्त राशन जैसी योजनाएं केवल प्रतीकात्मक वेलफेयर/कल्याण है. चुनावी फायदे के लिए प्रतीकात्मक दृष्टिकोण अपनाने की वजह से हममें से कुछ लेखकों ने मोदी के तहत राज्य की विश्वसनीयता और वैधता पर सवाल उठाया, जो चाहते हैं कि भारत 2047 तक विकसित भारत बन जाए. लेकिन ये होगा कैसे?
(दीपांशु मोहन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर, डीन, IDEAS, ऑफिस ऑफ इंटर-डिसिप्लिनरी स्टडीज और सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक्स स्टडीज (CNES), ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के निदेशक हैं. वे लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में विजिटिंग प्रोफेसर हैं और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के एशियाई और मध्य पूर्वी अध्ययन संकाय के 2024 के फॉल एकेडमिक विजिटर हैं. यह एक ओपिनियन आर्टिकल है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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