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चीन का अरुणाचल,उत्तराखंड में 'अतिक्रमण': भारत को बिग पिक्चर देखने की जरूरत

बाराहोती में अतिक्रमण इसलिए अहम है क्योंकि ये जगह राजधानी दिल्ली से सिर्फ 400 किलोमीटर दूर है

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लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर चीन की "घुसपैठ" की खबरों के बीच भारत और चीन की 13वें दौर की सीनियर सैन्य कमांडर स्तर की बातचीत भी बेनतीजा रही. पहले नंदा देवी चोटी के उत्तर में बाराहोती चरागाह और हाल ही में तवांग के उत्तर में बुम ला के पास एक जगह पर घुसपैठ की खबरें आईं. रिपोर्ट्स के मुताबिक वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर होने वाले ये नियमित “अतिक्रमण” थे. सरकार भारत-चीन सीमा पर होने वाले हमलों के लिए “अतिक्रमण” शब्द का इस्तेमाल करती है. हालांकि, एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सैनिकों ने चीनी घुसपैठियों द्वारा भारतीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने के प्रयास को न सिर्फ विफल किया बल्कि बुम ला इलाके में कुछ चीनी सैनिकों को थोड़ी देर के लिए हिरासत में भी रखा.

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रिपोर्ट्स बताते हैं कि अगस्त के अंत में, लगभग 100 चीनी सैनिक टुनजुन ला दर्रा होते हुए बाराहोती में घुस चुके थे. चीनी सैनिकों की संख्या देखकर भारतीय सैनिकों को आश्चर्य हुआ. ये अनुमान लगाया गया कि इस क्षेत्र में भारत की बेहतर स्थिति और 2020 में गलवान में हुई हिंसक झड़प के बाद बरती गई सावधानियां इसके कारण हैं.

बाराहोती का क्या महत्व है?

चूंकि, 1962 में मध्य क्षेत्र में कोई सैन्य कार्रवाई नहीं हुई थी, इसलिए बाराहोती पूर्वी और पश्चिमी इलाके में “अतिक्रमण” वाले क्षेत्रों की तुलना में अपेक्षाकृत कम जाना जाता है. लेकिन बाराहोती LAC पर भारत और चीन के बीच विवाद की पुरानी जगह रही है.

भारत लंबे समय से यह मानता रहा है कि बाराहोती चारागाह का अधिकतर हिस्सा भारत में है लेकिन चीन ने बार-बार इसका विरोध किया है. अंत में दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि कोई भी वहां स्थायी शिविर नहीं बनाएगा.

दरअसल, हिमाचल और उत्तराखंड में पांच इलाकों सुवा-सुजे, शिपकी ला, निलंग-जाधंग, बाराहोटी-लप्थल और लिपु लेख पर चीन से विवाद है. ये इलाके बहुत प्रसिद्ध तो नहीं हैं, लेकिन दोनों ही देशों की सीमा विस्तार की क्षमता रखते हैं. बाराहोती से राजधानी दिल्ली तो 400 किलोमीटर से भी कम की दूरी पर है इसलिए इन्हें महत्व दिया जाना चाहिए.

फिर भी, पश्चिमी और पूर्वी इलाकों की तुलना में इस क्षेत्र पर उतनी लड़ाई नहीं है. यही वजह है कि यह एकमात्र ऐसी जगह है जहां भारत और चीन ने पारस्परिक रूप से सीमा निर्धारण के प्रयास (जो अब फेल हो चुके हैं) के तहत नवंबर, 2002 में नक्शों का आदान-प्रदान किया था.

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सीमा पर चीन क्यों बढ़ा रहा गतिविधियां?

बढ़ता अतिक्रमण, सीमा पर चीन की बदली हुई रणनीति का हिस्सा प्रतीत होता है. हालिया सालों में, भारत से सटी सीमाओं पर चीनी सेना लगातार अपनी स्थिति को बेहतर करने में जुटी हुई है. उन्होंने सैनिकों के लिए नए आवास, हवाईपट्टी और हेलीपैड बनाए हैं, ताकि चीनी सैनिक भारतीय सीमा के ज्यादा से ज्यादा करीब रह सकें. यहां तक ​​​​कि कई मॉडल गांवों का भी निर्माण किया गया है ताकि स्थानीय लोगों को दुर्गम सीमावर्ती इलाकों में रहने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. दरअसल, दोनों ही देश पलायन की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं क्योंकि ग्रामीण बेहतर रोजगार की तलाश में दूसरी जगहों पर चले जाते हैं. भारत के लिए केंद्रीय क्षेत्र में यह समस्या और भी विकट है.

भारत चाहता है कि चीन पिछले साल कब्जा किए देपसांग, हॉट स्प्रिंग और देमचोक से अपनी सेना वापस ले ले. लेकिन 10 अक्टूबर को हुई भारत-चीन के बीच हुई 13वें दौर की बातचीत में इसका कोई हल नहीं निकल पाया.

भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच सितंबर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में हुई. बातचीत के बाद दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि "मौजूदा हालात को लम्बा खींचना किसी के हित में नहीं है क्योंकि इससे दोनों देशों के रिश्तों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है." विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मौजूदा द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल का पालन करते हुए LAC के साथ ही बाकी मुद्दों के समाधान का भी आह्वान किया था.

चीनी विदेश मंत्रालय ने वांग के हवाले से कहा कि उन्हें उम्मीद है कि "भारत मौजूदा हालात को स्थिर करने और इसे तत्काल विवाद निपटारे से नियमित प्रबंधन और नियंत्रण की तरफ ले जाने में चीन की बराबर मदद करेगा."

इस बयान को एक संकेत के रूप में भी देखा गया कि चीन 2020 में भारतीय सीमा में जिन जगहों पर आगे बढ़ा था, वो वहां से पीछे हटने के लिए तैयार है. शायद चीन को इस बात का एहसास है कि वह भारत की तरह दो मोर्चों को नहीं संभाल सकता. इसलिए भारत को "स्थिर" करके वह संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान जैसी कहीं बड़ी चुनौतियों से निपटना चाहता है.

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क्या चीन और अमेरिका के रिश्ते सुधर रहे?

भारत-चीन सीमा पर हो रहे घटनाक्रम को अमेरिका और चीन के संबंधों के परिप्रेक्ष्य में देखना जरूरी है क्योंकि अमेरिका-चीन के रिश्तों में बदलाव के संकेत मिले हैं. 9 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण संकेत तब मिला जब एक भाषण में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने ताइवान को “शांतिपूर्वक तरीके से वापस मिलाने” की बात कही. शी जिनपिंग ने यह बात तब कही, जब चीन ने अक्टूबर के शुरुआती चार दिनों में ही ताइवान के पास से लगभग 140 लड़ाकू विमान उड़ाए हैं। ताइवान संभावित अमेरिका-चीन सैन्य संघर्ष के केंद्र बिंदु के रूप में उभर रहा था लेकिन चीनी राष्ट्रपति के बयान से माहौल शांत होना चाहिए.

9-10 सितंबर को राष्ट्रपति बिडेन और जिनपिंग के बीच फोन पर बातचीत हुई. व्हाइट हाउस के अनुसार, दोनों पक्षों ने बातचीत के रास्ते को खुला रखने और दोनों देशों के बीच "जिम्मेदारी से प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन" करने के महत्व पर चर्चा की. इसके बाद, 6 अक्टूबर को जिनेवा में अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और विदेश नीति से संबंधित चीन के सबसे बड़े अधिकारी यांग जिचेई की बैठक हुई. इस साल के अंत में शी जिनपिंग और जो बाइडेन के बीच पहली वर्चुअल बैठक होने की भी उम्मीद है. सुलिवन ने दोनों पक्षों के बीच मतभेदों के बावजूद उनके बीच "जिम्मेदार प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करने" की जरूरत को दोहराया.

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भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा?

चीन के मुताबिक, सुलिवन के साथ बातचीत में यांग ने दोनों देशों के बीच "प्रतिस्पर्धी" संबंध होने के अमेरिकी दावे को खारिज करते हुए दोहराया कि अमेरिका को एक व्यावहारिक नीति अपनानी चाहिए "और चीन के घरेलू और विदेश नीतियों के साथ ही रणनीतिक इरादों को सही ढंग से समझना चाहिए." अमेरिका ने एक-चीन की नीति का पालन करने का आश्वासन दिया है.

उम्मीद की जा रही थी कि सुलिवन बाइडेन प्रशासन की "नई चीन नीति" की लंबे समय से प्रतीक्षित समीक्षा पेश करेंगे लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हुआ. कुछ रिपोर्ट्स बताती हैं कि व्हाइट हाउस पर, खासतौर से व्यापारिक समुदाय की तरफ से, चीन के प्रति नरम रुख बनाने का बहुत दबाव है. अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर उसका असर भारत पर भी पड़ेगा.

(लेखक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के प्रतिष्ठित फेलो हैं. यह एक राय है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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