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'चीन-पाकिस्तान से भी मदद मिले तो भारत को नहीं ठुकराना चाहिए'

''जब आपके घर में आग लगी है तो आप पानी कहीं से आए ले लेते हैं''

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(यह पूर्व राजदूत,लेखक और पूर्व राज्यसभा सांसद पवन के. वर्मा के साथ हुई टेलिफोनिक इंटरव्यू का अंश है, जिसमें भारत के कोरोना संकट पर आती विदेशी सहायता के संदर्भ में बातचीत हो रही है. इंटरव्यू लिया है द क्विंट के असिस्टेंट एडिटर, Op-Ed इंदिरा बसु ने)

द क्विंट:चीन और पाकिस्तान -वह दो देश जिनसे भारत का संघर्ष रहा है ,विशेषकर हाल के वर्षों में - ने भी आज अपनी मदद की पेशकश की है. भारत की इस पर क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए?

पवन के. वर्मा: मेरा अपना विचार है कि पाकिस्तान ,जो कि खुद तेजी से फैलती महामारी से जूझ रहा है, इस स्थिति में नहीं है कि हमारी मदद कर सके. ना ही चीन अपनी मदद की पेशकश को लेकर वास्तविक है- लेकिन मैं एक जरूरी बात कहना चाहूंगा:जब आपका घर जल रहा हो तब आप पानी के किसी भी मदद को अस्वीकार नहीं करते हैं. हमें हर एक मदद का मूल्यांकन उसके गुण के आधार पर करना चाहिए .ऐसा नहीं है कि वर्तमान में हमारा चीन के साथ ठोस व्यापारिक संबंध नहीं है. बॉर्डर पर तनाव और चीन का भारत पर हावी होने की कोशिश के बावजूद भी वह हमारा मुख्य आर्थिक साझेदार है. इसलिए अगर चीन तत्काल मदद ,मेडिकल सप्लाई और वैक्सीन के कच्चे माल, की स्थिति में है तो हमें उसका स्वागत करना चाहिए. अभी हमें अपने लक्ष्य को लेकर स्पष्ट होना चाहिए. हमारा लक्ष्य है कि हम देश में मौजूदा संकट को कम करें. लोग ऑक्सीजन और मेडिकल सप्लाई की कमी के कारण बड़ी तादाद में मर रहे हैं .हमें इस संकट को रोकना होगा और अपने लोगों की सहायता करनी होगी. उसके लिए कोई भी मदद उपयोगी है और उसका प्रयोग होना चाहिए.

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' हमारी सरकार दूसरी लहर की क्रूरता के लिए तैयार नहीं थी'

द क्विंट: जर्मनी और UK भी, जिनके साथ हमारे मजबूत संबंध हैं ,मदद के लिए सामने आए हैं .हमने उनकी तरफ पहले पहल क्यों नहीं की? यह माना जा रहा है कि हमने UK के प्राइवेट प्लेयर्स से मदद की पेशकश को भी ठुकरा दिया .

पवन के. वर्मा: मुझे नहीं लगता हमारी सरकार दूसरी लहर के क्रूरता के लिए आंतरिक रूप से तैयार थी. इसलिए दूसरे देशों से सहायता के लिए हमारा प्रयास -जो कि जरूरी था- सुस्त,नजरअंदाज और अनुपस्थित रहा. अगर हमने देश में पहले से निर्धारित लक्ष्यों के हिसाब से आवश्यक संख्या में ऑक्सीजन प्लांट नहीं लगाया तब हम दूसरे देश के पास मदद मांगने क्यों जाते (क्योंकि हम 'फार्मेसी ऑफ वर्ल्ड' कहे जाने में गर्व की अनुभूति करते हैं).यह विफलता के साथ घमंड दोनों है और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है. जो देश पहले से यह अनुमान लगा लेता कि आगे क्या हो सकता है ,वह न सिर्फ आंतरिक रुप तैयारी तेज करता बल्कि सही वक्त पर दूसरे देशों से मदद की भी मांग करता.

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'भारत को पूरी विनम्रता से विदेशी मदद को स्वीकार करना चाहिए'

द क्विंट: राष्ट्रीय आपात स्थिति और विदेशी मदद पर निर्भरता के मद्देनजर भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को आप कैसे बयां करेंगे .

पवन के. वर्मा: मुझे लगता है कि कई देश अपने विवेकशीलता के आधार पर जरूरी कदम उठाएंगे ताकि भारत से यह महामारी उनके अपने बॉर्डर के अंदर ना आए ,जैसे अस्थाई रूप से बॉर्डर सील करना. यह लाजमी भी है .पर मुझे इस बात की खुशी भी है कि भारत की सहायता के लिए इतने देश सामने भी आ रहे हैं .भारत को पूरी विनम्रता के साथ उन्हें स्वीकार करना चाहिए.

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'भारत के डिप्लोमेसी में यह वजन रातों-रात नहीं आया है '

द क्विंट: क्या हम यह कह सकते हैं कि भारत में संकट के समय ये सारें बड़े अंतरराष्ट्रीय मदद भारत के मजबूत विदेश नीति और डिप्लोमेटिक उद्यम का सबूत हैं?

पवन के. वर्मा: मुझे लगता है कि भारत की विदेश नीति किसी एक सरकार तक सीमित नहीं है. हम विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, हम परमाणु शक्ति वाले देश हैं. हम विश्व के सबसे बड़े बाजारों में से एक हैं. हम वो बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं जो विश्व के सबसे अधिक क्रश शक्ति(PPP) वाली अर्थव्यवस्था में से एक हैं. हम 130 करोड लोग हैं. इसलिए भारत के डिप्लोमेसी में यह वजन कोई जादू नहीं है ना ही यह रातों-रात आया है. यह पूरे विश्व द्वारा माना गया और 1947 से शुरू दशकों की मेहनत से आया वजन है. दूसरे देश भारत के महत्व को समझते हैं और किस सरकार की विदेश नीति अच्छी थी इस पर बात नहीं होनी चाहिए क्योंकि वह अपने आप में सतत प्रक्रिया है.

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' भारत को कोविड संकट को प्राथमिकता देनी चाहिए- हर डिप्लोमेटिक प्रयास इसी जरूरत पर आधारित हो'

द क्विंट: चूंकि यह महामारी एक अनिश्चित भविष्य प्रस्तुत करती है, जिसमें हमें विभिन्न क्षेत्रों में बाहरी मदद की जरूरत पड़ सकती है, हमारी विदेश नीति का दृष्टिकोण क्या होना चाहिए?

पवन के.वर्मा-

मुझे लगता है अब कि जब हम यह समझ गए हैं कि हमने हमसे चूक कहां हुई है, इसके अलावा हमारे पास कोई और विकल्प नहीं है कि हम अच्छी स्वास्थ्य संरचना और कम से कम न्यूनतम आवश्यक वैक्सीन को प्राथमिकता दें -हमारी सारी विदेश नीति इसी लक्ष्य को पाने की और होनी चाहिए.

मैं इस तथ्य पर जोड़ देता रहूंगा की विदेश नीति हवा में नहीं बनती, विदेश नीतियां देश के के अंदर की स्थिति ,उनकी मजबूती ,क्षमता और अक्षमता के आधार पर बनती है.

निकट भविष्य में भारत की प्राथमिकता इस महामारी को रोकने और इसी जरूरत के आधार पर दूसरे देशों तक पहुंचने की होनी चाहिए.

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