एक महिला सुरक्षाकर्मियों के सामने गिड़गिड़ा रही है. वो सरहद पार जाना चाहती है. उसका पति जिंदगी और मौत से लड़ रहा है. वो जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचना चाहती है, लेकिन सुरक्षाकर्मियों पर कोई असर नहीं पड़ता. उसे लौटा दिया जाता है.
ये म्यांमार से भागकर हिंदुस्तान में घुसने की कोशिश करते शरणार्थी की दुर्दशा नहीं है. ये मंजर है आंध्र प्रदेश-तेलंगाना बॉर्डर का. जहां आंध्र प्रदेश से कोरोना मरीजों को लेकर आती एंबुलेंस को तेलंगाना पुलिस ने बॉर्डर पर रोक दिया है.
'वन नेशन' और 'राष्ट्रवाद'... कोरोना के प्रचंड वेग में इन नारों को उड़ते और अखंड भारत को खंड-खंड होते आज आप कई राज्यों की सीमाओं और केंद्र की नीतियों में देख सकते हैं.
पंजाब-सिंधु-गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा....
राष्ट्रगान गाते समय वैसे तो हमेशा सीना फुल जाता है, सिर जरा सा और तन जाता है. लेकिन ऊपर लिखी पंक्तियों तक आते-आते शरीर के रोएं खड़े होने लगते हैं. पूरा राष्ट्र एक है, ये एहसास फिर से भर जाता है. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में राष्ट्र को राज्यों में खंडित होता देख सिहरन हो रही है. कहते हैं कोई शख्स किस मिट्टी का बना है, उसकी असल परीक्षा मुसीबत के वक्त होती है. राष्ट्रों के बारे में भी यही सच है. कोरोना जैसी त्रासदी के वक्त हम एक राष्ट्र के तौर पर जैसा बर्ताव कर रहे हैं, वैसा करना चाहिए?
तेलंगाना, आंध्र प्रदेश से अपने यहां कोरोना के मरीजों को आने नहीं देना चाहता. मरीज से कहता है कि अस्पताल में जगह मिल गई है, पहले इसका सबूत दिखाओ. वो सबूत दिखाते हैं तो पुलिस वाले कहते हैं कंट्रोल रूम से ग्रीन सिग्नल चाहिए. कंट्रोल रूम कहता है कि अस्पताल को हमसे मंजूरी लेनी चाहिए थी. इस सियासत और गफलत में मरीजों की जान चली जाती है.
गंगा में बहते शव, सरोकार, संस्कार
कोरोना से मौत के असली आंकड़े जब गंगा जी में कुलबुलाने लगे तो मन को परेशान कर देने वाली खबरें आने लगीं.
बिहार ने कहा कि शव यूपी से आ रहे हैं, यूपी ने दावा किया कि बिहार से बह आए हैं. एक टॉप टाइप की वेबसाइट ने छापा-बिहार पुलिस का यूपी में सर्जिकल स्ट्राइक. बिहार पुलिस रात में यूपी की सीमा में घुसी और दिखाया कि यूपी वाले शव बिहार की तरफ बहा रहे हैं. सर्जिकल स्ट्राइक? वाकई? अपने देश के राज्य ही एक दूसरे पर कर रहे हैं, वो भी लाशों को लेकर. इतनी संवेदनहीनता? करने वालों की, लिखने वालों की.
शवों पर इन दो राज्यों के ‘संस्कार’ देख बंगाल ने भी संतरी बिठा दिए. मालदा और राजमहल में निगरानी बढ़ा दी गई कि कहीं बिहार-झारखंड से शव न आ जाएं.
सदियों से झारखंड और बिहार के ढेर सारे लोग अंतिम संस्कार करने काशी आते हैं. इसका धार्मिक महत्व है. 'धर्म के राजनीति विज्ञान' पर 'पेटेंट' करा चुके धर्म रक्षा के स्वयंभू सरपंच बने लोगों ने इसपर पाबंदी लगा दी.
‘’तेरी लाश-मेरी लाश’’. असल में भारतीयों की लाश. अच्छे दिनों की आस में ये कहां आ गए हम?
लाशों पर सियासत, सांसों पर आफत
सियासत की इससे ज्यादा जहालत और राष्ट्र की इससे ज्यादा जिल्लत क्या हो सकती है कि बिन ऑक्सीजन जब मरीज अस्पतालों में-घरों में अकड़ रहे थे तो राज्य झगड़ रहे थे. दिल्ली कह रहा था- हरियाणा ने हमारी ऑक्सीजन चुराई. हरियाणा ने कहा ऐसा तो दिल्ली ने ही किया. नागपुर के लिए आ रही ऑक्सीजन लापता हुई तो नितिन गडकरी खोजने का काम प्यारे खान को देते हैं. पता चलता है कि ऑक्सीजन गुजरात की ओर उड़ गई थी. शिवराज चौहान, योगी से कहते हैं हमारे राज्य की सांसें आपके यहां अटकी हैं. राजस्थान से भी यही गुजारिश करते हैं.
खबर ये भी आई कि यूपी ने कह दिया - “दूसरे राज्य के लोगों को हमारे यहां वैक्सीन नहीं मिलेगी.” हंगामा मचा तो फैसला वापस लेना पड़ा. अब भी किराया, लीज अनुबंध, बिजली का बिल, बैंक पास बुक या नियोक्ता से जारी प्रमाण पत्र दिखाना जरूरी है. राज्य की दलील थी कि चूंकि हमने वैक्सीन खरीदी है तो हम अपने लोगों को लगाएंगे. अपने लोग? चुनाव में सीमा पार प्रचार करने जाते हैं तब तो दूसरे राज्यों के लोग भी ‘अपने लोग’ लगते हैं. राज्य छोड़िए नोएडा में दूसरे जिलों के लोगों का कोरोना टेस्ट तक नहीं हो रहा था.
राष्ट्रीय आपदा में राष्ट्रीय समन्वय नहीं
जब पूरे देश के लिए केंद्र सरकार वैक्सीन का ग्लोबल टेंडर निकालती तो हमारी चलती. खरीदार एक होता और बेचने वाले अनेक. राज्यों को टोपी ट्रांसफर के फेर में केंद्र ने उन्हें अंतराष्ट्रीय मार्केट में बिलटने के लिए छोड़ दिया है. जहां हमारे एक ग्लोबल टेंडर में एकरूपता होती, बेहतर विशेषज्ञता से तैयार होता, वहीं राज्य तरह-तरह के करतब दिखा रहे हैं. यूपी वैक्सीन कंपनियों से सिक्योरिटी मनी मांग रहा है तो महाराष्ट्र कह रहा है कि कोल्ड स्टोरेज की जरूरत पड़ी तो कंपनी बनाइएगी. कमाल है. प्यासा कुएं से कह रहा है चिल्ड वाटर चाहिए. कुएं को क्या पड़ी है. उसकी मुंडेर तक कतार लगी है.
इन सबका नतीजा क्या है? नतीजा है मरते-खपते मरीज. यहां से वहां एड़ियां रगड़ते परिवार. ये सब क्यों हो रहा है? क्योंकि कोई नेशनल पॉलिसी नहीं है. राज्य अब अपने हाल पर हैं. राष्ट्रीय आपदा में राष्ट्रीय समन्वय नहीं है.
कुछ माननीय ज्ञान दे रहे हैं कि हेल्थ राज्यों की जिम्मेदारी है. 4 घंटे के अल्टीमेटम पर राष्ट्र व्यापी लॉकडाउन लगाते वक्त अधिकारों के इस बंटवारे का ख्याल क्यों नहीं आया? वैक्सीन पर क्या करना है, कैसे करना है, कब करना है, इस फैसले में राज्यों की कितनी भागीदरी थी? अब जब मामला बिगड़ गया है तो सीमांकन हो रहा है!
हमारे क्षद्म राष्ट्रवाद की भव्य इमारत भरभरा कर गिर जाती है, जब खबरें छपती हैं कि विदेशी से आ रही मदद की भी बंदरबांट हो रही है. राष्ट्रवाद और वन नेशन जैसे नारों की नौका पर सवार होकर अपनी सियासत को पार लगाने वाले आज अपने हाथों से इनका गला घोंट रहे हैं, और ताज्जुब है कोई कुछ बोलने वाला नहीं.
शायद घाव इतना ताजा है, दर्द इतना ज्यादा है कि अभी कौन जिम्मेदार, कौन गुनहगार का हिसाब करने की ताकत नहीं. शायद अस्पतालों, श्मशानों और कब्रिस्तानों के बाहर कतारों में खड़ा देश राष्ट्र प्रेम, देशभक्ति का कोरस गाने वालों की कोरोना में ये 'कर्कश आवाज' याद रखेगा, अपने जख्मों को हरा रखेगा.
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