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दिल्ली हिंसा: हताश, तटस्थ, खुश, पीड़ित, हमलावर और नेताओं को सलाह

आपका दिल बुरा नहीं है, लेकिन आपको इस वक्त दिमाग से काम लेना होगा

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अभी मैं 6 तरह के भारतीयों को देख पा रही हूं.

  • खौफजदा और हताश
  • ना इधर, ना उधर और उधेड़बुन में फंसे
  • जो अपनी धुन में हैं
  • जश्न मनाने वाले
  • पीड़ित
  • हमलावर
  • नेता
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जो खौफजदा और हताश हैं उनको धन्यवाद, क्योंकि उनका दिल इतना बड़ा है कि उसमें दूसरों के दुख के लिए जगह है. क्योंकि उनके पास ऐसा दिमाग है जो मिल बांटकर साथ रहने, सम्मान और शांति से जीने की बातें समझता है.

जो नफरत की इस आंधी का मुकाबला कर रहे हैं – एक जुट होकर; लोगों को साथ लाकर; तथ्यों को दर्ज कर; दस्तावेज तैयार कर; गुण, संसाधन, समय और धन से सहयोग कर; जो मीडिया नहीं बताती उसका विरोध कर, प्रतिक्रिया देकर और लोगों को बता कर – ऐसे लोग अपना ख्याल रखें. क्योंकि आप बेशकीमती हैं और हमें आपकी जरूरत है – ये लड़ाई बहुत लंबी होने वाली है.

‘आप जिस बाड़ पर बैठे हैं, आग वहां भी लगने वाली है’

जो लोग बहुत घबराए हुए हैं और भावनात्मक तौर पर प्रभावित हैं – आप भी अपना ख्याल रखें. थोड़ा आराम करें और वापस लौटें. जो हिंसा पीड़ित हैं, जिन्होंने इस त्रासदी को झेला है, उनके दर्द के सामने हमारा दर्द कुछ भी नहीं है. हमें खुद को संभालना होगा और उनकी आवाज बनना होगा. हमें हर तरीके से दिखाना होगा कि जो हो रहा है वो बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, कि ऐसा हम हरगिज नहीं होने देंगे, हमारे सामने नहीं, हमारे नाम पर नहीं. आपकी सहानुभूति आपकी शक्ति है और मुझे आप पर पूरा भरोसा है.

जो ना इधर हैं ना उधर हैं, जो उधेड़बुन में हैं, वो दोनों तरफ की कहानियां सुन रहे हैं, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर ये हो क्या रहा है. आप उनको सुनिए जो इस त्रासदी की जमीनी हकीकत बता रहे हैं, आप उनको समझने की कोशिश करिए जो तथ्य और तर्क से सच को सामने रख रहे है, उन्हें नहीं जो डर और भय की कहानियां बता रहे हैं. आप स्वतंत्र मीडिया को पढ़िए. सच्चाई को खुद जानिए, तथ्यों को समझिए.

मुझे मालूम है कि आपका दिल बुरा नहीं है, लेकिन आपको इस वक्त दिमाग से काम लेना होगा. ये तो अंधी गली है, इतनी सारी जानकारियां हैं, कई तो बेहद परेशान करने वाली हैं, आप सब पढ़िए और सब देखिए.

और इसके बाद आप फैसला अपने दिल पर छोड़ दीजिए. क्योंकि आप जिस बाड़ पर बैठे हैं आग वहां भी लगने वाली है, फिर आप किसी एक को चुनने पर मजबूर हो जाएंगे – इसलिए अभी मौका है कि आप सारी बातों को जान और समझ लीजिए, और आप किस तरफ हैं इसका फैसला कर लीजिए.

‘अपनी सुविधाओं का इस्तेमाल कर बराबरी की दुनिया बनाइए’

जिन पर इन सबका कोई असर नहीं हो रहा, मैं उनकी स्थिति को समझ सकती हूं. ये वो लोग हैं जो रंगीन शीशों से दुनिया देखते हैं, जो चीजें पसंद नहीं आतीं उसके सामने आते ही आंखों पर पट्टी लगा लेते हैं.

जी हां, आप कहेंगे जिंदगी आपके लिए भी आसान नहीं रही, आपने भी कई परेशानियां झेली हैं – लेकिन मुझे बताइए क्या आप अपनी तुलना उस मजदूर से कर सकते हैं जो दिहाड़ी कर अपने परिवार को खिला रहा है जबकि उसकी झोपड़ी के ऊपर रखी तिरपाल फटी होने से घर में बची अकेली चादर बारिश में भीग रही है?

मैं ये नहीं कहती है आप अपनी सुविधाओं को लेकर अपराध बोध महसूस करें; जरूरत है आप सिर्फ अपनी हकीकत को पहचानिए.

और फिर इसका इस्तेमाल कर उनकी आवाज बनिए जो आपकी तरह खुशनसीब नहीं हैं, जो आपकी तरह अमीर, ओहदे, जाति या धर्म वाले परिवार में नहीं पैदा हुए. उनके ये हालात उन्हें विरासत में मिले हैं, ठीक वैसे ही जैसे आपको मिले – जन्म से.

आप दोनों की जो स्थिति है उसके लिए ना तो आपने कुछ किया है और ना ही उन्होंने. इसलिए कम-से-कम हम आंखों पर पड़ी ये पट्टी हटा कर, अपने आराम की जिंदगी से बाहर निकलकर, एक सक्रिय कोशिश तो कर सकते हैं कि हमसे अलग हालात में रहने वाले लोगों को हम बराबर का सम्मान दें, और तहे दिल से इस बात को समझें कि उनका भी इस आकाश, इस धरती, इस शहर पर उतना ही हक है जितना आपका है.

उनकी जिंदगी की भी कीमत उतनी है जितनी आपकी, चाहे आपके कपड़े, आपका घर, आपकी प्रार्थना और आपका भोजन कितना भी अलग क्यों ना हो.

अगर ये सब पढ़ कर आप क्रोधित हो रहे हैं, तो अपने गिरेबान में झांककर देखिए और खुद से पूछिए ये सच क्यों नहीं हो सकता, कौन सी वो बात है जो आपको बुरी लग रही है. अपनी आत्मा में उस जगह को तब तक घूरते रहिए जब तक आपके अंदर इंसानियत ना दिख जाए – और ये पता चल जाए कि जो मैं कह रही हूं वो सच है. और फिर ये नफरत, हत्या, पीट-पीट कर मारना, जिंदा जलाना – सब आपके नाम पर – आपको परेशान कर देगा और आपको अपनी जिम्मेदारी का एहसास होगा कि आप अपनी सुविधाओं का इस्तेमाल एक बराबरी की दुनिया बनाने में कर सकते हैं.

‘मैं नफरत की इस आंधी के खिलाफ खड़े होने की शपथ लेती हूं’

जो अपनी जिंदगी को लेकर डरे हुए हैं और घर से बाहर निकलने में डरते हैं, जो अपने घर से बाहर निकल ही नहीं सकते, जिनके घर, दुकान और पूजा घर जला दिए गए हैं – उनसे मैं वादा करती हूं कि नफरत की इस आग का मैं पूरी ताकत से मुकाबला करूंगी, और मुझे यकीन है मुझ जैसे लाखों लोग वो सब कुछ कर रहे हैं जो वो कर सकते हैं.

जो पीड़ित हैं, उनसे मैं माफी मांगती हूं कि इंसानियत ने आपको दगा दे दिया, कि हम जैसे इंसानों की भीड़ ने आपको बेरहमी से मार दिया, और उसके बाद भी आपके शरीर को कुचलते रहे. आप तो बस अपनी पूजा के बाद बच्चों के लिए खाना लेकर घर लौट रहे थे.

जो अपनी जिंदगी को लेकर डरे हुए हैं और घर से बाहर निकलने में डरते हैं, जो अपने घर से बाहर निकल ही नहीं सकते, जिनके घर, दुकान और पूजा घर जला दिए गए हैं – उनसे मैं वादा करती हूं कि नफरत की इस आग का मैं पूरी ताकत से मुकाबला करूंगी, और मुझे यकीन है मुझ जैसे लाखों लोग वो सब कुछ कर रहे हैं जो वो कर सकते हैं.

वो जो नारेबाजी, आगजनी, चाकूबाजी, मारपीट, एसिड और पेट्रोल बम फेंकने वाली भीड़ का हिस्सा हैं, आपको बस इतना याद दिलाना चाहती हूं – इस वक्त हिंदुस्तानी तो कई तरह के होंगे, लेकिन इंसान सिर्फ एक तरह का होता है और आपने बेरहम हमलों से सिर्फ अपनी आत्मा को चोट पहुंचाई है.

और आखिर में वो ‘नेता’ जो नफरत फैलाते हैं, मैं आपको भूली नहीं हूं – मैंने सबसे घटिया लोगों को सबसे आखिरी में रखा है. एक दिन ऐसा आएगा जब इन सबके बावजूद आप बुरी तरह हारेंगे. क्योंकि मैं एक साधारण से सच में यकीन रखती हूं कि मोहब्बत नफरत से कहीं ज्यादा ताकतवर होती है.

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