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भारत ही नहीं दुनिया भर में जारी किसान आंदोलन, MSP पर चिंता समान लेकिन हर देश के मुद्दे अलग

Farmers Protest Globally: पूरे यूरोप में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं लेकिन भारत में कठोर पुलिस कार्रवाई भारत को उनसे अलग करती है.

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Farmer Protests: किसानों के विरोध प्रदर्शन ने कई देशों को अपनी चपेट में ले रखा है. भारत में इन दिनों किसानों के विरोध प्रदर्शन का दूसरा दौर जारी है, जिसमें पुलिस के साथ टकराव में मौतें हो चुकी हैं और कई को गंभीर चोटें आई हैं.

यूरोप के 12 देशों में लगातार विरोध प्रदर्शन चल रहे हैं, जहां किसानों ने अपने-अपने देशों की राजधानी में ट्रैक्टर रैली निकाली हैं. उन्होंने पुआल की गांठें और खाद जलाई. साथ ही हाई-वे जाम कर दिया. लेकिन भारत में किसानों के विरोध प्रदर्शन के उलट वहां पुलिस कार्रवाई में चोटों या मौतों का कोई मामला सामने नहीं आया है.

भारत में जहां किसानों को लोहे-कंक्रीट के बैरियर लगाकर रोका जा रहा है, उन पर पैलेट गन से गोलियों और आंसू गैस की बौछार की जा रही है. इसके उलट यूरोप भर में किसान ट्रैक्टरों पर अपनी राजधानियों में प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकारी दफ्तरों के पास टायर जला रहे हैं.

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दुनिया भर में किसान सरकारों की नीतियों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं

फ्रांस में पिछले कुछ दिनों से किसानों का विरोध प्रदर्शन चल रहा है. वीकेंड पर पेरिस में 60वें अंतरराष्ट्रीय कृषि मेले में राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के दौरे से पहले फ्रांसीसी किसानों के एक दल ने धावा बोल दिया.

यह फ्रांस का एक बड़ा आयोजन है, जिसमें नौ दिनों के दौरान करीब 6,00,000 मेहमान आते हैं. इसे एक राजनीतिक कार्यक्रम के तौर पर जाना जाता है, जहां राष्ट्रपति और उनके प्रतिद्वंद्वी मीडिया की नजरों के सामने जनता से मिलते हैं.

प्रदर्शनकारियों को रोकने की कोशिश में फ्रांसीसी CRS रायट पुलिस (French CRS riot police) के साथ थोड़ी झड़प हुई. प्रदर्शनकारी कह रहे थे, “यह हमारा घर है” और जब मैक्रां कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे तो जमकर किसानों ने हूटिंग की, हालांकि मैक्रां ने कहा है कि वह किसानों के साथ हैं.

पिछले हफ्ते ग्रीस में किसान रंग-बिरंगे ट्रैक्टरों के साथ राजधानी पहुंचे और उन्हें हॉर्न बजाते हुए देश की संसद के सामने खड़ा कर दिया. भारी उत्पादन लागत से नाराज हजारों किसानों ने एथेंस में विरोध प्रदर्शन किया. एक बैनर पर लिखा था: “हमारे बिना, आपको खाना नहीं मिलेगा.” कुछ किसान अपनी बदहाली के प्रतीक के रूप में नकली ताबूत और अंतिम संस्कार की फूल-मालाएं ले आए थे. उन्हें हाईवे और गांवों में कुछ रास्ते जाम करते हुए कई हफ्ते हो गए हैं.

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स्पेन में, स्थानीय कृषि नीतियों व यूरोपीय संघ के विरोध में और उत्पादन लागत में बढ़ोतरी को कम करने के कदम उठाने की मांग को लेकर जारी विरोध प्रदर्शन में पिछले हफ्ते सैकड़ों किसानों ने मैड्रिड के केंद्रीय हिस्से में ट्रैक्टर रैली निकाली.

देश भर में दो हफ्ते से ज्यादा समय से चल रहे रोज के विरोध प्रदर्शनों के बाद स्पेन की राजधानी में होने वाला यह सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन था. किसानों ने गायों के गले में बांधी जाने वाली घंटियां और ढोल बजाए. कई ट्रैक्टरों पर स्पेन के झंडे लगे थे और कुछ किसानों ने बैनर थाम रखे थे जिन पर लिखा था, “खेती के बिना कोई जिंदगी नहीं है” और “किसान खत्म हो जाएंगे.”

भारत में विरोध प्रदर्शन बाकी जगहों से क्यों अलग है?

इसी तरह के विरोध प्रदर्शन एक दर्जन यूरोपीय देशों में हो रहे हैं, जिनमें से कुछ तालमेल से एक साथ हो रहे हैं, लेकिन भारत में की गई बर्बर पुलिस कार्रवाई इन सबसे अलग है.

इसके चलते ब्रिटेन की संसद में भारतीय मूल के लेबर पार्टी के सांसद और शैडो एक्सपोर्ट मिनिस्टर तनमनजीत सिंह ढेसी ने 21 साल के किसान शुभकरण सिंह की हत्या के संबंध में सवाल उठाया. संसद में स्लो सीट, जहां बड़ी संख्या में सिख रहते हैं, की नुमाइंदगी करने वाले सांसद ने कहा कि "उनके मतदाताओं ने उन्हें अपनी चिंता जाहिर करते हुए लिखा है और बताया है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स ने विरोध प्रदर्शनों के बारे में आंदोलनकारियों की वैध पोस्ट और एकाउंट को उनकी मर्जी के खिलाफ हटाने के लिए मजबूर करने की बात स्वीकार की है." उन्होंने कहा, “अभिव्यक्ति की आजादी, आंदोलनकारियों की सुरक्षा और उनके मानवाधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए.”

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इसके जवाब में, सदन की नेता पेनी मोर्डौंट ने शुभकरण की मौत को 'बहुत गंभीर मामला' बताया और कहा कि ब्रिटिश सरकार विरोध करने के अधिकार का समर्थन करती है. उन्होंने सदन को बताया, “मैं यह सुनिश्चित करूंगी कि विदेश कार्यालय उनकी [ढेसी की] चिंताओं को सुने और संबंधित मंत्री को उनके कार्यालय के संपर्क में रहने के लिए कहा गया है.’’

सोमवार को ब्रसेल्स की घेराबंदी की गई और करीब 900 ट्रैक्टर यूरोपियन कमीशन के हेडक्वार्टर पहुंच गए जहां यूरोपीय यूनियन के देशों के कृषि मंत्री कृषि क्षेत्र के संकट पर बातचीत के लिए मिल रहे थे. सुपरमार्केट की सस्ते कीमतों और फ्री ट्रेड डील्स के खिलाफ कदम उठाने की मांग को लेकर किसानों ने टायरों के ढेर में आग लगाई, पुलिस पर खाद फेंकी, शहर के कुछ हिस्सों में जाम लगा दिया और पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ दिया और उन्हें पार कर आगे बढ़ गए.

दंगा पुलिस ने बोतलें और अंडे फेंकने वाले प्रदर्शनकारियों पर वाटर कैनन से पानी की बौछार की और आग बुझाई, जिसके बाद पूरा शहर गंध से भर उठा.

खाने की कम कीमतें किसानों की परेशानी बढ़ा रही हैं

हर देश में आंदोलनकारी किसानों के अपने मुद्दे हैं.

UK में किसान सुपर मार्केट की सस्ती कीमतों और ब्रेक्सिट के बाद ट्रेड डील से सस्ते फूड आयात से नाखुश हैं. ब्रिटिश चैनल के उस पार दूसरों के साथ-साथ फ्रांसीसी विरोध प्रदर्शनों से प्रेरित होकर, खासतौर से वेल्स और दक्षिणी इंग्लैंड में किसानों के प्रदर्शन शुरू हो गए हैं.

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उन्होंने गो-स्लो प्रदर्शन शुरू किया जिससे डोवर बंदरगाह के आसपास यातायात जाम हो गया लेकिन वे फ्रांस जैसे ट्रैक्टरों के साथ और ज्यादा विरोध प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं.

केंट के एक किसान एंड्रयू गिब्सन विरोध प्रदर्शन में केंद्रीय नेता रहे हैं और उन्होंने और ज्यादा समर्थन का आह्वान करते हुए आगे भी विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है.

द क्विंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, “इसके लिए राष्ट्रीय प्रयास की जरूरत है क्योंकि यह सिर्फ हमारा मसला नहीं है; यह पूरे उद्योग का मसला है जो बहुत बुरी हालत में है. हम सुपरमार्केट, सरकार, पोस्ट-ब्रेक्जिट डील्स, सस्ते माल के आयात से बुरी तरह परेशान हैं. हम पर चौतरफा मार पड़ रही है.”

आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश लोगों से अपील की है: “हम जो चाहते हैं वह यह है कि आप इस पर विचार करें कि यह सस्ता क्यों है. दुनिया के दूसरे छोर से आने वाला फूड सस्ते कैसे हो सकते है? कौन से केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा है जो ब्रिटेन में बैन हैं?”

जब उनसे भारतीय किसानों के विरोध प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो, गिब्सन ने कहा कि वह इसके बारे में सोशल मीडिया पर पढ़ रहे हैं और मौत और पुलिस कार्रवाई से “स्तब्ध” हैं. नेशनल फॉर्मर्स यूनियन (NFU) के एक प्रवक्ता ने, खासतौर से भारत का जिक्र किए बिना कहा, “हम किसानों की चिंताओं और निराशा में साथ हैं.”

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MSP: एक वैश्विक मुद्दा

यूरोपीय किसानों के मुद्दे सभी देशों में अलग हैं, लेकिन सब में जो बात समान है वह है यूरोपीय यूनियन की कृषि नीति और लालफीताशाही.

किसान ऊंची लागत और सस्ती कीमत, सस्ते आयात और जलवायु परिवर्तन व यूरोपीय संघ की ग्रीन डील इनिशिएटिव से पैदा होने वाली समस्याओं की शिकायत कर रहे हैं. वे यूरोपीय यूनियन से लालफीताशाही को खत्म करने और कॉमन एग्रीकल्चर पॉलिसी (CAP) में बदलाव की मांग कर रहे हैं.

पूरे यूरोप में कई हफ्तों के विरोध प्रदर्शनों के जवाब में, यूरोपीय यूनियन ने अपनी प्रमुख ग्रीन डील पर्यावरण नीतियों के कुछ हिस्सों में ढील दे दी है, और अपने 2040 के क्लाईमेट रोडमैप से कृषि उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को खत्म कर दिया है.

ब्रसेल्स के विरोध प्रदर्शन में किसान संगठन ला विया कैम्पेसिना की जनरल कोऑर्डिनेटर मॉर्गन ओडी ने यूरोपीय यूनियन से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने और मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर निकलने की मांग की है, जिसकी वजह से सस्ती विदेशी उपज आती है.

उनका कहना है कि ज्यादातर किसानों के लिए, “यहां सवाल आमदनी का है. तथ्य यह है कि हम गरीब हैं, और हम सम्मानजनक जीवन जीना चाहते हैं.”

साफ है कि MSP एक वैश्विक मुद्दा है और सभी देशों के किसान पीड़ित हैं और अब समय आ गया है कि उनकी बात ध्यान से सुनी जाए.

(नबनिता सरकार लंदन में वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @sircarnabanita है. यह एक ओपिनियन पीस है और यह लेखक के अपने विचार हैं. द क्विंट इनके लिए जिम्मेदार नहीं है.)

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