बीजेपी 2019 लोकसभा चुनाव के आखिरी दौर की तैयारी शुरू करने जा रही है. ऐसे में यह सवाल करना मुनासिब होगा कि मोदी की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है? उन्हें किस चीज के लिए याद रखा जाएगा?
अगर वह अर्थशास्त्री होते तो हमने इस सवाल के लिए अर्थव्यवस्था को संदर्भ बनाया होता. अगर मोदी समाजशास्त्री होते तो हम भारतीय समाज के पैमाने पर उन्हें परखते. अगर वह नौकरशाह होते तो प्रशासनिक सुधारों को संदर्भ बनाया जाता. इन तीनों को लेकर वह सफलता के कुछ दावे भी कर सकते हैं, लेकिन उनकी सरकार ने मोदी की उपलब्धियों की अंतहीन फेहरिस्त पेश की है, जिस पर मैं फिर से जाना नहीं चाहता. मोदी ना तो अर्थशास्त्री हैं, ना समाजशास्त्री और ना ही नौकरशाह, वह तो नेता हैं.
मुझे लगता है कि इसी पैमाने पर उनकी उपलब्धियों के बारे में बात होनी चाहिए. नेता के रूप में उनके दो दायित्व थे. पहला, अपनी पार्टी को जीत दिलाना. दूसरा, मुख्य विपक्षी पार्टी की हार पक्की करना.
उन्होंने अक्टूबर 2013 से मई 2014 के बीच ये दोनों जिम्मेदारियां शानदार ढंग से निभाईं. सबसे बड़ी उपलब्धि इसलिए क्योंकि वह देश के प्रधानमंत्री बने और इसके साथ ही उनकी राजनीतिक जिम्मेदारियां भी बदल गईं. पहले जहां उनका ध्यान अधिक सीटें जीतने पर था, अब उन पर कम से कम सीटें गंवाने का दायित्व आ गया है.
इस बदलाव से उनके कही जाने वाली बातों का राजनीतिक प्रभाव भी बदल गया क्योंकि उनके निशाने पर रहने वाली कांग्रेस में भी बदलाव हुआ. उसका नेतृत्व राहुल गांधी के हाथों में चला गया, जिन्हें दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव तक राजनीतिक पहेली बताकर खारिज किया जाता रहा था.
यह बात और है कि उससे पहले कांग्रेस कई राज्यों में बीजेपी को कड़ी टक्कर दे चुकी थी.
गुजरात चुनाव के बाद से राहुल को लेकर लोगों की सोच में जबरदस्त बदलाव आया है. उन्हें भले ही क्लाउन प्रिंस कहा गया, लेकिन सच तो यह है कि राहुल की चुनौती को मोदी अब हंसी में नहीं उड़ा सकते.
मुझे लगता है कि राजनेता के रूप में यह मोदी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है. उनकी खुद की लोकप्रियता में कमी आई है और आज लोगों को राहुल की बातें ठीक लग रही हैं. 2008 और 2014 के बीच मोदी के साथ इसका बिल्कुल उलटा हुआ था. इसमें एक सफल पब्लिक रिलेशन कैंपेन से भी काफी मदद मिली थी. इस कैंपेन से उनकी छवि ऐसे मसीहा की बनी, जो देश के साथ जो भी गलत है, उसे ठीक कर देगा.
जिस तरह से उस समय मोदी को इमेज बदलने का फायदा मिला, वही आज राहुल के साथ हो रहा है. सिर्फ इमेज से बात नहीं बनेगी क्रिकेट में बल्लेबाज तभी ज्यादा रन बनाते हैं, जब गेंदबाजी कमजोर होती है. उसी तरह राजनीति में विपक्ष की ताकत तभी बढ़ती है, जब सत्ताधारी पार्टी गलतियां करती है.
मोदी ने कई लूज बॉल और वाइड फेंके हैं, जिसका राहुल का पीआर कैंपेन पूरा फायदा उठा रहा है. लेकिन सच यह भी है कि बुनियादी तौर पर राहुल पहले वाले शख्स ही हैं. उन्हें पता नहीं है कि देश के सामने बड़े सवाल क्या हैं. जिस तरह से हमें यह पता नहीं था कि मोदी इन मसलों के बारे में क्या सोचते हैं, उसी तरह हम यह भी नहीं जानते कि राहुल की इन पर राय क्या है. इसके लिए कांग्रेस प्रेसिडेंट ही दोषी हैं क्योंकि उन्होंने इन पर कभी बात नहीं की.
राहुल ने खुद को यकीन दिला दिया है कि दिव्या स्पंदना और प्रियंका चतुर्वेदी जो मजाकिया ट्वीट करती हैं, उसी से 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बीजेपी और बाकी के विपक्ष को चुनौती देने लायक सीटें मिल जाएंगी. 2013 और 2014 में मोदी ने हमें सिर्फ छोटे मसलों से निपटने की अपनी योजना बताई थी. इसके बावजूद उन्हें जीत मिली क्योंकि यूपीए के खिलाफ देश में लहर थी. इस बार वह लहर नहीं दिख रही है. इसलिए भले ही लोगों ने राहुल को गंभीर नेता (उनके आंख मारने और झप्पी देने के बावजूद) मानना शुरू कर दिया है, लेकिन इसका फायदा उठाने की आक्रामकता नहीं दिखा रहे हैं.
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