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क्या लोकतांत्रिक भारत में पाकिस्तान जैसी हरकतों की कोई जगह है?  

पाकिस्तान तो इस्लामिक देश है, मगर भारत लोकतंत्र है. एक सेक्यूलर लोकतंत्र

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पाकिस्तान की हिंदू माइनॉरिटी और हिंदुस्तान की मुस्लिम माइनॉरिटी के साथ घटी दो वारदातों ने दोनों देशों में हड़कंप मचा दिया. इधर भारत में राजधानी दिल्ली से सटे गुरूग्राम में एक मुस्लिम परिवार पर कुछ लोग लाठियों से धावा बोलकर घर के दो सदस्यों को बुरी तरह पीट-पीटकर जख्मी कर देते हैं. उधर पाकिस्तान के सिंध इलाके में दो नाबालिग हिंदू बहनों को अगवा करके उनका जबरन निकाह करवाया जाता है और उनको इस्लाम धर्म कबूल कराया जाता है.

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अगवा की गई नाबालिग हिंदू लड़कियों के पिता की तस्वीर और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इस खबर के बाद भारत में राजनीतिक भूचाल आ गया. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास को लिखा कि इसकी जांच पड़ताल कराई जाए. सुषमा स्वराज और पाकिस्तान के सूचना प्रसारण मंत्री फवाद चौधरी में ट्विटर पर ठन गई.

पाकिस्तान ने पहले इसे अपना आंतरिक मामला बताया. यही नहीं बल्कि भारत को नसीहत भी दी कि ये इमरान खान का नया पाकिस्तान है, मोदी का भारत नहीं. पलटकर सुषमा स्वराज ने कहा कि मैंने तो सिर्फ अपने दूतावास से जांच के बाद रिपोर्ट मांगी थी. लेकिन लगता है आपके मन में चोर है. तभी आप ऐसे बेचैन हो गये.

लेटस्ट ये है कि जिस मौलवी ने जबरन निकाह करवाया उसको और साथ ही छह और लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया है.

पाकिस्तान में हिंदुओं के उत्पीड़न का ये पहला मामला नहीं

लेकिन ये पाकिस्तान में हिंदुओं के साथ भेदभाव या उत्पीड़न का पहला मामला नहीं था. हिंदू पाकिस्तान की आबादी का 2 फीसदी हैं. यानी करीब चालीस लाख हिंदू. कुछ आंकड़े हिंदुओं की जनसंख्या 4 फीसदी तक बताते हैं. लेकिन पिछले सालों में पाकिस्तान में हिंदुओं की लगातार ये शिकायत है कि पाकिस्तान में अक्लियतों के लिए हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. महिलाएं यौन शोषण का शिकार हो रहीं हैं. धर्मांतरण बेधड़क है. डर का माहौल है, और ऐसा कई बरसों से चल रहा.

एनडीटीवी की एक रिपोर्ट में 2012 की मानवाधिकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया है कि पाकिस्तान के सिंध प्रांत में हर महीने 20-25 हिंदू लड़कियों का अपहरण हो रहा. साल दर साल सैकड़ों हिंदू पलायन करके भारत आ रहे. एनडीटीवी की इसी रिपोर्ट में Human Rights Law Network के हवाले से बताया गया है कि 1965 से 2014 तक करीब सवा लाख हिंदू पाकिस्तान से पलायन कर चुके हैं. मंदिरों की जगह होटल बन रहे. आजादी के समय 425 मंदिर थे, अब 26 ही बचे हैं.

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भारत में अल्पसंख्यकों का हाल

इधर गुरुग्राम में होली के दिन 10-15 लोगों ने बादशाहपुर के एक मुस्लिम परिवार के लोगों को बुरी तरह पीटा. बताया गया कि झगड़ा क्रिकेट को लेकर शुरू हुआ. किसी को बॉल लगी और उसके बाद वो अपने साथियों के साथ लाठी लेकर उस मुस्लिम परिवार के घर पहुंच गया और घर के सदस्यों को पीट-पीटकर घायल कर दिया. घर की डरी, सहमी महिलाएं चिल्लातीं रहीं, रहम की गुहार लगाती रहीं मगर वो लोग नहीं माने. लेटस्ट खबर है कि मुख्य आरोपी पकड़ा गया है. और बाकियों को पुलिस नें चिन्हित कर लिया है.

भारत की आबादी का कुल 14 फीसदी मुस्लिम हैं. पिछले कुछ सालों में मुससमानों के खिलाफ हिंसा के मामले बढ़े हैं. गो-रक्षा के नाम पर लिंचिंग हुई जिसका कभी अखलाक, कभी पहलू खान तो कभी जुनैद शिकार हुए.

फैक्ट चेकिंग वेबसाइट इंडिया स्पेंड के मुताबिक, 2010 से अब तक गोरक्षकों के 97 फीसदी अटैक पिछले पांच साल के मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए. मई 2014 से दिसंबर 2017 के बीच 76 अटैक हुए. जबकि 2010 से 2014 के बीच सिर्फ दो अटैक हुए थे. गोहत्या को लेकर कई दशकों से अलग राज्यों में कानून हैं. मगर ऐसा क्यों हुआ कि पिछले पांच सालों में ही मॉब लिंचिंग को एक हथियार बनाकर अक्लियतों में डर बैठाने की कोशिश हो रही.

गुरुग्राम की हिंसा के बाद विपक्षी पार्टियों नें इसकी जमकर भर्त्सना की. राहुल गांधी ने कहा कि राजनीतिक सत्ता के लिये RSS और BJP उन्माद और नफरत का रास्ता लेते हैं.  लेकिन गुरूग्राम हिंसा के बाद सरकार की तरफ से चुप्पी ही रही है. सवाल ये है कि चौकीदारों का समूह किन लोगों की चौकीदारी कर रहा है.

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क्यों नहीं मिलती है कानून तोड़ने वालों को सजा?

क्यों सरकार कानून तोड़ने वालों के साथ दिखती है? क्यों प्रधानमंत्री और सरकार में दूसरे मंत्री ऐसे बयानों, करतूतों की भर्त्सना नहीं करते या फिर एक लंबे अर्से के लिये चुप्पी साध लेते हैं?

पिछले पांच सालों में नया चलन शुरू हुआ है. आप मोदी सरकार की नीतियों, उनके बयानों से इत्तेफाक नहीं रखते तो आप के लिये भारत में जगह नहीं. आप पाकिस्तान जाइए. आप अर्बन नक्सल हैं. आप भ्रष्टाचारियों के गैंग के हैं. टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं. देशद्रोही हैं. आमिर खान हों या शाहरुख खान या फिर नसीरुद्दीन शाह. इन सब को कितनी मर्तबा पाकिस्तान जाने की धमकी दी जा चुकी है. मोदी सरकार में मंत्री गिरीराज सिंह ने तो यहां तक कह दिया था कि जिन्होने मोदी को वोट नहीं दिया वो पाकिस्तान जाएं. मोदी सरकार में एक नए मंत्री हैं अनंत हेगड़े, जो आए दिन ‘हेट स्पीच’ देते हैं.

यूपी के मुख्यमंत्री तो भगवा पहन कर हिंदुत्व का प्रचार प्रसार करते हैं. योगी जी शाहरूख खान और आतंकी हाफिज सईद को एक ही खांचे में रखते हैं.

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एनडीटीवी ने पिछले साल एक सर्वे किया जिसमें ये पता लगा कि समाज में जहरदिए और उन्माद फैलाने वाले बयान बड़े-बड़े नेताओं और मंत्रियों ने दिए हैं और ऐसे बयानों में 500 फीसदी का इजाफा हुआ है.

World Press Freedom Index की ताजा रैंकिंग में भारत फ्री स्पीच में दो पायदान और गिर गया है. यानी अब आपके सोचने, बोलने पर भी पहरे बैठा दिए गये हैं.
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भारत-पाकिस्तान में अंतर

पाकिस्तान तो इस्लामिक देश है. मगर भारत लोकतंत्र है. एक सेक्यूलर लोकतंत्र. पाकिस्तान में चुनी हुई सरकारों से ज्यादा मिलिट्री रूल रहा. इस्कंदर मिर्जा हों या अयूब खान. जिया उल हक हों या परवेज मुशर्रफ. लोकतंत्र कभी अपनी जड़ें जमा नहीं पाया. माइनॉरिटी राइट्स का हनन शुरु हुआ, खासकर जिया उल हक के दौर में. फिर पाकिस्तान आतंकवाद का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर बन गया. पाकिस्तान में हिंदू अक्लियतों का जो हाल है उसपर हम चर्चा कर ही चुके हैं.

पाकिस्तान में ऐसी आतंकी तंजीमों को स्टेट प्रोटेक्शन है. वो तो लोकतंत्र से ज्यादा मार्शल लॉ में विश्वास करता है. हमारा संविधान सभी कौमों को बराबर नजर से देखता है. सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है. अपने हिसाब से अपने धर्म मानने और उसका शांतिपूर्वक प्रचार प्रसार करने का अधिकार है.

कहीं ऐसा तो नहीं कि राष्ट्रवाद की आड़ में हिंदुत्वादी राष्ट्रवाद थोपने की कोशिश हो रही. जहां मेजॉरिटेरियनिज्म की आड़ में अक्लियतों के अधिकारों का हनन होगा. जिसका पाइलट प्रोजेक्ट फिलहाल चल रहा है. संविधान में ‘वी द पीपल’ यानी हम भारत के लोग अब बांटे जा चुके हैं. एक हिंदुत्ववादी और बाकी सब देशद्रोही.

क्या हम पाकिस्तान के रास्ते पर चलने की गलती कर सकते हैं? क्या देश में धर्म के आधार पर भेदभाव संविधान के मूल्यों का हनन नहीं? क्या हम इंक्लूसिव, सेक्यूलर देश से कोई दूसरी छवि अपने लिए बनाना चाहते हैं, जैसी पाकिस्तान की है?

हमें पाकिस्तान से बेहतर होना चाहिए ना, उसके जैसा तो कतई नहीं.

(ये आर्टिकल सीनियर जर्नलिस्ट प्रभात शुंगलू ने लिखा है. आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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