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चीनी कंपनी कैसे कर रही भारत में जासूसी, और जवाब देने के 3 तरीके

झेनहुआ एक आटसोर्स प्राइवेट कंपनी है जो चीनी खुफिया विभाग के लिए एक प्रॉक्सी के तौर पर काम कर रही है.

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देश के महत्वपूर्ण फैसला लेने वालों और राजनीतिक आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक (खेल सहित) क्षेत्र की बड़ी हस्तियों सहित करीब 10,000 से ज्यादा लोगों के डिजिटल स्पेस में एक चीनी कंपनी के हैकिंग का जो खुलासा द इंडियन एक्सप्रेस ने 14 सितंबर की अपनी लीड स्टोरी में किया है, वो वास्तव में हमारी खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक चेतावनी है.

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भारत-चीन सीमा पर जारी तनाव और छिटपुट घटनाओं के बीच ये खुलासा चिंताजनक होना चाहिए क्योंकि इसका उद्देश्य साफ तौर पर भारत के पक्ष में नहीं हो सकता और ये दिखाता है कि चीन योजनाबद्ध तरीके से ‘कई मोर्चों पर एक साथ युद्ध’ की तैयारी कर रहा है.

ये हमारी अस्पष्ट और अल्परक्षित सीमारेखा को नहीं, बल्कि उस पवित्र निजी क्षेत्र को भी उजागर कर देता है जिसे हमारी अपनी एजेंसियां पूरा दम लगाकर किसी निगरानी से बचाती रहती हैं।

झेनहुआ जैसी कंपनी ऑपरेट कैसे करती हैं?

इंडियन एक्सप्रेस की स्टोरी को पढ़ने के बाद ये बिंदु सामने आते हैं

  • सबसे पहली बात ये कंपनी जिसका नाम, झेनहुआ डेटा इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी है, एक आउटसोर्स्ड प्राइवेट कंपनी है जो चीनी खुफिया विभाग और सुरक्षा एजेंसियों के लिए प्रॉक्सी के तौर पर काम करती है. इतने संवेदनशील काम को आउटसोर्स करने के दो बड़े फायदे हैं. A) सरकार सीधे-सीधे इससे पल्ला झाड़ सकती है, B) कंपनी के संचालन और स्वामित्व में भारी लचीलापन. हालांकि इसके लिए फंड सरकार ही देती होगी लेकिन किसी दूसरे चैनल के जरिए किसी और नाम पर.

  • दूसरी बात ये कि, ये कंपनी 20 अलग-अलग देशों में मौजूद है, कई अलग-अलग कंपनियों के नाम पर जिन्हें सीधे शब्दों में कहें तो ‘डेटा कलेक्शन सेंटर’ के नाम से जाना जाता है. चूंकि किसी कंपनी के रजिस्ट्रेशन के लिए आम तौर पर ये बताना जरूरी नहीं होता कि वो किसी तरह के डेटा कलेक्ट कर रही है और उसका उद्देश्य (और इसे हमेशा छुपाया जा सकता है) क्या है, इसलिए ‘डेटा सेंटर’ तैयार करना कोई मुश्किल काम नहीं होता. थिंक टैंक्स और एनजीओ इस तरह के काम के लिए सबसे अच्छी फ्रंट कंपनी होती है हालांकि सभी थिंक टैंक और एनजीओ को इसी नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए और उनकी गतिविधियों को अवैध नहीं घोषित करना चाहिए.

  • तीसरी बात ये है कि मेजबान देश में ऐसे सेंटर तैयार करने का बहुत फायदा होता है क्योंकि इससे किसी देश के साइबर स्पेस के एंट्री प्वाइंट पर आमतौर पर होने वाली जांच से बच सकते हैं. एक बार कंपनी देश में काम करना शुरू कर देती है तो वो स्थानीय सर्विस प्रोवाइडर का इस्तेमाल करती है जो इसके काम की पहचान को और मुश्किल बना देती है.

  • चौथी बात ये कि ऐसी कंपनियां स्थानीय लोगों को नौकरियां देकर और कम विकसित इको सिस्टम में युवाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देकर खुद को वैध बना लेती हैं. चूंकि उनका काम कई चरणों में बंटा होता है इसलिए छोटे कर्मचारियों को पता नहीं होता कि वो क्या कर रहे है और क्यों कर रहे हैं. साफ तौर पर हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि कितनी चीनी कंपनियां फिलहाल भारत में काम कर रही हैं और डेटा कलेक्शन के काम में शामिल हैं.

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  • झेनहुआ डेटा इनफॉरमेशन टेक्नोलॉजी कंपनी, एक आउटसोर्स्ड प्राइवेट कंपनी है जो चीनी खुफिया विभाग और सुरक्षा एजेंसियों के लिए प्रॉक्सी के तौर पर काम करती है

  • इतने संवेदनशील काम को आउटसोर्स करने के दो बड़े फायदे हैं. A) सरकार सीधे-सीधे इससे पल्ला झाड़ सकती है, B) कंपनी के संचालन और स्वामित्व मे भारी लचीलापन.

  • झेनहुआ टेक्नोलॉजी जैसी कंपनियां स्थानीय लोगों को नौकरियां देकर और कम विकसित इको सिस्टम में युवाओं को स्किल डेवलपमेंट की ट्रेनिंग देकर खुद को वैध बना लेती हैं.

  • हम सब को इस बात की जानकारी है कि चीन सरकार की एजेंसियों ने पहले हमारे सबसे बड़े सरकारी दफ्तरों जैसे पीएमओ, एनएसए के दफ्तर, रॉ मुख्यालय, खुफिया विभाग के मुख्यालय, सेना के मुख्यालय और दूसरे दफ्तरों को निशाना बनाया है.

  • लेकिन झेनहुआ नाम की ये कथित ‘निजी’ कंपनी जिस स्तर पर ये काम कर रही है वो हैरान करने वाला है और पूरी तरह से एक अलग ही रणनीति को बताता है.

चीनी सर्विलांस (निगरानी) और इसके व्यापक, विनाशकारी प्रभाव

हम सब को इस बात की जानकारी है कि चीन सरकार की एजेंसियों ने पहले हमारे सबसे बड़े सरकारी दफ्तरों जैसे पीएमओ, एनएसए के दफ्तर, रॉ मुख्यालय, खुफिया विभाग के मुख्यालय, सेना के मुख्यालय और दूसरे कार्यालयों को निशाना बनाया है. लेकिन ये कथित निजी कंपनी जिस स्तर पर ये काम कर रही है वो हैरान करने वाला है और पूरी तरह से एक अलग ही रणनीति को बताता है.


इससे पहले ये लोग सीधे-सीधे हमारी नीति बनाने वाली संस्थाओं की हैकिंग करते थे, इस उम्मीद में कि उन्हें ऑपरेशनल और जरूरी खुफिया जानकारियां मिल जाए. आज उन्होंने कई रिटायर्ड एनएसए, न्यूक्लियर साइंटिस्ट, सेना के जनरल, नौकरशाह, बिजनेसमैन, उद्योगपति, एडिटर, पत्रकार, एनजीओ और थिंक टैंक को निशाना बना कर अपना जाल इतनी दूर तक फैला लिया है कि वो हमारे समाज के विशिष्ट वर्ग की पूरी सोच, उनके मेल बॉक्स की बातचीत, वाट्सऐप ग्रुप पर दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ मैसेज सब कुछ जान सकते हैं जो निश्चित तौर पर आसानी से मीडिया में उपलब्ध नहीं होगा.

ये कहीं अधिक खतरनाक है और इसे विनाशकारी प्रभाव के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है, खासकर इसलिए कि अगर वे सुन सकते हैं तो वो आपकी आवाज दबा भी सकते हैं और आपके विचारों को तोड़-मरोड़ भी सकते हैं और दूसरों तक पहुंचा भी सकते हैं.

इसी विशिष्ट वर्ग के लोग देश के मिजाज के संरक्षक होते हैं. किसी नीति के बारे में लोगों की सहमति या विरोध में राय बनाते हैं. दुश्मन के एजेंट्स के लिए इनके विचारों को जानना काफी उपयोगी होगा क्योंकि तब ये लोग आम सहमति को बदल सकते हैं और हमारे समाज का ध्रुवीकरण कर सकते हैं. दुश्मन के देश में असंतोष फैलाना उतना ही पुरानी है जितनी चाणक्य नीति. केवल अब सरकार के पास इसके लिए सबसे प्रभावी जरिया उपलब्ध है.

हम सब जानते हैं कि चीन ने सर्विलांस के साधन तैयार करने में काफी प्रगति की है लेकिन हम काफी लापरवाही से ये सोचते रहे कि ये केवल उनकी जनसंख्या के नियंत्रण के लिए था.

उदार लोकतांत्रिक देशों सहित ज्यादातर देशों ने चीन के अपने नागरिकों और उइगर मुसलमानों के प्रति मानवाधिकार की अवहेलना को गवर्नेंस सिस्टम के एक हिस्से के तौर पर लिया. सर्वसत्तावादी सरकार को उसकी सीमाओं के बाहर किसी के अस्तित्व के लिए खतरा नहीं माना गया लेकिन अब दुनिया बदल गई है. अगर चीन अपने नागरिकों के साथ ऐसा व्यवहार कर सकता है तो वो आपके नागरिकों के साथ भी ऐसा कर सकता है.
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चीन के सर्विलांस का सामना कैसे करें?

हमारे आसपास डिजिटल मीडिया की व्यापकता को देखते हुए कोई भी इसकी ताकत के कारण निराश हो सकता है. लेकिन इससे लड़ने के तीन तरीके हैं

  • पहला ये कि हम एक मजबूत डेटा प्रोटेक्शन पॉलिसी बनाएं, फिलहाल इसका ड्राफ्ट तैयार किया जा रहा है, जो डेटा सेंटर पर नियंत्रण और उनके कामकाज पर निगरानी को सुनिश्चित करे.

  • दूसरा ये कि दुश्मन की पहुंच और सीमा की पहचान कर और उसे असमर्थ कर उसे कम से कम करना, ये कहना आसान है लेकिन करना मुश्किल. इसके लिए बड़ी संख्या में प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी और विशिष्ट वर्ग को ये बात सिखानी होगी कि वो कुछ खास ऐप (100 चीनी ऐप पर पाबंदी से इस क्षेत्र की कंपनियों के काम पर असर होता नहीं दिख रहा है) का इस्तेमाल नहीं करें और सोशल मीडिया पर गंभीर मुद्दों पर चर्चा न करें. आमने-सामने बात करना या किसी इलेक्ट्रॉनिक इंटरफेस का इस्तेमाल किए बिना हाथ से लिखे मैसेज भेजने का पुराना तरीका सबसे अच्छा विकल्प लगता है. ओसामा बिन लादेन जब लगातार अमेरिकी सेना की निगरानी में था तब उसने भी यही तरीका अपनाया था. लेकिन कोविड 19 के कारण ये तरीका काफी मुश्किल होता जा रहा है और दुनिया भर में जूम और गूगल मीटिंग और वाट्सऐप चैट का इस्तेमाल बढ़ता ही जा रहा है.

  • तीसरा विकल्प है उसी तरह का काउंटर अटैक यानी जवाबी हमला करने की क्षमता तैयार करना. इसके लिए फिर से काफी फंडिंग और प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी. हमारे पास कुछ क्षमताएं जरूर हैं लेकिन निश्चित रूप से झेनहुआ डेटा टेक्नोलॉजी कंपनी जितने बड़े स्तर की नहीं. यहां हमें ये बात भी याद रखनी होगी कि लोकतांत्रिक देशों में सर्वसत्तावादी देशों की तुलना में कुछ अलग नुकसान भी होते हैं.

या हम इस बात को ज्यादा अहमियत न देते हुए ये भी कह सकते हैं ‘अगर चीन को हमारी बातों के बारे में पता चल भी जाए तो क्या? हमारी नीतियां वैसे भी न्यूज चैनलों के टीवी एंकर बनाते हैं.’

(लेखक मालदीव में भारत के राजनयिक रहे हैं. इस लेख में उनके निजी विचार हैं और इसमें क्विंट की सहमति जरूरी नहीं है)

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