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भारत का कोरोना वैक्सीन प्लान: बर्बाद संभावनाओं की दर्दनाक दास्तान?

भारत ने विदेशी वैक्सीन निर्माताओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं. लेकिन अब थोड़ी देर हो चुकी है

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भारत सरकार ने कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल के लिए नियमों में बदलाव किया है. कह रही है अब हम फास्ट ट्रैक मंजूरी देंगे. जिस दिन ये बदलाव किया गया, उसी दिन सरकार ने रशिया की वैक्सीन स्पुतनिक वी को भी मंजूरी दी. विडंबना देखिए ये वैक्सीन पहले से 60 देशों में मंजूर और इस्तेमाल की जा रही है.

हमारे यहां स्पुतनिक-वी ने डॉ. रेड्डीज़ के साथ मिलकर देश में दूसरे और तीसरे चरण का ट्रायल रन किया था. लेकिन इस मंजूरी प्रक्रिया को देखनेवाली ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी ट्रायल रन से मिले रोग प्रतिरोधी क्षमता और सेफ्टी डेटा को लेकर हफ्तों आगे पीछे करती रही.

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हकीकत ये है कि अब स्थानीय लोगों पर इसके प्री-अप्रूवल ट्रायल की जरूरत खत्म हो गई है. ऐसी कोई भी वैक्सीन, जो अमेरिका, इंग्लैंड, यूरोपियन संघ और जापान जैसे देशों के कड़े रेगुलेशन के मापदंडों पर पास हुई हो, वो भारत में भी इस्तेमाल के लिए पात्र मानी जा सकती है.

आपको याद होगा कि फाइजर ने फरवरी 2021 में भारत में आपात इस्तेमाल के लिए अर्जी दी थी. लेकिन उन्होंने अपनी अर्जी को केवल इसलिए रद्द कर दिया क्योंकि यहां के दवा रेगुलेटर ने उन्हें ब्रीज़ ट्रायल के लिए कहा था.

ये कंपनियां आज आ सकती हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या वे आएंगी?

इसी तरह जॉनसन एंड जॉनसन की गेम चेंजर वैक्सीन ‘वन एंड डन’ यानी एक बार में ही दी जानेवाली वैक्सीन का क्या हुआ? जिस पर यूएस FDA ने इस्तेमाल किए जाने के बाद रोक लगा दी थी.

'ऑक्सीजन' पर भारत का वैक्सिनेशन कार्यक्रम

  • यहां प्रतिदिन 4 मिलियन वैक्सीन डोज का उत्पादन किया जा रहा है, जबकि प्रतिदिन वैक्सिसेशन 3 मिलियन लोगों का हो रहा है.

  • अगर कोरोना संक्रमण की गति इसी प्रकार चलती रही तो आनेवाले समय में वैक्सीन का स्टॉक कुछ ही दिन में ही खत्म हो जाएगा.

  • भारत में उपलब्ध वैक्सीन में से 90 प्रतिशत वैक्सीन केवल एक ही उत्पादक से मिलता है. सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया हर महीने 65 से 70 मिलियन वैक्सीन का उत्पादन कर रहा है. कंपनी सरकार से नकद सहायता की उम्मीद कर रही है ताकि प्रतिमाह उत्पादन की दर 100 मिलियन डोज तक बढ़ाया जा सके.

  • भारत बायोटेक के कोवैक्सीन की लॉन्चिंग बहुत ही उत्साह के साथ की गई. लेकिन देश को जितनी बड़ी मात्रा में वैक्सीन की जरूरत है उसके मुकाबले यहां से हर माह नाममात्र महज 12.5 मिलियन डोज का ही उत्पादन हो पा रहा है.

  • स्तुपतनिक वी, जिसे हाल ही में अप्रूवल मिला है, का भारत में पांच वैक्सीन उत्पादक कंपनियों से करार है, ताकि भारत में वैक्सीन की उत्पादन क्षमता 850 मिलियन तक पहुंचाई जा सके. उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन गर्मियों तक शुरू हो जाएगा और इसकी शुरुआत 50 मिलियन डोज प्रतिमाह से होगी. लेकिन यहां सवाल ये है कि इस उत्पादन से भारत के हिस्से में कितनी वैक्सीन आएगी? और जवाब है, नहीं पता. कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत की RDIF (रशियन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट फंड) के साथ कीमत को लेकर बातचीत जारी है.

स्वागत के लिए रेट कार्पेट, सितारे नदारद

द इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, फाइजर के प्रतिनिधियों ने भारत के रुख का स्वागत किया है और दुनिया को वैक्सीन उपलब्ध कराने के प्रति प्रतिबद्धता जताई है. फिलहाल ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं कि कोई मोलभाव शुरू हुआ है, या फिर फाइजर के पास भारत की वैक्सीन जरूरतों को पूरा करने लायक स्टॉक पड़ा है.

उसी पेपर के मुताबिक, फाइजर जून जुलाई तक 12 देशों को 700 मिलियन डोज सप्लाई करने का पहले सी करार है. वहां की सरकारों ने पहले से ही इस ऑर्डर के लिए अरबों डॉलर का भुगतान किया है. दाम तब तय हुए थे जब जनवरी 2021 में प्रतियोगिता ज्यादा थी और और ये देश सही कीमत पर करार करने में सक्षम थे.

हमें ये पता है कि यूएस ने मॉडर्ना का बड़ा स्टॉक 2021 के अंत तक के लिए पहले से खरीद रखा है. इस रिपोर्ट से हमें ये भी पता चलता है कि टाटा मेडिकल एंड डायग्नोस्टिक्स मॉडर्ना को भारत लाने की फिराक में है. लेकिन फिलहाल इस ओर कुछ खास होता नहीं दिखाई दे रहा है.

जॉन्सन एंड जॉन्सन वैक्सीन पर रोक का भारत पर क्या होगा असर

जॉन्सन एंड जॉन्सन के ‘सिंगल शॉट’ वैक्सीन को लेकर रही रहीं परेशानियां पहले से सुस्त सप्लाई पर असर डालने वाली है. लेकिन महिलाओं, खास तौर से 18 से 48 की आयुवर्ग, में एक खास और गंभीर खून के थक्के बनने के लक्ष्णों की रिपोर्ट के चलते इसके इस्तेमाल पर एफडीए ने रोक लगा रखी है. तो इसका मतलब क्या ये निकाला जाए कि भारत J&J के लिए रास्ते बंद कर देगा?

और क्या J&J और बायोलॉजिकल ई के करार पर इसका असर पड़ेगा? क्विंट आपको बता चुका है कि बायोलॉजिकल ई का J&J के साथ 600 मिलियन डोज के लिए करार है. लेकिन जैसा कि वैक्सीन एक्टिविस्ट लीना मेघनानी कहती हैं कि वो करार इतना गुप्ता है कि हमें नहीं मालूम कि उत्पादन शुरू हुआ है या नहीं या फिर वैक्सीन भारत के लिए है या नहीं?

अमेरिका में एक उत्पादन इकाई में समस्याओं के कारण जॉन्सन एंड जॉन्सन की अपनी सप्लाई प्रभावित हुई है. दसियों लाख डोज को कचरा पेटी में फेंकना पड़ा है.

कीमत को लेकर मोलभाव, आपूर्ति की कमी, दवा कम्पनियों की चुप्पी और सरकार में अनिर्णय की अजीबो-गरीब स्थिति, इन कारणों से भारत वैक्सीन की कमी झेल रहा है. वो भी ऐसे वक्त में जब इसकी उसे सब ज्यादा जरूरत है.

भारत के लिए फिलहाल सबसे अच्छा रास्ता ये है कि वह सीरम इंस्टिट्यूट से लेकर भारत बायोटेक में उत्पादन के लिए जरूरी नकद की कमी को पूरा करे ताकि वह अपने उत्पादन क्षमता बढ़ा सकें. साथ ही स्पुतनिक की क्षमता बढ़ाने में मदद करने की जरूरत है और और साथ ही कंपनी को इस बात के लिए राजी करना जरूरी है कि उत्पादित वैक्सीन का एक हिस्सा भारत के लिए भी हो. जब तक ये चीजें नहीं होती तब तक फास्ट ट्रैक नीति सिर्फ झांकी है.

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