भले ही हम कितनी भी मॉडर्निटी की बात करते हों, लेकिन आज भी हमारा समाज किसी न किसी रूप में महिलाओं पर दबदबा कायम रखने की चाहत रखता है. इसके कई उदाहरण हर दूसरे दिन देश के किसी भी शहर या गांव में देखने को मिल जाते हैं. लेकिन जब कोई महिला हिम्मत जुटाकर और अपना हौसला बढ़ाकर समाज के पुराने रूढ़िवादी जंजीरों को तोड़ने की कोशिश करती है, तो उसके साथ वही होता है, जो केरल की कनक दुर्गा के साथ हुआ.
दहलीज लांघने की सजा
आज भी देश में कई इलाकों में महिलाओं को घर की दहलीज न लांघने की हिदायत दी जाती है. ऐसा करने पर परिणाम भुगतने की भी धमकियां मिलती हैं. केरल के सबरीमाला मंदिर की बरसों पुरानी रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ने वाली कनक दुर्गा को भी इसी तरह का अंजाम भुगतना पड़ा है. दुर्गा को आखिरकार अब घर से निकालने का फरमान सुनाया गया है. यहां तक कि उसे अपने बच्चों से भी अलग कर दिया गया है. इससे पहले भी दुर्गा को काफी-कुछ झेलना पड़ा था.
भगवान के दर्शन कर लोग अपने अच्छे जीवन की कामना करते हैं, अच्छा फल मांगते हैं. लेकिन कनक दुर्गा को भगवान का दर्शन करने की भारी कीमत चुकानी पड़ी. भगवान के दर से आने के बाद अपनों ने ही दामन छुड़ा लिया और जिंदगी मौत सी हो गई
समाज का विरोध
1 जनवरी की रात खबर आई कि सबरीमाला मंदिर में दो महिलाओं ने प्रवेश कर लिया है. इन दोनों महिलाओं ने बरसों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए यह कदम उठाया था. इसके बाद पूरे केरल में बवाल शुरू हो गया था. दोनों महिलाओं का सामाजिक बहिष्कार करने की मांग उठने लगी. हिंसक प्रदर्शन होने लगे. बीजेपी जैसी कुछ राजनीतिक पार्टियों ने भी इसमें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया. कुछ ही घंटे बाद मंदिर का 'शुद्धिकरण' भी कराया गया.
अपनों ने भी नहीं दिया साथ
सामाजिक बहिष्कार के बाद एक ऐतिहासिक कदम उठाने वाली कनक दुर्गा को अपनों का भी साथ नहीं मिला. ससुराल में उनका विरोध शुरू हुआ और खबरें सामने आईं कि दुर्गा की सास ने उन्हें बुरी तरह पीटा है. इसके बाद उन्हें अपने घर, यानी मायके से भी मायूसी ही मिली. मंदिर में प्रवेश करने वाली कनक दुर्गा और बिंदु आमिनी को हिंदू संगठनों की तरफ से धमकियां भी मिलीं.
पनपते हौसलों को कुचलने का असर
कनक दुर्गा के साथ जो कुछ भी हुआ या फिर ऐसा फैसला लेने वाली किसी भी महिला के साथ जब ऐसा सुलूक होता है, तो इससे कहीं न कहीं उन हौसलों को कुचलने का काम किया जाता है, जिन्होंने अभी पनपना शुरू ही किया था. वो महिलाएं, जो कनक दुर्गा को आदर्श मान चुकी थीं, उनके लिए आगे का सफर काफी डरावना और खतरनाक होगा. इनमें से कई महिलाओं ने इस घटना से डरकर घर की दहलीज से अपने कदम वापस खींच लिए होंगे. बेड़ियों से निकलने के लिए छटपटाते हुए पैर एक बार फिर शांत हो चुके होंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को एंट्री पर कई सालों से लगी रोक को खत्म कर दिया है, लेकिन आज भी लोग महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकने के लिए दिन-रात पहरेदारी में लगे हैं
किसकी जीत, किसकी हार?
समाज की ये बेड़ियां किसी लोहे की जंजीर से भी ज्यादा सख्त होती हैं. इसीलिए ज्यादातर मामलों में जीत इन बेड़ियों की होती है. वजह ये कि इन रूढ़िवादी बेड़ियों को ताकत देने वाले लोग सत्ता में बैठे होते हैं, जो कुछ वोट पाने के लिए जंजीर को सुलझाने की बजाय इसे और कसते चले जाते हैं.
इससे पूरे समाज में खुला संदेश जाता है कि अगर तुमने आवाज ऊंची की, अगर तुमने पुरुषों के बनाए कानूनों को तोड़ने की कोशिश की, तो अंजाम बुरा ही होगा. फिर एक बार जीत जाता है हमारा समाज, और दिल के किसी कोने में रह जाता वह जज्बा, जो उड़ना चाहता है या फिर कुछ बदलने की चाहत रखता है.
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