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अबकी बार मंदिर से बेड़ा पार? BJP के राम-SP के विष्णु,किसका चमत्कार

यूपी के डिप्टी सीएम ने भी छेड़ा था मंदिर का मुद्दा

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अखिलेश यादव के दुनिया का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर बनाने का ऐलान और बीजेपी नेताओं के भव्य राम मंदिर के अलाप से उत्तर प्रदेश के लोग जान गए हैं कि लोकसभा चुनाव अब सिर पर आ गए हैं.

दोनों पार्टियों को लगता है कि मंदिर के राग से लोगों को अपने पक्ष में लपेटा जा सकता है. बीजेपी राम मंदिर का वादा करके तीन बार केंद्र और राज्य में सरकार बना चुकी है. इससे ज्ञान लेकर यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने भगवान विष्णु का विशाल मंदिर बनवाने का वादा करके बीजेपी के लिए कंपिटीशन कड़ा कर दिया है.

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भगवान राम और कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. इसलिए अखिलेश ने सीधे सृष्टि के पालनहार का ही मंदिर बनवाने का वादा कर दिया है. अब उत्तर प्रदेश के लोग तय करेंगे कि राम मंदिर का वादा करने वाली पार्टी को वोट करें या भगवान विष्णु के मंदिर का वादा करने वाले दल को. 

बीजेपी नेताओं का मंदिर राग

बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा से लेकर उत्तरप्रदेश के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने बयान दिया था कि अगर कोई विकल्प नहीं बचेगा तो केंद्र सरकार संसद में कानून लाएगी. हालांकि बाद में मौर्य ने कहा हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. लोकसभा में हमारे पास बहुमत है, लेकिन हमारे पास बिल पास करने के लिए राज्यसभा में बहुमत नहीं है. इसलिए विकल्प चुनने का समय नहीं है.

यूपी के डिप्टी सीएम ने भी छेड़ा था मंदिर का मुद्दा
केशव प्रसाद मौर्या (फोटोः IANS)

अखिलेश ने बनवाई है भगवान कृष्ण की मूर्ति

यूपी विधानसभा चुनाव में जीत के बाद जब योगी सरकार ने अयोध्या में भगवान राम की 108 फुट की मूर्ति बनवाने का ऐलान किया है. लेकिन अखिलेश यादव ने तो भगवान कृष्ण की भव्य मूर्ति का वादा पूरा भी कर दिया है. उन्होंने भारत की सबसे बड़ी मूर्ति तैयार भी करा ली है जिसका सैफई में अनावरण होना बाकी है.

यूपी के डिप्टी सीएम ने भी छेड़ा था मंदिर का मुद्दा
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव
(फोटोः Samajwadi Party)

हर चुनाव से पहले याद आते हैं राम

बीजेपी राम मंदिर के नाम पर 30 सालों से वोट मांग रही है. 2014 में भी बीजेपी ने राम मंदिर के निर्माण का वादा किया था. हालांकि उस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने विकास का नारा देकर भारी बहुमत हासिल किया था. लेकिन अब 2019 के चुनावी समर में उतरने से पहले राम फिर याद आने लगे हैं.

उत्तरप्रदेश में भी बीजेपी की सरकार है, ऐसे में अक्सर लोग बीजेपी को उसका वादा भी याद दिलाते हैं, लेकिन मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो बीजेपी भी ये दलील देकर खामोश हो जाती है, लेकिन अब चुनाव सिर पर हैं, तो फिर राम मंदिर की चर्चा शुरू हो गई है.

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राम मंदिर बीजेपी के चुनावी मैनिफेस्टो का हिस्सा रहा है, लेकिन पार्टी पर आरोप लगता रहा है कि वो इस पर गंभीर नहीं है. बीजेपी पर लोग ये भी आरोप लगाते रहे हैं कि पार्टी ने इस मुद्दे को केवल चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल किया है और इसे जिंदा रखना ही उसके फायदे में है.
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सत्ता की कुर्सी की सीढ़ी

हमारे देश के नेताओं ने राजनीति में प्रतीकों के जरिये अपने काम को बखूबी अंजाम दिया है. राम मंदिर में ताले लगाने की बात हो, या खुलवाने की, आडवाणी की रथ यात्रा हो या फिर इफ्तार पार्टियों के बीच होने वाला मेल मिलाप.

नेताओं ने भारत की इसी सांस्‍कृतिक और धार्मिक बहुलतावादी ढांचे को वोट बैंक के रूप में बखूबी भुनाया है, किसी ने अल्‍पसंख्‍यकों को रिझाया तो किसी ने बहुसंख्‍यकों को साधा.

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कांग्रेस भी सॉफ्ट हिंदुत्व की ओर

पिछले कुछ सालों से लगातार चुनाव में हार के बाद कांग्रेस पर भी भी सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर चलने का आरोप लगा है. चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मंदिर दर्शन खूब फोकस में रहते हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक सब जगह ये खूब देखने को मिला

विकास, बाढ़, बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे एक बार फिर पीछे छूट रहे हैं और मंदिर चुनावी मुद्दा बनने लगा है. जैसे ही चुनाव सामने आता है मंदिर का जिन्न बाहर आ ही जाता है. कई बार सियासी समीकरणों को पलट चुका मंदिर मुद्दा एक बार फिर चुनावी चौखट को खटखटाने लगा है.

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