प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) मंगलसूत्र को जकड़े हुए हैं. क्या वह डरते है कि उनकी जमीन खिसक रही है?
कांग्रेस के घोषणापत्र में गरीबों, वंचितों और बेरोजगारों के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय और समावेश का प्रस्ताव है. लेकिन इसपर प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया शौचालय की दीवारों पर उकेरी हुई अश्लील तस्वीरों की तरह हास्यास्पद हैं.
जाहिर तौर पर ये बयान दो तरह के डर को बढ़ावा देता है: "मुसलमान आपको लूटने और आपकी महिलाओं का अपमान करने आ रहे हैं."
वह आर्थिक और सामाजिक कल्याण की बातों से इतना डरे हुए क्यों हैं कि वह केवल अभद्र भाषा के साथ जवाब दे सकते हैं? क्या उन्होंने इन मोर्चों पर उपलब्धियों के सबूत के लिए सत्ता में पूरे दो कार्यकाल के रिकॉर्ड में अफवाह उड़ाई और अंत में उनके हाथ कोई उपलब्धि आई?
प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर मांस खाने के लिए "मुगल मानसिकता" रखने का आरोप लगाया. तब उन्होंने कहा था कि कांग्रेस के घोषणापत्र पर मुस्लिम लीग की मुहर लगी है. इसके बाद, उन्होंने कहा कि घोषणापत्र में माओवादियों/अर्बन नक्सलियों की मुहर लगी है, जिनके प्रभाव में कांग्रेस ने लोगों की संपत्ति लूटने और इसे मुसलमानों को सौंपने की योजना बनाई है.
अब उन्होंने कहा कि कांग्रेस मंगलसूत्र (कुछ हिंदू परंपराओं में विवाहित नारीत्व का प्रतीक) को भी नहीं छोड़ेगी. उन्होंने जो कहा उसका सार था: वे हिंदू महिलाओं के गले से मंगलसूत्र छीन लेंगे. क्या आप चाहते हैं कि इन्हें "अधिक बच्चे पैदा करने वालों", "घुसपैठियों" को सौंप दिया जाए?
आइए समझते हैं कि वह क्या कह रहे हैं. 20 वीं सदी की सिनेमा की कहानियों में मंगलसूत्र कथित हिंदू पतित महिला को बचाना और उसे बदनामी से सभ्य गृहस्थी की ओर बढ़ाना के लिए एक रास्ता था.
लेकिन 21 वीं सदी में, मंगलसूत्र (एक चुटकी भर सिंदूर की तरह) यह बेहद छिछला मुद्दा बनकर रहा गया है. हालांकि, प्रधानमंत्री कुछ और भी ऐसा करते हैं जो परेशान करने वाला है. वह मुसलमान को मंगलसूत्र के विरोधी के रूप में पेश करते है.
हालांकि, यह स्पष्ट है कि वह वास्तव में वह ऐसा तर्क दे रहे हैं कि कल्याण और पुनर्वितरण की कांग्रेस की नीतियों का मतलब होगा कि महिलाएं अपने सबसे निजी और सार्थक आभूषणों का अधिकार भी खो देंगी.
"कांग्रेस का मंगलसूत्र छीनना" मुसलमानों द्वारा हिंदू नारीत्व को अपवित्र करने और हिंदू पुरुषों के अपमान का एक तरीका है.
इसकी तुलना 2013 में उत्तर प्रदेश में अमित शाह के उस भाषण से की जा सकती है जिसमें उन्होंने कहा था, 'जो हमारी बहन बेटियों के आबरू पर हाथ डालता है' यानी "जो हमारी बहन-बेटियों की इज्जत छीनते (हाथ डालते) हैं".
यह पहली बार नहीं है जब पीएम मोदी ने मुसलमानों का जिक्र करने के लिए 'ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों' के नारे का इस्तेमाल किया है. 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में दंगों के बाद के एक चुनावी भाषण में, उन्होंने चेतावनी दी थी कि "जो लोग तेजी से जनसंख्या बढ़ा रहे हैं, उन्हें सबक सीखने की जरूरत होगी".
उन्होंने दंगा-विस्थापित मुसलमानों के लिए राहत शिविरों को "बच्चे पैदा करने वाले केंद्र" बताया था.
उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा था, "हम पांच, हमारे पच्चीस (हम पांच, हमारे 25)", जिसका मतलब था कि मुसलमानों के बीच बहुविवाह की वजह से उनका प्रजनन दर ज्यादा है.
बीजेपी नेता आदतन यह कहते हैं कि मुसलमान भारतीय नहीं हैं. अमित शाह ने वादा किया था कि मुसलमानों को बाहर रखने वाले सीएए के साथ, बीजेपी "घुसपैठियों" को बंगाल की खाड़ी में फेंक देगी जो देश को "दीमक" की तरह संक्रमित करते हैं.
अर्बन नक्सल' वह वाक्यांश है जिसका इस्तेमाल बीजेपी यह संकेत देने के लिए करती है कि सामाजिक और आर्थिक न्याय और मानवाधिकारों की बात करने वाले बुद्धिजीवी, छात्र और कार्यकर्ता वास्तव में देशद्रोही और आतंकवादी हैं.
पीएम मोदी के ऐसे बयान उनकी बढ़ती असुरक्षा को दर्शाते हैं. लेकिन साल 2024 में बेरोजगारी और महंगाई जैसे मुद्दे भी हैं.
अपने अस्तित्व के लिए रोजाना जूझना और पीएम मोदी के साथियों की बढ़ती संपत्ति के बीच के अंतर को मतदाताओं के लिए भूलना आसान नहीं है. वो भी ऐसे वक्त में जब मीडिया और सोशल मीडिया पर अंबानी परिवार में हुई सगाई समारोह में अकूत दौलत की नुमाइश हो रही हो.
प्रवर्तन निदेशालय-चुनावी बॉन्ड के जरिए जबरन वसूली के क्रोनोलॉजी को एक बच्चा भी समझ सकता है. ईडी एक सुरक्षा रैकेट की तरह काम कर रही है, जहां विपक्षी राजनेताओं में से कई पर ईडी भष्ट्राचार केस का धौंस दिखाया जाता है, जबकि यही नेता जब बीजेपी में शामिल होते हैं तब चमत्कारिक तरीके से ये आरोप खत्म हो जाते हैं.
इस तरह की जबरन वसूली को मानने से इनकार करने पर आपकी पार्टी के बैंक खातों को फ्रिज कर दिया जाएगा और आप खुद को जेल की कोठरी में पाएंगे, भले ही आप भारत की राजधानी में मौजूदा मुख्यमंत्री हों.
प्रधानमंत्री ने नैरेटिव पर अपनी कमान खो दी है. बागडोर वापस लेने के लिए वह 'गोदी मीडिया' को बढ़ाने के लिए असभ्य, निर्विवाद इस्लामोफोबिक घृणा-फैलाने की विचलित और विभाजनकारी स्क्रिप्ट तैयार कर रहे हैं.
(कविता कृष्णन महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट हिंदी न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)
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