अगर आप में कोई ये समझ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट की फटकार और संसद में हंगामे से देश में लिंचिंग की घटनाएं कम हो जाएंगी, तो आप मुगालते में हैं. अगर आपको ये लगता है कि अलवर में रकबर के मारे जाने के बाद केन्द्र सरकार की एडवायजरी और टास्क फोर्स के गठनों से गोरक्षकों की गुंडागर्दी बंद हो जाएगी, तो भी आप मुगालते में हैं.
संसद में लिंचिंग के खिलाफ पीएम मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के निहायत ‘सरकारी और निंदात्मक बयान’ के बाद बीजेपी, संघ, विहिप और बजरंग दल के नेताओं की धमकी इस बात के सबूत हैं कि हाथी के दांत खाने के और हैं, दिखाने के और.
संसद में पीएम मोदी ने कह दिया कि मॉब लिंचिंग की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जा सकती. गृहमंत्री ने एक सप्ताह के भीतर संसद में दो बार भरोसा दे दिया कि लिंचिंग करने वालों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और राज्य सरकारें सख्त कदम उठाएं . फिर ये इंद्रेश कुमार, विनय कटियार, अर्जुन मेघवाल, गुलाब चंद कटारिया, टी राजा सिंह, अश्विनी चौबे से लेकर गिरिराज सिंह तक कौन लोग हैं, जो पीएम के ‘सख्त निर्देशों’ को मुंह चिढ़ाते हुए धमकीनुमा बयान दे रहे हैं.
अगर वाकई प्रधानमंत्री मॉब लिंचिंग पर इतने सख्त हैं, तो क्या इन सबकी हैसियत उनसे इतनी ऊपर है कि संसद में उनके बयान के बाद भी गाय और गोरक्षा के नाम पर उकसावे की तीली लेकर धार्मिक उन्माद के चूल्हे सुलगाने में जुटे हैं? यकीनन नहीं. तो फिर? वही मुहावरा एक बार फिर रिपीट कर रहा हूं कि हाथी के दांत के दांत खाने के और, दिखाने के और.
नेताओं के बिगड़े बोल
अब जरा यूपी बीजेपी के बड़े नेता कहे जाने वाले पूर्व सांसद और बजरंग दल के मुखिया रह चुके विनय कटियार के बयान पर गौर कीजिए. रकबर की हत्या के बाद कटियार ने धमकी भरा एक बयान दिया है. उन्होंने कहा है:
‘मुसलमान समझ लें, देश में गोहत्या नहीं हो सकती. गोहत्या पर लोगों में जागरूकता आई है. इसी वजह से घटनाएं बढ़ी हैं. पशु के लिए मनुष्य की हत्या होना उचित नहीं है, लेकिन गोहत्या पर प्रतिक्रिया नहीं देना भी ठीक नहीं.’
कटियार के कहे का सीधा मतलब निकालें, तो ये साफ-साफ धमकी है. उन्होंने कहा है कि ‘गोहत्या पर लोगों में जागरूकता आई है. इसी वजह से घटनाएं बढ़ी हैं. उन्होंने ये भी कहा कि ‘गोहत्या पर प्रतिक्रिया नहीं देना भी ठीक नहीं. मतलब ये हुआ कि मॉब लिंचिंग गोहत्या पर जागरूकता की निशानी है और ऐसी प्रतिक्रियाएं अवश्यंभावी हैं.
- संघ के नेता इंद्रेश कुमार ने भी कमोबेश ऐसी ही बात कही है कि गोमांस खाने की प्रथा बंद तो जाए, तो ऐसे अपराध रुक जाएंगे. इस बयान में भी धमकी छिपी है कि गोमांस खाते रहे, तो हत्याएं होती रहेंगी.
- अपने उग्र बयानों के लिए कुख्यात हैदराबाद के बीजेपी विधायक टी राजा सिंह ने कहा है कि गाय को राष्ट्रमाता का दर्जा मिलने तक लिंचिंग नहीं रुकेगी.
- केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने मॉब लिंचिंग करनेवाली भीड़ को शांति का पुजारी बता दिया है. उन्होंने कहा कि गोरक्षक शांति के पुजारी होते हैं और वो कभी हिंसा नहीं कर सकते.
- केंद्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा, ‘जैसे-जैसे मोदी जी लोकप्रिय होते जायेंगे ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी.’
ऐसे बयानों की फेहरिस्त बहुत लंबी है .बीस राज्य समेत भारी बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता पर काबिज पार्टी के नेताओं की इन धमकियों के क्या मायने हैं? इन्ही बयानों और धमकियों में देश में गोरक्षा के नाम परहो रही मॉब लिंचिंग की वजह छिपी है.
पहली बात तो ये कि अलवर में बीते साल मारे गए पहलू खान और बीते सप्ताह मारे गए रकबर के गोतस्कर होने की बात कहीं से साबित नहीं हुई है. दोनों गोपालक थे. दूध का कारोबार करते थे और अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए ही गाय खरीदकर गांव ले जा रहे थे.
झारखंड में मारा गया अलीमुद्दीन अंसारी भी गोमांस रखने के शक में ही मारा गया था. दूसरी बात ये कि अगर देश के कुछ इलाकों में कानूनी पाबंदियों के बाद भी गोतस्करीऔर गोहत्या हो रही है, तो इसे रोकने का काम किसका है? सरकारों का या फिर उन्मादी दस्तों का? पुलिस का या फिर लाठी -डंडों से लैस बेलगाम गोरक्षकों की भीड़ का? आजाद भारत के नीति नियंताओं ने जो संविधान बनाया था , उससे देश चलेगा या भीड़ के विधान से? अगर ऐसे हालात पैदा हो रहे हैं, तो जिम्मेदारी किसकी है? ठंडे दिमाग से सोचिएगा. जवाब अपने आप मिल जाएगा.
अगर विनय कटियारों, इंद्रेश कुमारों और मेघवालों को वाकई गोहत्या और गाय की तस्करी की इतनी ही चिंता हो, तो इन्हें और कड़े कानून बनाने के लिए अपनी सरकार पर दबाव बनाना चाहिए . बात करें अपने पीएम और एचएम से. मांग करें कि संसद सख्त से सख्त कानून बनाएं. किसने रोका है? लोकतंत्र में कानून का राज बहाल रखने का तरीका भी तो यही है. संविधान, संसद और सरकारें हैं किसलिए? सच तो ये है कि केन्द्रीय मंत्री सरकार और संसद में बतौर मंत्री-सांसद बैठे बीजेपी नेताओं को जो काम सरकार के जरिए करवाना चाहिए, वो काम वो गोरक्षकों के चोले में घूम रहे उग्र हिन्दुत्व के ध्वजाधारियों से करवाना चाहते हैं. वजह साफ है.
कानून का हंटर ही अगर गोहत्या या गोतस्करी रोकेगा, तो गाय बचाने के नाम पर ‘भाजपाई हिन्दुत्व’ का पताका कैसे लहराएगा? गाय तो एक बहाना है , दरअसल हिन्दू -मुसलमान को लड़ाना है .
तभी तो झारखंड में जमानत पर जेल से छूटे मॉब लिंचिंग के सजायाफ्ता कातिलों को माला पहनाकर मुंह मीठा कराने जयंत सिंन्हा जैसा केन्द्रीय मंत्री पहुंच जाते हैं. नवादा में दंगे के आरोपियों से मिलने जेल तक दूसरा केन्द्रीय मंत्री पहुंच जाता है और उनके परिवार के साथ आंसू बहाते हुए तस्वीरें खिंचवाता है. पाकुड़ में अग्निवेश की पिटाई पर झारखंड का मंत्री उन्हें फ्रॉड घोषित करते हुए इशारों-इशारों में पिटाई को सही साबित करने की कोशिश करता है.
पहलू खान के मारे जाने की घटना को महज कानून-व्यवस्था का मामला बताकर राजस्थान का मंत्री लीपापोती करने लगता है. ऐसी हरकतों से लिंचिंग मानसिकता वाली भीड़ के हौसले बुलंद होते हैं. ऐसे उत्पातियों की भीड़ को पता है कि उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता. पकड़े भी गए तो देश -प्रदेश की सत्ता में उनके ‘विचारधारी पैरोकार’ उन्हें बचाने आ जाएंगे. सारे सबूत और गवाह उन्हें गुनहगार साबित करने से पहले दम तोड़ देंगे.
आखिर पहलू खान केस में ही क्या हुआ?
सूबे की सीबी-सीआईडी ने सभी आरोपियों को क्लीनचिट दे दी. मरने से पहले के आखिरी बयान को भी झूठा साबित कर दिया गया. पुलिस का क्या, वो तो सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों के मिजाज के हिसाब से काम करती है. पुलिस ऐसे मामलों में अक्सर या तो मूकदर्शक होती है या फिर हिन्दुत्व ब्रिगेड के प्रति सॉफ्ट. तभी तो जो भीड़ पहले पहलू को मारती है, वही भीड़ फिर रकबर को मारती है.
अलवर में ही क्या हुआ?
रकबर को गोरक्षकों बुरी तरह पीटा. इतना पीटा कि उसकी पसलियां टूट गईं. वो अधमरा हो गया. जब पुलिस आई तो रकबर होश में तो था, लेकिन उसे तुरंत इलाज की दरकार थी. लेकिन पुलिस के लिए पहले गाय को गोशाला पहुंचाना ज्यादा जरूरी लगा. पुलिस चाहती तो पीटने वालों को रंगे हाथ दबोचकर सलाखों के पीछे भेजती और रकबर को अस्पताल ले जाती.
हुआ क्या ? तीन घंटे तक अधमरे रकबर को घुमाती हुई, चौराहे पर रुककर चाय पीती हुई पुलिस जब अस्पताल ले गई तो वो लाश बन चुका था. अब राजस्थान के गृह मंत्री और स्थानीय विधायक रकबर की मौत का ठीकरा पुलिस पर फोड़कर गुंडे गोरक्षकों को बचाने में जुटे हैं.
जबकि सच ये है कि रकबर की मौत के जिम्मेदार उन्मादी गोरक्षक भी हैं और पुलिस भी. गोरक्षकों को इतना हौसला कहां से मिला कि उसी अलवर में पहलू खान की हत्या के बाद फिर अब रकबर को मार डाला? पुलिस इतनी लापरवाह कैसे हो गई कि मरते हुए इंसान को बचाने की बजाय पहले गाय को गोशाला भेजना जरूरी समझा? इसी के जवाब में छिपा है गाय के नाम पर इंसान को मारने वाली ‘लिंचिंग ब्रिगेड’ का सच.
राजस्थान के अलवर समेत कई जिलों में भगवाधारी गोरक्षकों के दस्ते काफी सक्रिय हैं. ऐसे दस्तों को बीजेपी, बजरंग दल, विश्व हिन्दू परिषद या संघ के स्थानीय नेताओं की सरपरस्ती हासिल होती है. स्थानीय प्रशासन को भी पता होता है कि किसके तार कहां से जुड़े हैं. अलवर में मारे गए रकबर के कातिल गोरक्षकों के तार भी स्थानीय विधायक ज्ञानदेव आहूजा से जुड़े होने की खबरें आ रही हैं.
रकबर की पिटाई के दौरान किसी तरह जान बचाकर भागे उसके दोस्त ने तो यहां तक कहा है कि ‘पीटने वाले कह रहे थे एमएलए साहब हमारे साथ हैं, हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता’.
आहूजा ने रकबर को मारने वाली भीड़ का बचाव करते हुए बयान भी दिया है. अब इसी से समझ लीजिए कि रामगढ़ थाने की पुलिस के मरता हुआ रकबर मायने रखता था या मारते हुए गोरक्षक. उस भीड़ को अगर कानून और पुलिस का डर होता तो रकबर को यूं मारकर पुलिस के हवाले न कर देती.
ऐसी कातिल भीड़ तब तक काबू में नहीं आ सकती, जब तक उसे पुलिस और कानून का डर न हो. और ये डर तब तक नहीं होगा, जब तक इंद्रेश कुमार, गिरिराज सिंह, मेघवाल, कटारिया, आहूजा, साक्षी महाराज, विनय कटियार जैसे नेताओं की फौज उनके पीछे पैरोकार बनकर खड़ी दिखेगी. और ये नेता तब तक पैरोकारी करते रहेंगे, जब तक इन्हें पता है कि पीएम मोदी के बयान हाथी के दांत की तरह हैं. खाने के और, दिखाने के और.
बीते दो-तीन सालों के दौरान देश के अलग-अलग राज्यों में सक्रिय गोरक्षक दस्तों का काला सच कई बार सामने आया है. गोरक्षा के नाम पर देश के तमाम राज्यों में ऐसे सैकड़ों संगठन और दस्ते सक्रिय हैं, जो गाय के नाम पर गोरखधंधा कर रहे हैं.
कई बार ये सामने आया है कि हिन्दुत्वादी गोरक्षकों के चोले में ऐसे लोग गोतस्करों से उगाही करने, डरा-धमकाकर उनके धंधे का एक हिस्सा बतौर कमीशन लेने और भगवा झंडे-पताके से लैस दस्ता बनाकर मुसलमानों में खौफ पैदा करने का कारोबार करते हैं. राजस्थान का अलवर भी ऐसे गोरक्षक गिरोहों का गढ़ है.
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक, कई हिस्ट्रीशीटर और जरायम पेशा वाले गुंडे भी अलवर में गोरक्षकों के गिरोह का हिस्सा हैं. ऐसे गिरोह गाय ले जाने वालों से प्रति गाय 25 से 50 हजार तक की वसूली करते हैं. इस वसूली में स्थानीय पुलिस का भी हिस्सा होता है. सड़कों पर डेरा जमाए ऐसे गुंडों का गोसेवा से कोई लेना-देना नहीं.
ऐसा नहीं है कि इसकी जानकारी राज्य या केन्द्र सरकार को नहीं. सबको पता है कि गोरक्षकों के लिबास में गुंडों ने कैसे उत्पात मचा रखा है. दो साल पहले पीएम मोदी का वो बयान हम सबको याद है, जिसमें उन्होंने पहली और आखिरी बार ऐसे गुंडों के खिलाफ इतना तीखा प्रहार किया था. पीएम ने कहा था:
जो पूरी रात एंटी सोशल एक्टिविटी करते हैं, लेकिन दिन में गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं.
पीएम ने राज्य सरकारों से अनुरोध करते हुए कहा कि ऐसे जो स्वयंसेवी निकले हैं, अपने आपको बड़ा गोरक्षक मानते हैं, उनका जरा डोजियर तैयार करो, तो उनमें से 70 से 80 फीसद ऐसे लोग निकलेंगे, जो ऐसे गोरखधंधे करते हैं जिन्हें समाज नहीं स्वीकार करता है. लेकिन अपनी बुराइयों को छिपाने के लिए ये लोग गोरक्षा का चोला पहनकर निकल जाते हैं.
ऐसे तीखे बयान के बाद देश के कुछ कट्टर हिन्दुत्वादियों ने गोरक्षकों को गुंडा घोषित करने पर उनकी आलोचना भी की थी, लेकिन अंत में हुआ क्या? जिस देश का पीएम मानता हो कि 70 से 80 फीसदी गोरक्षक गुंडे हैं, जिस देश के बीस राज्यों में पीएम की पार्टी की ही सरकार हो, फिर भी अगर गोरक्षक इतने बेगलाम होकर हत्याएं करने से बाज नहीं आ रहे, तो क्या माना जाए?
जब पीएम अस्सी फीसदी गोरक्षकों कोगुंडा घोषित कर चुके हैं, तो इन गुंडों को कानून के हंटर से सबक सिखाने में क्या आड़े आ रहा है? पीएम की इतनी सख्ती के बाद अश्विनी चौबे जैसे मंत्री की इतनी हिमाकत कैसे हो जाती है कि मॉब लिंचिंग करने वाली भीड़ को शांति का पुजारी घोषित कर देते हैं?
आखिर में...
मॉब लिंचिंग की घटनाओं के बाद दुखी मन से निकली एक कविता की कुछ पंक्तियां:
हर शहर में कातिल अब भी अड़ा है
लाठी-बल्लम लिए चौराहे पर खड़ा है
ये लाठी , ये फरसे , ये भाले
इंसानों को बनाते ‘अधर्म’ के निवाले
‘राम’ ने ये सब तो नहीं किया था तुम्हारे हवाले
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