(नोट: 9 नवंबर को इकनॉमिक अफेयर्स सेक्रेटरी सुभाष चंद्र गर्ग ने एक ट्वीट के जरिए सफाई दी, "मीडिया में बिना जानकारी की खबरें चल रही हैं. सरकार का फिस्कल गणित एकदम ठीक है. आरबीआई से 3.6 लाख करोड़ या 1 लाख करोड़ रुपए लेने का कोई प्रस्ताव नहीं है."
कई दिनों की चर्चा के बाद इस बयान का आना यह साबित करता है कि सरकार ऐसे किसी प्रस्ताव पर विचार कर रही थी/है)
ठीक दो साल पहले, इसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में नोटबंदी की थी. एक्सपर्ट हैरान थे. उन्हें कुछ भी नहीं सूझ रहा था. वे कह रहे थे, ‘अरे, यह क्या हुआ.’ तब मैंने साफ-साफ बताया था कि मोदी का यह मिसाइल फुस्स साबित होगा. मैं कोई जाना-माना अर्थशास्त्री या मॉनेटरी थ्योरी देने वाला एक्सपर्ट नहीं हूं. मैं एंटरप्रेन्योर (उद्यमी) हूं. मुझे पता है कि बिजनेसमैन कैसे सोचते हैं. मैंने लोगों को कई संकट का सामना करते, कैश की कमी से जूझते और अपनी संपत्ति गंवाने के डर के साये में जीते देखा है. उन्हें जिंदगी से मोहब्बत होती है. वे संघर्ष करते हैं. तिनके का सहारा लेकर अपना वजूद बचाने में सफल रहते हैं. इसलिए मुझे पता था कि सारा कैश बैंकों में लौट आएगा!
GDP के 2 फीसदी के बराबर रकम की मांग
अब मोदी सरकार एक झटके में जीडीपी के दो पर्सेंट के बराबर पैसा रिजर्व बैंक से मांग रही है. इस दुस्साहस से भी मैं उतना ही आशंकित हूं. 3.6 लाख करोड़ के स्पेशल डिविडेंड के लिए आरबीआई पर दबाव डाले जाने से मेरा सिर घूम रहा है. आरबीआई ने दशकों से जो रिजर्व जमा किया है, यह उसके 40 पर्सेंट के करीब है. आप जरा ठहरकर कल्पना करिए कि यह कितनी बड़ी रकम है.
अगर आपका सिर अभी भी नहीं घूम रहा है, तो जान लीजिए कि यह रकम देश की जीडीपी के दो पर्सेंट के बराबर है. यह घटना अद्भुत है. बेमिसाल है.
इधर एक रोज ट्विटर पर दो जाने-माने लोगों से मेरी नोक-झोंक हो गई. इसमें से एक इंफोसिस के पूर्व चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) हैं, तो दूसरे मोदी सरकार के प्रिंसिपल इकनॉमिक एडवाइजर. आपमें से जिनकी दिलचस्पी 280 कैरेक्टर्स में पूरा किस्सा जानने में हैं, वे ये थ्रेड देख सकते हैं.
मैंने उसके बाद मन ही मन करोड़ों बार दोनों से हुई बातचीत को दोहराया है, ताकि समझ सकूं कि क्या मुझसे कोई भूल हुई है? लेकिन हर बार मुझे एक ही जवाब मिला कि दोनों सम्मानित लोग रिफाइंड इंटेलेक्चुअल बातें कह रहे हैं और उनके तर्क ठीक नहीं हैं. आप इस बात को चाहें जैसे पेश करें, रिजर्व बैंक को स्पेशल डिविडेंड देने के लिए नए नोट छापने पड़ेंगे या संपत्ति बेचनी होगी. इसके अलावा जो भी थ्योरी दी जा रही है, वह बस थ्योरी ही है.
एक बिजनेसमैन (यहां मैं उसी तरीके से सोच रहा हूं, जिसके आधार पर मैंने नोटबंदी के तुरंत बाद उसके फ्लॉप होने की बात कही थी) की नजर से देखें, तो मामला उतना उलझा हुआ नहीं है. किसी को कैश देने के लिए मुझे या तो अपनी संपत्ति बेचनी पड़ेगी या उसे गिरवी रखना होगा.
अगर मेरे पास पर्याप्त संपत्ति न हो (ईश्वर न करे कि ऐसी नौबत आए) तो मुझे पड़ोसी के घर में चोरी करनी पड़ेगी. लेकिन खुदा से खौफ खाने वाले आरबीआई को ऐसा करने की जरूरत नहीं है
आरबीआई के पास नोट छापने का कानूनी अधिकार है. ऐसे में स्पेशल डिविडेंड देने के लिए या तो उसे संपत्ति गिरवी रखनी होगी/उन्हें बेचना होगा या नोट छापने पड़ेंगे.
RBI से कैश लेने के पांच तरीके
प्रधानमंत्री मोदी रिजर्व बैंक की बैलेंस शीट से 3.6 लाख करोड़ का ‘इनाम’ कैसे ले सकते हैं? इसके सिर्फ पांच बुनियादी तरीके हैं. इनमें से तीन संपत्ति बेचने से जुड़े हैं और दो नोट छापने से. इनसे अलग जो भी उपाय होंगे, उनकी बुनियादी इन्हीं पांचों उपाय में होगी. इन ‘ऑप्शंस’ का असर बताने से पहले मैं आपके सामने आरबीआई के रिजर्व की तफसील पेश करना चाहता हूं.
नोटः यहां अनरियलाइज्ड की अहमियत समझना जरूरी है क्योंकि यह नॉन-कैश गेन है, यानी इस फायदे को अभी नकदी में नहीं बदला गया है. मिसाल के लिए, अगर रिजर्व बैंक ने साल 2000 में 10,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव पर सोना खरीदा था तो उसे इस पर 15,000 रुपये प्रति 10 ग्राम का ‘अनरियलाइज्ड’ फायदा हो रहा है. इसी तरह, अगर उसने इस साल अप्रैल में 65 रुपये का एक डॉलर खरीदा था तो उसे 8 रुपये प्रति डॉलर का ‘अनरियलाइज्ड’ फायदा हो रहा है.
जब तक रिजर्व बैंक इस गोल्ड या डॉलर को नहीं बेचता है, तब तक उसे कैश प्रॉफिट नहीं होगा. भारतीय कानून में ऐसे ‘अनरियलाइज्ड’ गेन से कैश डिविडेंड देने की मनाही है.
अब आइए, एक-एक करके पांचों विकल्पों पर विचार करते हैः
एसेट बेचने से जुड़े विकल्प
- गोल्ड को बेच दिया जाए. यह थ्योरी के लिहाज से सही है, लेकिन राजनीतिक और आर्थिक तौर पर खुदकुशी से कम नहीं.
- आरबीआई अपने पास पड़े सरकारी बॉन्ड बेचे. यह संभव है, लेकिन इससे मनी मार्केट में तबाही मच जाएगी, सरकारी बॉन्ड की सप्लाई बहुत बढ़ जाएगी. सिस्टम में कैश कम हो जाएगा और ब्याज दरों में नाटकीय ढंग से बढ़ोतरी होगी. इसलिए यह रास्ता भी संभावित आत्महत्या जैसा होगा.
- विदेशी मुद्रा भंडार की बिक्री. इससे भारत की डॉलर बैंकरप्सी और रुपये के ओवरवैल्यूड होने वाली बातें सामने आ जाएंगी. इसलिए यह संभावित नहीं पक्की खुदकुशी होगी.
नोटों की छपाई का विकल्प
- 3.6 लाख करोड़ के सरकारी बॉन्ड कैंसल करके और इस घाटे को रिजर्व से बट्टे खाते में डालने के बाद केंद्र से 3.6 लाख करोड़ के सरकारी बॉन्ड खरीदने होंगे और इसका भुगतान नए नोट छापकर करना होगा. इसमें सरकार के कर्ज की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा, आरबीआई के रिजर्व में कमी आएगी और सरकार के पास नए छापे हुए नोट आ जाएंगे.
- यह रास्ता ट्विटर पर मेरे साथ हुई नोकझोंक में जाने-माने एक्सपर्ट ने सुझाया. यह ऊपर बताए गए चारों ऑप्शंस का प्रैक्टिकल और चालू वर्जन है. इसमें आरबीआई की बैलेंस शीट में सिर्फ दो एकाउंटिंग एंट्री करनी होगी यानी रिजर्व में 3.6 लाख करोड़ रुपये कम करने होंगे और उसे नए गवर्नमेंट एक्सपेंस एकाउंट में डालना होगा. देखिए, हो गया न चमत्कार. इस तरह से आपकी नई नकदी तैयार हो गई.
इस पांचवें उपाय को थोड़ा घुमाव देते हुए ट्विटर नोक-झोंक में यह सुझाव आया कि अगर सरकार इस एसेट का इस्तेमाल अपनी अतिरिक्त देनदारी खत्म करने के लिए करती है, तो यह कैश न्यूट्रल होगा, क्योंकि आखिर में बैंकों और आरबीआई की बैलेंस शीट में एक दूसरे से जुड़े कई एकाउंटिंग एडजस्टमेंट के साथ सभी एसेट्स/लायबिलिटीज न्यूट्रल हो जाएंगी.
लेकिन अगर मोदी 3.6 लाख करोड़ का इस्तेमाल इंटर-रिलेटेड बैलेंस शीट की एसेट और लायबिलिटी (संपत्ति और देनदारी) को खत्म करने के लिए करते हैं, तब क्या होगा.
अगर सरकार इस कैश से देश के हर नागरिक के लिए 3,000 रुपये की यूनिवर्सल बेसिक इनकम की घोषणा कर दे, फिर? मैंने यह बात सिर्फ मिसाल देने के लिए लिखी है, लेकिन क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं कि इस राजनीतिक तमाशे से सिस्टम में जो कैश आएगा, उसका क्या असर होगा?
इसलिए देवियों और सज्जनों, जो निश्चित है, उसे मान लेते हैं.
आरबीआई सिर्फ एक ही सूरत में मोदी को 3.6 लाख करोड़ का स्पेशल डिविडेंड दे सकता है और वह है नए नोट छापकर. हालांकि, इसका अंजाम खतरनाक हो सकता है. वैसे भारत का कंपनी कानून इसकी इजाजत नहीं देता यानी यह कदम गैरकानूनी होगा.
अगर आप अभी तक नोटबंदी को सबसे बुरी योजना मान रहे थे तो दिल थाम लीजिए. आरबीआई से 3.6 लाख करोड़ का स्पेशल डिविडेंड लेने का आइडिया उससे भी खराब है.
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