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एक प्याली चाय से बिहार में आया सियासी तूफान

नीतीश कुमार के आरजेडी नेता के साथ चाय पीने से राजनीतिक बाजार गर्म

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एक प्याली चाय की अहमियत क्या होती है? इसका अंदाजा बिहार में आजकल सभी लगा रहे हैं. इस एक प्याली चाय से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की बांछें खिल गई हैं. वहीं, बीजेपी के नेताओं के लिए चाय की प्याली परेशानी का सबब बन गई है.

दरअसल, बीते दिनों जनता दल (यू) के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बाढ़ से प्रभावित दरभंगा जिले का जायजा लेने गए. घूमते-घूमते कुमार आरजेडी के बड़े नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के गांव अलीनगर भी जा पहुंचे. सिद्दीकी ने उनका स्वागत एक प्याली चाय से किया. कुमार ने सिद्दीकी के साथ करीब 15 मिनट ही गुजारे.

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हालांकि, ये 15 मिनट सियासी गलियारों में चर्चाओं का बाजार गर्म करने को काफी थे. राजनीतिक विश्लेषक और नेता इस मुलाकात के अलग-अलग मायने निकाल रहे हैं. सभी के दिमाग में यही सवाल है कि क्या नीतीश कुमार फिर से पाला बदलने को तैयार हैं?

इस मुलाकात के बाद आम चुनाव में शून्य के स्कोर पर आउट होने वाली आरजेडी के चेहरे पर मुस्कान है, तो वहीं बीजेपी के माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही है. वैसे तो आरजेडी की कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कुमार और सिद्दीकी की मुलाकात को गैर-राजनीतिक करार दिया, लेकिन इस मामले में चुटकी लेने का मौका भी नहीं छोड़ा. उन्होंने पूछा क्या बीजेपी को चाय से डर लगता है? बीजेपी के नेता बगलें झांकते नजर आए.

नीतीश कुमार-बीजेपी में खींचतान

हालांकि, आम चुनावों के बाद से नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्तों में खींचतान सबके सामने है. चुनाव के बाद बीजेपी ने जेडी (यू) की केंद्रीय कैबिनेट 'अनुपातिक प्रतिनिधित्व' की मांग को ठुकरा दिया था. इसके जबाव में नाराज कुमार ने भी तीन दिनों के भीतर जब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया, तो बीजेपी को जगह नहीं दी.

वहीं, बीते दिनों बिहार पुलिस की खुफिया शाखा के एक पत्र को लेकर भी जेडी-बीजेपी के बीच खटास का सबब बना गया. दरअसल, इस पत्र में जिलों में तैनात पुलिस कप्तानों से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और उससे जुड़ी 19 संस्थाओं के पदाधिकारियों के बारे में पूरा ब्यौरा जुटाने को कहा गया था. इस बाबत जैसे ही पता चला, भगवा नेताओं ने कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

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इसके अलावा, जेडी (यू) तीन तलाक के मुद्दे पर भी केंद्र सरकार से अलग नजर आई. दूसरी तरफ, कुमार चमकी बुखार और बिहार की बाढ़ को लेकर केंद्र सरकार की उदासीनता को लेकर भी खासे नाराज हैं. वे इस बारे में विधानसभा में भी अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं.

साझेदारों के बीच नूराकुश्ती से खुश आरजेडी भी इस आग को बढ़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. इसीलिए तो विधानसभा के मानसून सत्र में भी लालू प्रसाद की आरजेडी नीतीश कुमार पर कुछ ज्यादा मेहरबान दिखाई दे रही है. मुद्दा चाहे चमकी बुखार का हो या फिर भीड़ की हिंसा. आरजेडी नेताओं के निशाने पर बीजेपी ही रही. वहीं, कुमार भी इस मेहरबानी का खूब फायदा उठा रहे हैं.

विधानसभा चुनाव पर नीतीश कुमार की नजर

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक इसे दबाव की राजनीति मान रहे हैं. उनके मुताबिक, आम चुनाव खत्म हो गए हैं और अब सभी दलों की नजर अगले साल के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा के चुनाव पर है. इसीलिए सभी अपनी-अपनी गोटी फिट करना चाहते हैं. बीजेपी के एक मंत्री ने बताया,

‘अब राजनीति विधानसभा चुनाव के मद्देनजर हो रही है. ऐसे में दोनों तरफ से दबाव की राजनीति चल रही है. नीतीश कुमार चाहते हैं कि उन्हें अभी से एनडीए अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दे, जबकि हमें इसकी हड़बड़ी नहीं है. ऐसे में देखना दिलचस्प होता है कि पहले कौन पलक झपकाता है.’
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सियासी विश्लेषकों की मानें तो नीतीश कुमार लगातार आरजेडी के नेताओं से मिल रहे हैं, ताकि बीजेपी पर दबाव बने. आरजेडी के एक नेता ने बताया, 'नीतीश दबाव की राजनीतिक के एक्सपर्ट हैं. याद है साल 2015 में महागठबंधन का मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने के लिए नीतीश कुमार ने कैसी हील-हुज्जत की थी. कांग्रेस के तत्कालीन उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर समाजवादी पार्टी के तत्कालीन मुखिया मुलायम सिंह यादव तक ने अपनी बात रखी थी. बाद में लालू प्रसाद को भी जहर का घूंट पीकर नीतीश के नाम का ऐलान करना पड़ा था. इस बार भी वे यही खेल रच रहे हैं.'

हालांकि, इस बात को जानते-समझते हुए भी आरजेडी इसके लिए तैयार है. दरअसल, आम चुनाव में करारी हार के बाद पार्टी अब सत्ता में वापसी को व्याकुल है. पार्टी सूत्रों की मानें तो लालू परिवार अब नीतीश कुमार की शर्तों को मानने के लिए भी तैयार है.

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दबाव की यह राजनीति एक हद तक काम भी कर रही है. उप-मुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने विधानसभा में यह ऐलान भी कर दिया कि एनडीए अगले साल का चुनाव नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ेगा. हालांकि, कुमार इससे संतुष्ट नहीं हैं. वे इस बारे में बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से ऐलान सुनना चाहते हैं. जेडी (यू) के एक नेता ने बताया, 'बीजेपी में सिर्फ दो व्यक्ति फैसले ले सकते हैं, तो ऐलान भी उनकी ओर से ही होना चाहिए. इससे स्पष्टता रहेगी और अफवाहों पर भी विराम लगेगा.'

हालांकि, इस नूराकुश्ती में हार किसी की भी हो, फायदा कुमार का ही होने वाला है. जेडी (यू) के नेता ने कहा, 'अगर एक प्याली चाय से हमारी दावेदारी पक्की हो जाए, तो हर्ज क्या है?'

(निहारिका पटना की जर्नलिस्‍ट हैं. इस आर्टिकल में छपे विचार उनके अपने हैं. इसमें क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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