याद कीजिए 1960 का दशक. उत्तर भारत के राज्यों में कांग्रेस विरोधी सुर तेज हो रहे थे. उसी दशक में पहली बार कुछ राज्यों में गैर कांग्रेसी पार्टियां सत्ता में आईं. कांग्रेस को चुनौती देने वाली पार्टियां समाजवादी विचारक राम मनोहर लोहिया के विचारधारा से प्रभावित थीं. याद कीजिए लोहिया का 'Pichda Pawa सौ में साठ' वाला स्लोगन.
और अब गौर कीजिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के 11 जून के भाषण का वो हिस्सा, जिसमें वो कहते हैं कि देश की आबादी में 50-60 फीसदी हिस्सा रखने वालों को उनका हक तो मिलना ही चाहिए. उनके लिए बैंक के दरवाजे हमेशा खुले रहने चाहिए. उनकी राजनीतिक आकांक्षाओं का खयाल रखा जाना चाहिए. उनको बांटने की कोशिश का विरोध होना चाहिए. साथ ही राहुल ने भरोसा दिलाया कि कांग्रेस उनकी सारी मांगों पर गौर फरमाएगी.
राहुल 60 फीसदी आबादी वाले किस ग्रुप की बात कर रहे हैं? इस ग्रुप को ओबीसी या अदर बैकवर्ड क्लासेज के नाम से भी जाना जाता है. हिंदी में जिन्हें ‘पिछड़े’ कहा जाता है. अलग-अलग राज्यों में इनकी आबादी अलग-अलग है. लेकिन तकरीबन हर राज्य में इनकी खासी आबादी है.
अगर ये ग्रुप एक वोटिंग ब्लॉक की तरह काम करे, तो हर राज्य में किसी भी पार्टी की किस्मत बना या बिगाड़ सकता है. आजाद भारत की राजनीति में कांग्रेस को सबसे पहला सामूहिक विरोध इसी ग्रुप से मिला था, जिसकी शुरुआत 60 के दशक के आखिरी सालों में हुई थी.
लोहियावादी कांग्रेस विरोधी पार्टियों के केंद्र में रहे नेताओं में जय प्रकाश नारायण, चौधरी चरण सिंह, आचार्य कृपलानी, मोरारजी देसाई, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार बड़े नाम रहे हैं. इनमें से कुछ नामों पर गौर कीजिए- चौधरी चरण सिंह, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव. चौधरी चरण के बेटे अजित सिंह का राष्ट्रीय लोक दल, लालू का राष्ट्रीय जनता दल और मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी 2019 में आम चुनाव कांग्रेस के सहयोगी होंगे.
कुल मिलाकर, समय का चक्र 60 साल की लंबी समयावधि को पूरा करके फिर से गैर-कांग्रेसवाद से पहले के समय में लौट चुका है. इस संदर्भ में देखें, तो 11 जून का कांग्रेस का ओबीसी सम्मेलन काफी महत्वपूर्ण था. इसके दो बड़े मैसेज थे. अपने सहयोगियों के लिए एक बड़ा मैसेज कि जिस ग्रुप के हितों के वो पैरोकार रहे हैं, कांग्रेस उनकी आवाज बुलंद करने में कभी पीछे नहीं रहेगी. और दूसरा मैसेज कि जो ग्रुप पार्टी को 60 साल पहले छोड़कर जाने लगा था, उसको अपने करीब फिर से लाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं.
OBC ग्रुप के लिए राहुल के संदेशों पर भी गौर कीजिए
राहुल सिर्फ आरक्षण की बात नहीं कर रहे हैं. उनकी बातों में छिपी है 'ईज ऑफ डूइंग' बिजनेस से जुड़ी बातें. कोका-कोला या मैकडोनल्ड जैसी कंपनियां इतनी बड़ी कैसे बनी? हुनर और माकूल माहौल मिलने से. जिस ग्रुप को वो रिझाना चाहते हैं यानी ओबीसी, उनका मानना है कि उसमें हुनर की कमी नहीं है. हुनर को 'ईज ऑफ डूइंग' बिजनेस दीजिए, तो अपने देश में भी बड़े-बड़े कॉरपोरेशन बनेंगे. इस लिहाज से जिस सपने को वो बेचने की कोशिश कर रहे हैं, वो उद्यमशीलता को बढ़ाने में मदद कर सकता है.
लेकिन राहुल के सामने में कई बड़ी चुनौतियां हैं- सबसे बड़ी यह कि ओबीसी ग्रुप राजनीति में काफी पहले से मुखर रहे हैं. इनके छोटे-छोटे हिस्सों को अलग-अलग पार्टियों के साथ जाने में अपना हित दिखता है. ऐसे में यह काफी मुश्किल नजर आता है कि इनका बड़ा हिस्सा कांग्रेस के साथ जुड़ेगा. दूसरी बात यह है कि सहयोगियों को यह लग सकता है कि कांग्रेस भी उनके वोटबैंक में सेंध मारने की कोशिश कर रही है.
लेकिन कुछ लोग फिर भी राहुल को एक नई शुरुआत करने के लिए शाबाशी दे सकते हैं. 60 साल बाद ही सही, उन्होंने लोहियावाद को अपनाने की कोशिश तो की है.
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