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भारत के ‘दोस्तों’ ने मिलकर पाकिस्तान को पाबंदियों से बचा लिया

भारत ने एक बार फिर विदेश नीति का सबसे पुराना सबक सीख लिया

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भारत ने एक बार फिर विदेश नीति का सबसे पुराना सबक सीख लिया, ‘ना तो कोई स्थायी दोस्त होता है और ना ही कोई स्थायी दुश्मन, सब कुछ स्वार्थ पर निर्भर करता है.’ और इन्हीं स्वार्थ की वजह से वो मुट्ठी भर मुल्क, जिन्हें भारत अपने करीब लाने की कोशिश कर रहा था, उन्होंने एक बार फिर पाकिस्तान के साथ खड़े होकर उसे FATF (Financial Action Task Force) की कड़ी पाबंदियों से बचा लिया है.

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रिपोर्ट के मुताबिक गुरुवार को बीजिंग में हुई FATF की एशिया पेसिफिक ज्वाइंट ग्रुप की बैठक में पाकिस्तान मोटे तौर पर मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फंडिंग पर रोक लगाने के मामलों में 22 बिंदुओं पर सुधार करने में कामयाब रहा है. पाकिस्तान को मदद करने वाले देशों में, चाहे वो इसे कितना भी अस्थायी क्यों ना बता रहे हों, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और जापान शामिल है. इस्लामाबाद को जाहिर तौर पर मेजबान चीन, मलेशिया और तुर्की से पूरा समर्थन मिला है.

पाकिस्तान को बचाने के लिए अमेरिका ने निभाया अहम किरदार

यह कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान को अलग-थलग करना अपनी विदेशी नीति का लक्ष्य बना चुकी मोदी सरकार इस फैसले से खीज गई है, जहां कई विश्लेषकों ने इस्लामाबाद की मदद कर उसे ब्लैकलिस्ट से बचाने के लिए सीधा चीन-मलेशिया-तुर्की की तिकड़ी को कसूरवार ठहराया है, सच तो यह है कि अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद में अहम किरदार निभाया है. इस्लामाबाद के लिए चीजें तो उसी हफ्ते बदल गई जब बीजिंग में यह बैठक तय हुई, और आप इस बात के लिए निश्चिंत रह सकते हैं कि इसमें कोई संयोग नहीं था.

अमेरिका ने की कश्मीर पर मध्यस्थता की पेशकश

इस हफ्ते की शुरुआत में, दक्षिणी एशिया मामलों को देखने वाली अमेरिकी अधिकारी एलिस वेल्स इस्लामाबाद में थीं जहां, पाकिस्तानी अधिकारियों के मुताबिक, FATF के मसले पर जानकारी देने के लिए हुई बैठक में उन्होंने FATF के 27-प्वाइंट एक्शन प्लान को लागू करने के लिए जमकर पाकिस्तान की तारीफ की. फिर मीटिंग से दो दिन पहले, दावोस में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से मिले.

उन्होंने मीडिया से कहा, ‘हम पाकिस्तान के इतने करीब पहले कभी नहीं थे.’और भारत के जख्म पर मिर्च लगाते हुए, उन्होंने एक बार फिर कश्मीर पर मध्यस्थता का मसला उठा दिया. ‘हम कश्मीर पर बात कर रहे हैं... अगर हम मदद कर सकते हैं, तो जरूर करेंगे,’

उन्होंने कहा, ‘इस बदलाव के एक पहलू का खुलासा इमरान खान ने किया जब उन्होंने कहा, ‘हम दोनों शांति चाहते हैं... अफगानिस्तान में तालिबान और सरकार से बातचीत कर व्यवस्थित तरीके से सत्ता का हस्तांतरण चाहते हैं.’ 

रिपोर्ट के मुताबिक अफगानिस्तान में युद्धविराम की संधि में, जो कि विशेष राजदूत जालमे खलीलजाद की अगुवाई में अमेरिकी टीम दोहा में तैयार कर रही है, इस्लामाबाद अहम रोल अदा कर रहा है. खान ने व्यक्तिगत तौर पर FATF के मसले पर ट्रंप के साथ लॉबी की और FATF की बैठक से पहले ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देश के नेताओं से बात की.

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अमेरिका को समझ में आई पाकिस्तान की अहमियत?

ट्रंप ने जब अपना कार्यभार संभाला था, उन्होंने पाकिस्तान और आतंक को पाकिस्तान के समर्थन पर हमला बोला था. पिछले 15 साल में अमेरिका से पाकिस्तान को मिलने वाली 33 बिलियन डॉलर सहायता राशि की आलोचना की थी. अब जब अमेरिका ने अफगानिस्तान छोड़ने की पहल में दोबारा तालिबान से बातचीत शुरू की है, उसे पाकिस्तान की अहमियत समझ में आ गई है.

बीजिंग में लिए गए फैसले की वजह से हो सकता है पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से भी हटा दिया जाए और फरवरी में पेरिस में होने वाली प्लेनरी मीटिंग में ‘व्हाइट लिस्ट’ में जगह दे दी जाए.

हालांकि, ज्यादा संभावना यह है कि पाकिस्तान जून या सितंबर 2020 तक ग्रे लिस्ट में बना रहे, लेकिन किसी भी सूरत में इसे ब्लैकलिस्ट में नहीं डाला जाएगा, जिसकी उम्मीद भारत ने लगा रखी थी. पाकिस्तान की बदहाल अर्थव्यव्यस्था के लिए यह कदम भयावह साबित हो सकता था.

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ग्रे लिस्ट में बना है पाकिस्तान

गौर करने वाली बात यह है कि जून 2018 में FATF ने एंटी-मनी लॉन्ड्रिंग और टेरर फाइनेंसिंग को रोकने की पाकिस्तानी कार्रवाई में गंभीर कमियां पाई थी, जिसके बाद पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए 27-प्वाइंट का एक्शन प्लान दिया गया था. अक्टूबर 2019 में हुई प्लेनरी बैठक में FATF ने 27 में से सिर्फ 5 बिंदुओं पर हुई कार्रवाई पर संतोष जताया था और पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक ग्रे लिस्ट में डाले रखा.

ब्लैकलिस्ट से बचने के लिए पाकिस्तान को 3 देशों की मदद चाहिए जो कि उसे हमेशा से हासिल रही है, लेकिन ग्रे लिस्ट से बाहर निकलने के लिए इसे प्लेनरी बैठक के दौरान कुल 39 में से 12 और वोट की जरूरत होगी.

गुरुवार को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, ‘पाकिस्तान ने घरेलू आतंक-विरोधी फाइनेंसिंग सिस्टम को मजबूत करने के लिए अच्छे और असरदार प्रयास किए हैं.’ लेकिन यहां जिस देश की अहमियत वो अमेरिका है.

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पाकिस्तान में टेरर फंडिंग के 500 मामले दर्ज

पाकिस्तानी न्यूजपेपर्स के मुताबिक, विदेश मंत्री हमाद अजहर के नेतृत्व में एक बड़े प्रतिनिधिमंडल ने FATF के ज्वाइंट ग्रुप को बताया कि पाकिस्तान में टेरर फंडिंग से संबंधित 500 मामले दर्ज किए गए हैं, जिनमें से 55 मामलों में अपराध साबित हो चुके हैं. ना सिर्फ धोखाधड़ी करने वाले बैंकों को जुर्माना भरना पड़ा, बल्कि देश के सभी एयरपोर्ट पर करेंसी की घोषणा करने वाली प्रक्रिया को भी अनिवार्य कर दिया गया है. इससे पहले, 120 पन्नों का एक जवाब जिसमें कि 500 पन्नों का एनेक्सर भी शामिल है ज्वाइंट ग्रुप को भेज दिया गया है, जिसमें कि 22 प्वाइंट पर हुई प्रगति की पूरी डिटेल मौजूद है.

इस्लामाबाद ने साफ तौर पर दिखने वाले जो कदम उठाए हैं उनमें लश्कर-ए-तैय्यबा के चीफ हाफिज मोहम्मद सईद की गिरफ्तारी और मुकदमा शामिल है. इस महीने की शुरुआत में टेरर फंडिंग से जुड़े दो मामलों में बंद कमरे में हुई सुनवाई के दौरान हाफिज सईद ने खुद को निर्दोष बताया. पाकिस्तान के आतंक-विरोधी विभाग ने हाफिज और उसके साथियों के खिलाफ 23 केस दर्ज कर जुलाई 2019 में उसे गिरफ्तार कर लिया था.

यह FATF की ताकत की मिसाल है. यूएन की ग्लोबल आतंकियों की लिस्ट में शामिल हाफिज सईद के सिर पर 10 मिलियन डॉलर का ईनाम है. लेकिन जो यूएन की लिस्ट और इनाम से हासिल नहीं हुआ वो FATF ने कर दिखाया है. हाफिज सईद जैसे आतंकियों से निपटने में पाकिस्तान हमेशा से घरेलू कानून की आड़ में खेलता रहा है.

उसी तरह, यह साफ हो चुका है कि अतंरराष्ट्रीय समुदाय और भारत के पास हाफिज सईद जैसे आतंकी से निपटने की ताकत नहीं है. लेकिन जब उसे शरण देने वाले देश के ऊपर आर्थिक पाबंदियों का खतरा मंडराया तो असर भी दिखने लगा.

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