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बलूच विद्रोह के बारे में पाकिस्तान का इनकार उसे बहुत महंगा पड़ सकता है

इस्लामाबाद खुशहाल तस्वीर पेश करने की कोशिश कर रहा है वहीं बलूच हाथियार उठा रहे हैं और वे हार मानने वाले नहीं है.

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (Imran Khan) आखिरकार बलूचिस्तान की यात्रा पर गए. उन्होंने नुक्शा का दौरा किया, "आतंकवादी हमलों को सफलतापूर्वक खदेड़ने वाले सैनिकों के साथ" दिन बिताने के लिए इस यात्रा में उनके साथ जनरल कमर बाजवा (Gen. Qamar Javed Bajwa) थे.

इस दौरान इमरान खान ने फ्रंटियर कॉर्प्स और अन्य अर्धसैनिक बलों के लिए वेतन बढ़ाने की घोषणा भी की. ये वही सैनिक हैं जिनके आपराधिक गिरोहों से संबंध की बात कही जाती है. ये हर दिन बलूच लोगों का शोषण करते हैं, उन्हें गायब करते हैं, उनकी हत्या करते हैं. इसके साथ ही ये इस क्षेत्र में चीनी रक्षकों के साथ CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे) के हितों की रक्षा करते हैं.

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दावों में विरोधाभास

2 फरवरी को बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा 'ऑपरेशन गंजल' शुरू करने के कुछ ही दिनों बाद इमरान खान ने बलूचिस्तान के लिए उड़ान भरी थी. ऑपरेशन गंजल को मजीद ब्रिगेड ने अंजाम दिया था, ऑपरेशन के दौरान पंजगुर और नुश्की की सैन्य चौकियों को निशाना बनाया गया था, यह अभियान लगभग 72 घंटे तक चला था.

बीएलए प्रवक्ता के अनुसार, "नोशकी में 90 से अधिक दुश्मन कर्मी मारे गए, जिनमें लगभग 55 फ्रंटियर कॉर्प्स सदस्य, 18 एसएसजी कमांडो और 7 लाइट कमांडो शामिल हैं. जबकि पंजगुर में दुश्मन के कम से कम 105 जवानों को मार गिराया गया. इसमें 85 फ्रंटियर कॉर्प्स के जवान और 20 एसएसजी कमांडो शामिल हैं. इस संघर्ष के दौरान एक सैन्य ड्रोन को मार गिराया गया, इसके साथ ही एक हेलीकॉप्टर को भी निशाना बनाया गया. हालांकि यह पता नहीं चल पाया है कि यह हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुआ था या नहीं. इसके साथ ही दो पाकिस्तानी सैन्य बख्तरबंद वाहन क्षतिग्रस्त हो गए, जबकि दोनों सैन्य बैरक आंशिक रूप से तबाह कर दिए गए."

पाकिस्तानी सेना के अनुसार "आतंकवादियों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाते हुए दोनों हमलों को सफलतापूर्वक विफल कर दिया गया." बयान के अनुसार, आतंकवादियों ने दो अलग-अलग दिशाओं से पंजगुर में सुरक्षा बलों के शिविर में प्रवेश करने का प्रयास किया. "हालांकि, तत्काल सैन्य प्रतिक्रिया के कारण आतंकवादी प्रयास को नाकाम कर दिया गया था. भीषण गोलाबारी के दौरान एक जवान शहीद हो गया. आतंकवादी भाग गए हैं, जबकि हताहतों का पता लगाया जा रहा है.”

मतलब पाकिस्तानी सेना ने सिर्फ मजे के लिए ड्रोन-हेलिकॉप्टर उड़ा दिए. फिर इलाके को भी खाली कर दिया! लगता है इमरान और बाजवा ऑपरेशन में मशगूल सैनिकों के साथ पिकनिक करने गए थे. दरअसल सच्चाई कहीं ना कहीं बीएलए और पाकिस्तानी आर्मी द्वारा किए जाने वाले दावों के बीच में है.

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बलूच गुस्से में और पाकिस्तान भ्रम में

लेकिन हताहतों की संख्या और आंकड़ों से परे एक और अधिक अलोकप्रिय सच्चाई है - बलूच हथियार उठा रहे हैं और वे हार मानने वाले नहीं हैं. इस्लामाबाद लगभग हर दिन बीआरएएस द्वारा किए गए सैन्य अभियानों के बारे में प्रेस को चुप कराने की कोशिश करता है. यह क्षेत्र पत्रकारों और स्वतंत्र पर्यवेक्षकों के लिए बंद है, फिर भी वहां की जमीन हकीकत किसी न किसी तरह सामने आती रहती है.

इस्लामाबाद इसको सामान्य कहानी के तौर पर पेश करता है. जैसे कि वह यह दावा करता है कि बलूच नियंत्रक अफगानिस्तान और भारत में हैं, मतलब यह एक स्वतंत्रता आंदोलन या एक स्वतःस्फूर्त विद्रोह नहीं है, वह कहता है बलूच खुश हैं और चीन में उइगरों की तरह सड़कों पर डांस कर रहे हैं, और यह कि विद्रोह पूरी तरह से आतंकवादी तत्वों का नतीजा है, वहां के आतंकियों को फंड और हथियार भारत से मिल रहे हैं.

जब आतंकवादियों की बात आती है, तो यह ध्यान देने योग्य दिलचस्प बात है कि मोहम्मद हाफिज सईद ने बाजवा और इमरान से पहले बलूचिस्तान की यात्रा की और वहां पाकिस्तान विरोधी (और चीन विरोधी) भावनाओं के उपजने के बारे में विस्फोटक बयान दिया.

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2009 में इमरान ने अपने शब्दों में इन्हीं भावनाओं को व्यक्त किया

इमरान खान ने खुद अतीत में भी इसी तरह की भावना व्यक्त की थी. 2009 में उन्होंने जो कहा था वह ऑन द रिकॉर्ड है, वह यह कि : "सैकड़ों लोग गायब हो गए हैं और गैर-न्यायिक हत्याएं हुई हैं. इसे पाकिस्तान के एक हिस्से के बजाय एक उपनिवेश की तरह माना जाता था." उन्होंने कहा था कि अगर वह एक बलूच होते, तो वह अपने लोगों के "अधिकारों की रक्षा" के लिए "हथियार की ओर रुख कर सकते हैं". उन्होंने कहा था कि "मुझे लगता है कि अगर मैं संसद में प्रवेश नहीं कर पाता तो मैं हथियारों की ओर रुख करता क्योंकि वहां के अधिकांश चुनावों में काफी हेरफेर किया जाता है."

परवेज मुशर्रफ के दबाव में इमरान खान ने ब्रिटेन में हिरबेयर मैरी और फैज बलूच के खिलाफ दायर आतंकवाद के मामले में, उनके पक्ष में गवाही दी थी. हेनरी ब्लैक्सलैंड क्यूसी (मैरी के वकील) के अंतिम भाषण के रिकॉर्ड के मुताबिक, इस्लामाबाद से एक वीडियो कॉल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने "सैन्य कब्जे, बाधाओं, हर जगह सैन्य छावनियों की भावना का वर्णन किया - मुझे लगता है कि वे क्वेटा के बारे में बात कर रहे थे जिसे उन्होंने सबसे बड़े ऑक्यूपेशन के तौर पर देखा है- की स्थायी भावना वही है.”

हैरानी की बात है कि हिरबेयर और फैज मामले में अपनी गवाही के दौरान इमरान ने वर्तमान बीएलए कमांडर बशीर ज़ेब के समान स्थिति बनाए रखी, जिन्होंने कहा :

"हम सशस्त्र संघर्ष को एक प्रकार की राजनीतिक रणनीति के रूप में देखते हैं. हमारा आंदोलन अच्छी तरह से स्थापित राजनीतिक अवधारणाओं पर आधारित है, और यह अपनी वर्तमान स्थिति में केवल इसलिए है क्योंकि संघर्ष के शांतिपूर्ण साधनों को प्रतिबंधित कर दिया गया है और सशस्त्र संघर्ष को एकमात्र विकल्प के रूप में छोड़ दिया गया है."
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पाकिस्तान के लिए एक चेतावनी

बीएलए के सबसे हालिया बयान के अनुसार, "बलूच स्वतंत्रता आंदोलन एक घरेलू आंदोलन है और इस आंदोलन की शक्ति का स्रोत बलूच की आबादी है." ऑपरेशन में भाग लेने वाले सभी बलूच फिदायीन शिक्षित बलूच युवा थे जो बलूचिस्तान में पैदा हुए थे और जनरल असलम बलूच के सिद्धांत के अनुसार राष्ट्र की रक्षा करते हुए मारे गए. अब यह स्पष्ट होना चाहिए कि पड़ोसी देशों में किसी भी बदलाव या छद्म आंदोलन के रूप में लेबल करके इस स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर नहीं किया जा सकता है.

लेकिन यह सरकार को एक प्रस्ताव भी देता है : "बलूच लिबरेशन आर्मी मानव जीवन के महत्व को समझती है और किसी को भी खत्म करने या मारने पर हमें खुशी नहीं होती है. यदि पाकिस्तान रक्तपात और नरसंहार के बजाय शांति का विकल्प चुनता है, तो हम अंतरराष्ट्रीय गारंटर की उपस्थिति में बातचीत की मेज पर पाकिस्तान का स्वागत करते हैं. हम बलूचिस्तान से पाकिस्तानी सेना की सुरक्षित वापसी और अपनी मातृभूमि की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए बातचीत में शामिल होने के लिए तैयार हैं." नहीं तो वे कहते हैं कि बलूचिस्तान और पूरे पाकिस्तान में सैन्य चौकियों और चीनी आर्थिक हितों के खिलाफ हमले जारी रहेंगे.

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पाकिस्तान को इतिहास से सीख लेने की आवश्यकता क्यों है?

हालांकि इस्लामाबाद को अपने इनकार की स्थिति और कई वर्षों से प्रचारित किए जा रहे नैरेटिव को छोड़ने में बहुत देर हो सकती है. उन्होंने बलूचिस्तान को चीनियों को बेच दिया. उन्होंने बीजिंग को यह आश्वासन दिया कि वे विशिष्ट 'विदेशी शक्तियों' द्वारा वित्त पोषित कुछ दंगाइयों को आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं. वहीं पाकिस्तान के लिए नियंत्रण के बारे में सोचने का एकमात्र तरीका बलूच लोगों के खिलाफ दमन, मानवाधिकारों के उल्लंघन और हिंसा को बढ़ाना था.

चीनियों ने पाकिस्तान का अच्छे तरीके से साथ दिया. उन्होंने (चीनियों ने) बलूचिस्तान में वही रणनीति अपनाने की कोशिश की, जो उन्होंने झिंजियांग में अपनाई थी. जिसमें ग्वादर में गोल्फ खेलते हुए खुश लोगों को दिखाना शामिल था. लेकिन इसका परिणाम केवल यह देखने को मिला है कि नई पीढ़ी के लड़ाकों का उदय हुआ है जो अपने पूर्वजों से भी अधिक प्रेरित हैं.

समझौता वार्ता की मेज इस्लामाबाद और चीन दोनों के लिए एक बेहतर विकल्प हो सकती है. उन सभी को इतिहास की किताबें पढ़नी चाहिए और यह जानना चाहिए कि पूर्वी पाकिस्तान में क्या हुआ था. यदि आप इससे नहीं सीखते हैं तो इतिहास लगातार खुद को दोहराएगा.

(फ्रांसेस्का मैरिनो एक पत्रकार हैं और साउथ एशिया एक्सपर्ट हैं, इन्होंने बी नताले के साथ 'एपोकैलिप्स पाकिस्तान' लिखी है. इनकी हालिया पुस्तक ‘Balochistan — Bruised, Battered and Bloodied’ है. ये ट्विटर पर @ francescam63 से ट्वीट करती हैं. इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट न तो उनका समर्थन करता है और न ही उनके लिए जिम्मेदार है.)

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