सोनभद्र नरसंहार पर जब लखनऊ में बैठे नेता बयान और प्रेस रिलीज जारी कर खामोश हो गए तो प्रियंका गांधी दिल्ली से चलकर सोनभद्र के बॉर्डर पर पहुंच गईं. यूपी की सरकार ने उन्हें रोककर सेल्फ गोल कर लिया. ‘कोमा’ में चल रही कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी ने न सिर्फ अकेले दम यूपी की सरकार के पसीने छुड़ा दिए, बल्कि अपने कार्यकर्ताओं में भी जोश भर दिया. और अब नए-पुराने कांग्रेसी पूछ रहे हैं - क्यों नहीं प्रियंका को पार्टी की कमान थमाते?
सोनभद्र में 17 जुलाई को 10 आदिवासियों की हत्या हुई. बाहर से लोग ट्रैक्टरों में भरकर आए और ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं. 19 जुलाई को जब प्रियंका पीड़ितों से मिलने सोनभद्र जा रही थीं तो जिले की सीमा पर उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पता नहीं किसने यूपी सरकार को किसने ये सलाह दी, लेकिन ये दांव यूपी सरकार पर ही उल्टा पड़ गया.
पुलिस यहां से प्रियंका को चुनार गेस्ट हाउस ले गई. कहा-बॉन्ड भर कर चले जाइए. लेकिन प्रियंका अड़ी रहीं. रात भर गेस्ट हाउस में धरने पर बैठी रहीं. इस बीच गेस्ट हाउस में बिजली चली गई. लेकिन पसीने से लथपथ प्रियंका वहीं डटी रहीं.
ये खबर जंगल की आग की तरह फैली. वो हुआ जो एक अर्से में नहीं हुआ था. तमाम टीवी चैनलों के कैमरों का फोकस चुनार गेस्ट हाउस की तरफ हो गया. यूपी बीजेपी के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने प्रियंका के धरने को लाशों पर राजनीति करने का नाम दिया, लेकिन ताज्जुब, ये भी सुर्खियां नहीं बन पाई.
खाना-पीना छोड़ने की चेतावनी
प्रियंका को सोनभद्र नहीं जाने दिया गया तो 20 जुलाई की सुबह 15-20 सोनभद्र पीड़ित प्रियंका से मिलने चुनार गेस्ट हाउस पहुंच गए. उन्हें गेस्ट हाउस से 800 मीटर की दूरी पर रोक दिया गया. प्रियंका ने कहा - अब मैं खाना-पीना भी छोड़ दूंगी.
आखिर झुका यूपी प्रशासन
आखिर प्रशासन झुका और कुछ महिलाओं को प्रियंका के पास आने दिया गया. उसके बाद जो तस्वीर बनी वो वायरल हो गई. प्रियंका के गले लगकर सोनभद्र नरसंहार की पीड़ित महिलाएं रोती रहीं.
मेरा मकसद पूरा हुआ - प्रियंका
26 घंटे के धरने के बाद प्रियंका ने ऐलान किया कि उनका मकसद पूरा हुआ. वो पीड़ितों से मिलना चाहती थीं, मिलीं. जमानत नहीं भरना चाहती थीं, नहीं भरा.
और ये सच भी है. प्रियंका को रोकने में पूरा अमला लगा हुआ था, लेकिन वो कामयाब रहीं. इस बड़े नरसंहार कांड को जिस तरह से यूपी सरकार हल्के में लेने की कोशिश कर रही थी, वो बदल गई.
- प्रियंका न होतीं तो इस कांड की चर्चा नेशनल टीवी पर शायद उतनी नहीं होती, जितनी हुई.
- वारदात के चार दिन बाद, प्रियंका के दिल्ली लौटने के अगले दिन खुद सीएम योगी सोनभद्र गए. (या जाना पड़ा?)
- राज्य सरकार ने मृतकों के परिजनों को पांच-पांच लाख मुआवजे का एलान किया था, जब सीएम गए तो घोषणा की कि पीड़ितों को 18.5-18.5 लाख का मुआवजा मुख्यमंत्री राहत कोष से भी दिया जाएगा. घायलों को भी 2.5-2.5 लाख मुआवजा देने का ऐलान किया.
- सीएम ने अपनी स्थिति का जैसे बचाव करते हुए कहा कि ये कांग्रेस का पाप है (वो पहले ही कह चुके थे कि कांग्रेस के जमाने में जमीन की खरीद-फरोख्त हुई) और वारदात में समाजवादियों का हाथ है.
लेकिन इन सवालों का जवाब कौन देगा?
- सोनभद्र के उम्भा गांव में बवाल हो सकता है, ये जानते हुए भी पुलिस ने ऐहतियात क्यों नहीं की?
- 32 ट्रैक्टरों में भरकर सैकड़ों लोग उम्भा गांव पहुंच गए तो पुलिस क्या करती रही?
- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक चश्मदीद ने कहा कि वारदात के कुछ देर पहले एक सिपाही ने उन्हें फोन कर कहा था कि समझौता कर लो नहीं तो कुछ बड़ा हो जाएगा. क्या ये बात सही है? (उस सिपाही को सस्पेंड कर दिया गया है)
- सूचना मिलने के बाद भी लोकल थाने की पुलिस को 30 किलोमीटर की दूरी तय करने में एक घंटा क्यों लगा?
क्या इन सवालों का जवाब बीती सरकारों या कांग्रेस या समाजवादी पार्टी को देना है? यूपी की मौजूदा सरकार को इन सवालों का जवाब देना चाहिए. कोई ताज्जुब नहीं कि योगी के सोनभद्र जाने और मुआवजा बढ़ाने के ऐलान करने के बावजूद ट्विटर पर ये सवाल उठाया जाने लगा कि इतनी देर से क्यों जागे?
खुद योगी के सोनभद्र जाने को लेकर प्रियंका ने एक के बाद एक दो ट्वीट किए.
और होने लगी इंदिरा से तुलना
जब चुनार गेस्ट हाउस में प्रियंका धरने पर बैठी थीं तो ये तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही थी.
प्रियंका गांधी की सोनभद्र यात्रा की तुलना 1977 की इंदिरा गांधी की बेलछी यात्रा से की जाने लगी. बेलछी गांव ही वह जगह थी, जहां से 1980 चुनाव के लिए कांग्रेस को नई ऊर्जा मिली थी और पार्टी लौटकर सत्ता में आई थी. पटना जिले के बेलछी गांव में 11 लोगों की हत्या कर दी गई थी. 13 अगस्त, 1977 को इंदिरा गांधी ने बेलछी गांव जाने का प्लान बनाया. रास्ते में कई रुकावटें आईं. बेलछी तक का सफर इंदिरा गांधी को बाढ़ की वजह से कभी हाथी तो कभी पैदल करना पड़ा. लेकिन इंदिरा बेलछी पहुंची. पीड़ित परिवारों से मिलीं. साफ मैसेज गया कि इंदिरा दलितों और पीड़ितों के साथ और शोषितों के खिलाफ हैं.
फिर पार्टी में प्रियंका-प्रियंका
प्रियंका गांधी के ताजा तेवर देख पार्टी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की बातें तेज हो गई हैं.
प्रियंका पार्टी संभालने में सक्षम है.आपने देखा होगा उन्होंने यूपी के एक गांव में क्या किया? ये हैरतअंगेज था. वो वहां रहीं और वो हासिल किया, जो चाहती थीं.नटवर सिंह, कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री
नटवर ने भी चेतावनी दी है कि अगर गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया तो 24 घंटे में टूटफूट हो सकती है. इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री प्रियंका को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग उठा चुके हैं. उनका मानना है कि राहुल के बाद सिर्फ प्रियंका को ही 100% स्वीकार किया जाएगा.
चूंकि राहुल जी ने इस्तीफा दे दिया है तो सबसे बेहतर विकल्प प्रियंका गांधी ही हैं. मुझे ये भी लगता है कि उनमें पार्टी और कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की क्षमता है. जनता के बीच भी उनकी अच्छी पकड़ हैअनिल शास्त्री, कांग्रेस नेता
जो पार्टी कोमा में दिख रही थी, प्रियंका के सोनभद्र वाले रूप को देखकर अचानक जैसे उसमें जान आ गई. यूपी में दो दिन कार्यकर्ता सड़क पर रहे.राज बब्बर, आरपीएन सिंह, जितिन प्रसाद, दीपेंद्र हूडा, मुकुल वासनिक और राजीव शुक्ला पहुंचे. इन्हें भी वाराणसी एयरपोर्ट पर रोक लिया गया. भोपाल, दिल्ली, अहमदाबाद में भी प्रदर्शन हुए.
विपक्ष में भी प्रियंका-प्रियंका
विपक्ष के दूसरे नेताओं की जुबां पर भी प्रियंका का नाम है. ममता बनर्जी ने कहा - यूपी सरकार ने प्रियंका को रोककर ठीक नहीं किया. डेरेक ओ ब्रायन समेत टीएमसी के तीन नेता यूपी पहुंचे. उन्हें वाराणसी एयरपोर्ट पर रोक लिया गया. फिर वो भी धरने पर बैठे. प्रियंका को रोके जाने को लेकर मायावती भीं योगी सरकार पर बरसीं. कह सकते हैं प्रियंका गांधी ने न सिर्फ हताश कांग्रेसी कार्यकर्ताओं बल्कि विपक्ष को भी एकजुट कर दिया.
कांग्रेस की बीमारी का इलाज प्रियंका?
कर्नाटक में सरकार गिरने का डर. मध्य प्रदेश, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और गुजरात में कोहराम. गोवा में पार्टी तबाह. कुल मिलाकर कांग्रेस के लिए हर तरफ बुरी खबर है. ऐसे में पार्टी को एक डॉक्टर को सख्त जरूरत है. सोनभद्र नरसंहार पर प्रियंका के तेवर ने न सिर्फ सड़क से सोशल मीडिया तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जोश भरा बल्कि ये इशारा भी दिया कि कांग्रेस फिर कैसे मौजूं हो सकती है. जाहिर है इस वक्त पार्टी के लिए प्रियंका से बेहतर कोई इलाज नहीं. चुनार गेस्ट हाउस से जाते हुए खुद प्रियंका कह गईं - जा रही हूं, लेकिन फिर आऊंगी. कांग्रेस सुन रही है क्या?
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