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रॉबर्ट वाड्रा पर BJP के हमले प्रियंका को और मजबूत बना सकते हैं

प्रियंका मीडिया का ध्यान भी खींच सकती हैं और स्क्रीन पर अधिक से अधिक समय दिख सकती हैं.

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अगर राजनीति काफी हद तक नजरिया है, तो प्रियंका गांधी वाड्रा ने उस नजरिया में विशाल बढ़त हासिल कर ली है. जिस दिन राजनीति में उनका औपचारिक प्रवेश हुआ और उन्होंने कांग्रेस महासचिव के रूप में पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान संभाली, उसी दिन प्रियंका का एक और रूप सामने आया. इसमें न सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार की बेटी की, बल्कि हर कदम पर अपने पति का साथ देने वाली एक पत्नी की भी झलक थी.

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पति को प्रवर्तन निदेशालय छोड़ने के पीछे प्रियंका का राजनीतिक संदेश

प्रियंका गांधी वाड्रा ने ये बढ़त एक सामान्य, लेकिन ध्यान देने लायक कदम के जरिए हासिल किया है. ये कदम था, उनके कारोबारी पति रॉबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय, यानी Enforcement Directorate (ED) के दफ्तर तक छोड़ने के लिए जाना. रॉबर्ट वाड्रा से प्रवर्तन निदेशालय में लंदन स्थित उनकी कथित संपत्तियों के लिए हवाला के जरिए धांधली के आरोपों की पूछताछ चल रही है.

पति को प्रवर्तन निदेशालय तक छोड़ने के बाद AICC के मुख्यालय में प्रियंका मीडिया से मुखातिब हुईं:

मैं अपने पति के साथ हूं... मैं अपने पति, अपने परिवार के साथ हूं.
मीडिया में प्रियंका गांधी वाड्रा का बयान

निश्चित रूप से ये एक राजनीतिक संदेश था- ये संदेश प्रियंका और कांग्रेस द्वारा वाड्रा को समर्थन देने के रूप में था, फिर चाहे चुनावी मौसम में गांधी परिवार के दामाद को प्रशासन के कितने ही सख्त रुख का सामना क्यों न करना पड़े.

लेकिन इस कदम का एक दूसरा और अधिक ताकतवर संदेश है. अपने पति को प्रियंका का सहयोग, भारतीय परंपराओं तथा समाज की अभिन्न भावनाओं को दर्शाता है.

दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले शायद अपने वंश से प्राप्त प्रसिद्धि से उनसे प्रभावित न हों या शायद उनकी मोहक मुस्कान उनपर असर न डाल सके, लेकिन अपने पति की गरिमा के लिए लड़ने वाली एक महिला का उनका रूप निश्चित रूप से पुरुष तथा महिला मतदाताओं पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाबी हासिल करेगा.

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प्रियंका गांधी का ‘पीड़ित कार्ड’ अनुकूल समीकरण बना सकता है

प्रियंका मीडिया का ध्यान भी खींच सकती हैं और स्क्रीन पर अधिक से अधिक समय दिख सकती हैं.
अगर प्रवर्तन निदेशालय रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार करता है, तो प्रियंका को महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बढ़त मिलेगी
(फोटो: रॉयटर्स)

वास्तव में, अगर प्रवर्तन निदेशालय रॉबर्ट वाड्रा को गिरफ्तार करता है (चाहे उन पर लगे आरोप सही हों या नहीं), तो प्रियंका को महत्त्वपूर्ण राजनीतिक बढ़त मिलेगी. वो कह सकती हैं, “मुझे देखिए, वो मेरे परिवार को प्रताड़ित कर रहे हैं, क्योंकि मैं आपकी सेवा करना चाहती हूं और आपको एक बेहतर जिंदगी देना चाहती हूं.”

कांग्रेस को इससे दोहरा फायदा हो सकता है. पार्टी को न सिर्फ एक करिश्माई नेता मिल जाएगा, बल्कि वो करिश्माई नेता पीड़ित कार्ड का इस्तेमाल करने में भी सक्षम होगा. हम जानते हैं कि पीड़ित कार्ड को सहानुभूति मिलती है. बीजेपी के प्रमुख वोट बटोरने वाले नेता ने भी इस कार्ड का बखूबी इस्तेमाल किया है.

प्रियंका के राजनीति में प्रवेश का बीजेपी ने अपेक्षित अपमानजनक तथा तिरस्कृत विशेषणों से स्वागत किया. बीजेपी नेताओं ने राजनीति में उनकी अनुभवहीनता का बखान करते हुए 'बच्ची' 'घरेलू' और 'चॉकलेटी' कहकर मजाक उड़ाया.

इसमें कोई संदेह नहीं कि चुनाव से पहले सत्ताधारी पार्टी प्रियंका को महज एक 'खूबसूरत चेहरा' और बेमेल राजनीतिज्ञ करार देगा, जिसे उसके भाई और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूती प्रदान करने की बेचैनी में चुनावी मैदान में उतारा है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास फिलहाल सिर्फ दो संसदीय सीट हैं- अमेठी और रायबरेली, और दोनों गांधी परिवार के पास हैं.

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प्रियंका गांधी को सिर्फ ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता

इसके अलावा बीजेपी पति के कथित घोटालों के नाम पर भी प्रियंका पर निशाना साध सकती है. एक और राहुल राफेल डील को लेकर सरकार पर लगातार भ्रष्टाचार का आरोप लगा रहे हैं. दूसरी ओर इस आरोप का जवाब देने के लिए बीजेपी ने वाड्रा को हथियार बनाया है और कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार पर 'भ्रष्टाचार' का आरोप लगा रही है.

आरोपों की इस कड़ी में 2जी और राष्ट्रमंडल खेल ‘घोटाले’ भी शामिल हैं, लेकिन जनता के दिलोदिमाग से ये आरोप धूमिल हो चुके हैं. लिहाजा आगामी चुनावों में वाड्रा का नाम उछालकर बीजेपी ‘भ्रष्ट कांग्रेस को रोको’ का नारा दे सकती है.

लेकिन मैदान में प्रियंका के आने के बाद बीजेपी को अपनी रणनीति बनाने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. पहले तो उन्हें ‘गूंगी गुड़िया’ कहकर नकारना मूर्खता होगी. (प्रियंका की दादी इन्दिरा गांधी पर भी किसी जमाने में ऐसे ही विशेषण लादे गए थे, जिसका जवाब उन्होंने सभी चुनौती देने वालों को अपने ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से दिया था.)

प्रियंका जब राजनीति में नहीं थीं, उस समय भी उन्होंने अपनी हाजिरजवाबी और व्यंग्य भरे अंदाज का परिचय दिया था. इसके अलावा वो पिछले कुछ वर्षों से कांग्रेस के साथ राजनीतिक रूप से अनौपचारिक तौर पर जुड़ी रही हैं. अब औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल होने के बाद वो अपनी राजनीतिक परिवक्वता दिखा सकती हैं.

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मोदी जी! ध्यान दें, प्रियंका आपके जलवे चुरा सकती हैं

प्रियंका मीडिया का ध्यान भी खींच सकती हैं और स्क्रीन पर अधिक से अधिक समय दिख सकती हैं.
बीजेपी तो प्रियंका की आदर्श भारतीय नारी की छवि से निपटना होगा.
(फोटो: पीटीआई)

दूसरी बात, अगर बीजेपी, रॉबर्ट वाड्रा पर वित्तीय धांधली के आरोपों को भुनाने की कोशिश करती है, तो उसे प्रियंका की आदर्श भारतीय नारी की छवि से निपटना होगा, जिसमें वो अपने पति का दृढ़ता से साथ दे रही हैं. उन्होंने ये बात पहले ही स्पष्ट कर दिया है.

पश्चिमी देशों में ‘stand-by-your-man’ या अपने पति का साथ देने को उपेक्षा भरी नजरों से देखा जाता है. फिर भी बिल क्लिंटन पर यौन शोषण के कई आरोप लगने के बाद भी हिलेरी क्लिंटन ने उनका साथ नहीं छोड़ा.

लेकिन भारत परिवेश में ‘आदर्श’ पत्नी किसी भी कीमत पर अपने पति का साथ देती है. यहां अपने परिवार की परेशानियों और नुकसान के सामने ढाल बनकर खड़ी होने वाली महिलाओं का हमेशा सराहना और सम्मान के साथ देखा जाता है.

निश्चित रूप से प्रियंका जब पूर्वी उत्तर प्रदेश में मतदाताओं से रूबरू होंगी, तो इस भावना का बखूबी इस्तेमाल करेंगी.

इसके अतिरिक्त प्रियंका मीडिया का ध्यान भी खींच सकती हैं और स्क्रीन पर अधिक से अधिक समय दिख सकती हैं- इस क्षेत्र में वो प्रधानमंत्री को खुली चुनौती दे सकती हैं, जिसके बाद आप महसूस करेंगे कि गांधी परिवार की इस बेटी ने बीजेपी की राह में कांटा बो दिया है.

भारतीय समाज में महिला राजनीतिज्ञों के साथ पारिवारिक रिश्ते जोड़ने की परंपरा रही है. भारतीयों के लिए सभी महिला राजनीतिज्ञ एक दीदी, एक बहन, एक अम्मा का स्वरूप हैं. स्पष्ट रूप से प्रियंका इसी परंपरा का पालन कर रही हैं.

आने वाला समय बताएगा कि क्या लोग उन्हें एक बेटी कहकर प्रशंसा का पात्र बनाते हैं या एक आदर्श पत्नी के रूप में सराहते हैं.

(लेखिका शुमा राहा दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका हैं. ट्विटर पर @ShumaRaha पर उनसे संपर्क किया जा सकता है. आलेख में दिए गए विचार लेखिका के निजी विचार हैं. क्विंट का इसमें सहमत होना जरूरी नहीं है.)

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